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Ambedkar Nagar News: पुत्र की दीर्घायु के लिए आज माताएं रखेंगी जीवित्पुत्रिका व्रत
संवाद न्यूज एजेंसी, अम्बेडकरनगर
Updated Sat, 13 Sep 2025 11:48 PM IST
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आलापुर (अंबेडकरनगर)। संतान की रक्षा और दीर्घायु की कामना के लिए माताएं 14 सितंबर को निर्जला उपवास रखकर जीवित्पुत्रिका व्रत रखेंगी। व्रत का पारण 15 सितंबर की प्रातः 6 बजकर 26 मिनट के बाद संपन्न होगा। यह जानकारी आचार्य पंडित आशुतोष शुक्ल ने दी।
उन्होंने बताया कि हिंदू परंपरा में जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया भी कहा जाता है। मान्यता है कि यह व्रत पुत्र की रक्षा और उसकी कुशलता के लिए सर्वोपरि है। इस दिन माताएं पूरे दिन निर्जल रहकर संतान की लंबी आयु और संकट निवारण की कामना करती हैं।उन्होंने बताया कि पुराणों के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन से है। कथा के अनुसार जीमूतवाहन परोपकारी और उदार स्वभाव के थे। उन्होंने राजपाट भाइयों को सौंपकर वनवास का जीवन चुना। वन में रहते समय उनका सामना एक वृद्धा नागवंशी स्त्री से हुआ। परंपरा के अनुसार प्रतिदिन नागवंश के एक सदस्य को पक्षीराज गरुड़ का आहार बनना होता था। अपने पुत्र शंखचूर्ण की बारी आने पर स्त्री विलाप करने लगी। महिला की पीड़ा देखकर जीमूतवाहन ने शंखचूर्ण को बचाने का निश्चय किया और स्वयं उसके स्थान पर गरुड़ के सम्मुख उपस्थित हो गए। लाल वस्त्र में लिपटे जीमूतवाहन को देखकर गरुड़ ने उन्हें पकड़ लिया। जब गरुड़ ने उनकी करुण पुकार सुनी और वास्तविकता जानी तो वह द्रवित हो उठे। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दिया और संकल्प किया कि भविष्य में किसी नाग को अपना ग्रास नहीं बनाएंगे।
तैयारी और आयोजन
इस वर्ष 14 सितंबर को व्रत का आयोजन होगा जबकि 15 सितंबर को प्रात: निर्धारित समय के बाद माताएं पारण करेंगी। आचार्य पंडित आशुतोष शुक्ल ने बताया कि व्रत की सफलता के लिए संकल्प, श्रद्धा और नियम का पालन अनिवार्य है।

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उन्होंने बताया कि हिंदू परंपरा में जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया भी कहा जाता है। मान्यता है कि यह व्रत पुत्र की रक्षा और उसकी कुशलता के लिए सर्वोपरि है। इस दिन माताएं पूरे दिन निर्जल रहकर संतान की लंबी आयु और संकट निवारण की कामना करती हैं।उन्होंने बताया कि पुराणों के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन से है। कथा के अनुसार जीमूतवाहन परोपकारी और उदार स्वभाव के थे। उन्होंने राजपाट भाइयों को सौंपकर वनवास का जीवन चुना। वन में रहते समय उनका सामना एक वृद्धा नागवंशी स्त्री से हुआ। परंपरा के अनुसार प्रतिदिन नागवंश के एक सदस्य को पक्षीराज गरुड़ का आहार बनना होता था। अपने पुत्र शंखचूर्ण की बारी आने पर स्त्री विलाप करने लगी। महिला की पीड़ा देखकर जीमूतवाहन ने शंखचूर्ण को बचाने का निश्चय किया और स्वयं उसके स्थान पर गरुड़ के सम्मुख उपस्थित हो गए। लाल वस्त्र में लिपटे जीमूतवाहन को देखकर गरुड़ ने उन्हें पकड़ लिया। जब गरुड़ ने उनकी करुण पुकार सुनी और वास्तविकता जानी तो वह द्रवित हो उठे। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दिया और संकल्प किया कि भविष्य में किसी नाग को अपना ग्रास नहीं बनाएंगे।
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तैयारी और आयोजन
इस वर्ष 14 सितंबर को व्रत का आयोजन होगा जबकि 15 सितंबर को प्रात: निर्धारित समय के बाद माताएं पारण करेंगी। आचार्य पंडित आशुतोष शुक्ल ने बताया कि व्रत की सफलता के लिए संकल्प, श्रद्धा और नियम का पालन अनिवार्य है।