High Court : एनआईए के डीएसपी तंजील व पत्नी फरजाना हत्याकांड में हाईकोर्ट का खंडित फैसला, यह है पूरा मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के डीएसपी मोहम्मद तंजील और उनकी पत्नी फरजाना की हत्याकांड में खंडित फैसला सुनाया है। एक न्यायमूर्ति ने रैयान की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए मृत्युदंड की सजा आजीवन कारावास में बदल दी।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के डीएसपी मोहम्मद तंजील और उनकी पत्नी फरजाना की हत्याकांड में खंडित फैसला सुनाया है। एक न्यायमूर्ति ने रैयान की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए मृत्युदंड की सजा आजीवन कारावास में बदल दी। वहीं, दूसरे न्यायमूर्ति ने उसे बरी कर दिया। ऐसे में अब अंतिम निर्णय के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास उचित बेंच नामित करने के लिए भेज दिया गया है।
बिजनौर के स्योहारा थाने में डीएसपी के भाई मोहम्मद रागिब ने तीन अप्रैल 2016 को मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया था कि भांजी की शादी से देर रात लौटते वक्त तंजील व पत्नी फरजाना पर रास्ते में बाइक सवार दो लोगों ने अंधाधुंध फायरिंग की। घटना में दंपती की मौत हो गई। ट्रायल कोर्ट ने मुनीर और रैयान को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई तो दोनों फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की। वहीं, अपील के लंबित रहने के दौरान मुनीर की मौत हो गई। ऐसे में उसकी अपील समाप्त हो गई।
याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि अभियोजन पक्ष अभियुक्त के खिलाफ संदेह से परे अपराध साबित करने में विफल रहा है। यह भी दलील दी कि यदि दोषसिद्धि कायम भी रहती है तो यह मामला दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आता है। ऐसे में मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का आग्रह किया।
वादी के अधिवक्ता सैयद काशिफ अब्बास रिजवी ने ट्रायल कोर्ट के फैसले का पुरजोर समर्थन किया। दलील दी कि अभियुक्तों ने सुनियोजित साजिश के तहत अधिकारी और उनकी पत्नी की निर्मम हत्या की। यह एक दुर्लभतम मामला है। क्योंकि, अपराध की प्रकृति बेहद जघन्य है। उन्होंने खंडपीठ से ट्रायल कोर्ट के मृत्युदंड के फैसले की पुष्टि करने की मांग की।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति हरवीर सिंह ने ट्रायल कोर्ट के दोषसिद्धि को सही ठहराया पर मृत्युदंड की सजा कम करके आजीवन कारावास में बदल दी। वहीं, न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता ने अभियुक्त रैयान को बरी करने का मत व्यक्त किया। ऐसे में दोनों जजों की अलग-अलग राय होने से मामले को अंतिम सुनवाई और निर्णय के लिए मुख्य न्यायाधीश को रेफर कर दिया गया है।