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High Court: जांच रिपोर्ट से असंतुष्टि का कारण दर्ज किए बिना पारित दंडादेश अवैध, परिचालक की बर्खास्तगी रद्द

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Thu, 08 May 2025 04:11 PM IST
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सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कदाचार में दोषी पाए बस परिचालक की बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया। कहा, पहले प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का पालन करना अनिवार्य है। कर्मचारी के पक्ष में आई जांच रिपोर्ट से असंतुष्टि का कारण दर्ज किए बिना पारित दंडादेश अवैध है।

High Court: The sentence passed without recording the reason for dissatisfaction with the investigation report
अदालत(सांकेतिक) - फोटो : अमर उजाला
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कदाचार में दोषी पाए बस परिचालक की बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया। कहा, पहले प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का पालन करना अनिवार्य है। कर्मचारी के पक्ष में आई जांच रिपोर्ट से असंतुष्टि का कारण दर्ज किए बिना पारित दंडादेश अवैध है।

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यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट की अदालत ने अलीगढ़ डिपो के परिचालक मनोज कुमार पाठक की याचिका स्वीकार करते हुए दिया। याची के खिलाफ यह कार्रवाई अजमेर से जयपुर जाते वक्त छापे के दौरान यात्रियों को बिना टिकट सफर कराते पकड़े जाने के बाद 2013 में शुरू की गई थी।
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29 अप्रैल 2013 को याची पर बेटिकट यात्रियों को सफर कराने, जाली टिकट के जरिये अवैध वसूली, निरीक्षण में बाधा डालने व विभाग को आर्थिक हानि पहुंचाने का आरोप लगाया गया। हालांकि, जांच अधिकारी ने पांच अक्तूबर 2013 को उसे क्लीन चिट देते हुए आख्या प्रस्तुत कर दी थी। जांच से असंतुष्ट अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने याची को बर्खास्त करने का दंडादेश पारित कर दिया। इसके खिलाफ याची ने अपील और पुनरीक्षण किया, लेकिन सभी प्राधिकारियों ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी के दंडादेश पर मुहर लगा दी। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याची की ओर से अधिवक्ता कृष्णा गौतम ने दलील दी कि दंडादेश पारित करने से पहले अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का पालन नहीं किया। दंडादेश में न तो असंतुष्टि का कारण दर्ज किया गया और न ही कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर बर्खास्तगी का आदेश निरस्त कर दिया। साथ ही मामले को पुनर्विचार के लिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी के पास वापस भेज दिया।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार अनुशासनात्मक प्राधिकारी की ओर से आरोपों पर निष्कर्ष दर्ज करने से पहले कर्मचारी को सुनवाई का अवसर दिया जाना जरूरी है।
-इलाहाबाद हाईकोर्ट

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