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Balrampur News: अधर्म के अंत और धर्म की विजय का दिया संदेश
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तुलसीपार्क में श्रीराम कथा कहते प्रवाचक भीष्म पितामह महाराज। स्रोत आयोजक
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बलरामपुर। तुलसी पार्क में आयोजित श्रीराम कथा के तीसरे दिन शनिवार को अधर्म के अंत और धर्म की विजय का संदेश प्रवाचक ने दिया। प्रवाचक भीष्म पितामह महाराज ने भगवान श्रीराम के मिथिला आगमन, अहिल्या उद्धार, ताड़का वध तथा विश्वामित्र द्वारा राजा दशरथ से श्रीराम को यज्ञ-रक्षा हेतु मांगने के प्रसंगों का वर्णन किया।
प्रवाचक ने कहा कि भगवान जब धरती पर अवतरित होते हैं तो उनका उद्देश्य केवल अधर्म का विनाश नहीं, बल्कि भटकी हुई आत्माओं का उद्धार भी होता है। अहिल्या उद्धार प्रसंग का भावार्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि अहिल्या पत्थर नहीं थीं, बल्कि वह अहंकार, मोह और अविश्वास की प्रतीक थीं। भगवान श्रीराम के चरण स्पर्श से उनके भीतर सोई हुई चेतना जागृत हुई। इससे यह संदेश मिलता है कि रामकृपा केवल स्पर्श से नहीं, बल्कि सच्ची भावना और अटूट भक्ति से प्राप्त होती है।
ताड़का वध प्रसंग का वर्णन करते हुए प्रवाचक ने बताया कि अधर्म चाहे जितना भी शक्तिशाली क्यों न प्रतीत हो, धर्म के सामने उसका अंत निश्चित है। भगवान श्रीराम ने बाल्यावस्था में ही यह सिद्ध कर दिया कि अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना ही सच्चा धर्म है। वहीं, विश्वामित्र-राम संवाद के माध्यम से उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि गुरु की आज्ञा का पालन और बड़ों का सम्मान करने से ही मनुष्य जीवन में उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करता है। श्रीराम का संपूर्ण जीवन आज भी आदर्श आचरण और मर्यादा का संदेश देता है।
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प्रवाचक ने कहा कि भगवान जब धरती पर अवतरित होते हैं तो उनका उद्देश्य केवल अधर्म का विनाश नहीं, बल्कि भटकी हुई आत्माओं का उद्धार भी होता है। अहिल्या उद्धार प्रसंग का भावार्थ समझाते हुए उन्होंने कहा कि अहिल्या पत्थर नहीं थीं, बल्कि वह अहंकार, मोह और अविश्वास की प्रतीक थीं। भगवान श्रीराम के चरण स्पर्श से उनके भीतर सोई हुई चेतना जागृत हुई। इससे यह संदेश मिलता है कि रामकृपा केवल स्पर्श से नहीं, बल्कि सच्ची भावना और अटूट भक्ति से प्राप्त होती है।
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ताड़का वध प्रसंग का वर्णन करते हुए प्रवाचक ने बताया कि अधर्म चाहे जितना भी शक्तिशाली क्यों न प्रतीत हो, धर्म के सामने उसका अंत निश्चित है। भगवान श्रीराम ने बाल्यावस्था में ही यह सिद्ध कर दिया कि अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना ही सच्चा धर्म है। वहीं, विश्वामित्र-राम संवाद के माध्यम से उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि गुरु की आज्ञा का पालन और बड़ों का सम्मान करने से ही मनुष्य जीवन में उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करता है। श्रीराम का संपूर्ण जीवन आज भी आदर्श आचरण और मर्यादा का संदेश देता है।
