तिकुनिया हिंसा: आशीष मिश्र को लखनऊ और दिल्ली में रहने की मंजूरी, 117 गवाह बने जमानत का आधार
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे के लखीमपुर प्रवास पर पाबंदी लगाई है। कोर्ट ने उन्हें लखनऊ और दिल्ली के आवास में रहने के लिए मंजूरी दी है।

विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र मोनू की अंतरिम जमानत याचिका को नियमित जमानत के रूप में मंजूरी देते हुए उसके लखीमपुर प्रवास पर पाबंदी लगाई है। साथ ही उन्हें मीडिया से दूरी बनाए रखने और सार्वजनिक कार्यक्रमों में भागीदारी से बचने के निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने उन्हें लखनऊ और दिल्ली के आवास में रहने के लिए मंजूरी दी है। अब गवाहों की कुल संख्या 117 हो गई है।

तीन अक्तूबर 2021 को तिकुनियां में भीषण हिंसा व आगजनी हुई थी। इसमें आठ लोगों की जान गई थी। इस मामले में आशीष मिश्र मुख्य आरोपी हैं। तिकुनियां हिंसा केस के राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए जांच एजेंसी एसआईटी ने फूंक-फूंककर कदम रखे। जांच एजेंसी ने चश्मदीदों, चोटिल साक्षियों के साथ ही परिस्थितिजन्य सबूत और इलेक्ट्रानिक सबूतों के साथ भौतिक वस्तुओं को सबूत के रूप में जुटाया। उन्हीं का उल्लेख करते हुए केस डायरी और चार्जशीट मिलाकर करीब पांच हजार पन्नों की फाइल कोर्ट में पेश की है। इसमें कई श्रेणी के गवाहों की कुल संख्या 117 हो गई है। कानूनी जानकारों के अनुसार, 10 से 20 गवाहों के आधार पर अभियोजन अपने केस को साबित करने की स्थित में होता है।
जिसमें से अब तक सात गवाही पेश भी हो चुकी हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से पिछली बार अंतरिम जमानत देते समय भी गवाहों की बड़ी संख्या को लेकर विचारण न्यायालय के समक्ष कब तक विचारण परिपूर्ण किया जा सकेगा, इसी बात के आधार पर सशर्त अंतरिम जमानत दी थी। इसे बाद में समय-समय पर बढ़ाया जाता रहा। प्रारंभ में दी गई कड़ी जमानत शर्तों में भी काफी हद तक ढील मिल चुकी थी। सोमवार को सुप्रीम अदालत ने एक बार फिर गवाहों की बड़ी संख्या को आधार मानते हुए लंबित जमानत याचिका स्वीकार कर ली है।
शर्तों में मिलती रही ढील
शुरुआत में मिली अंतरिम जमानत के दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश में न आने की बात कही गई थी। केवल विचारण न्यायालय के समक्ष आने जाने के लिए उत्तर प्रदेश में आने की अनुज्ञा दी। साथ ही राज्य से बाहर रहने की हिदायत देने के साथ ही पते की जानकारी और स्थानीय पुलिस के समक्ष समय-समय पर उपस्थित देने की बात कही थी, लेकिन बाद में बदलते हालात के बीच मानवीय आधार पर शर्तों में ढील मिलती चली गई।
कई बार हुआ विचारण न्यायालय में बदलाव
इस मामले में सीजेएम कोर्ट से केस कमिट होने के बाद सबसे पहले जिला जज मुकेश मिश्र की अदालत में पहुंचा था। जिस पर सुनवाई प्रभावी हो पाती, इसी बीच आरोपियों की ओर से एसआईटी के पेश किए सबूतों को नाकाफी बताते हुए कहा कि चार्ज बनाए जाने के लिए एसआईटी की टीम ने सबूत अदालत में नहीं पेश किए है। डिस्चार्ज एप्लीकेशन की सुनवाई में धीरे-धीरे एक साल बीत गया। जिला जज मुकेश मिश्र के रिटायर होने के बाद मामले की सुनवाई के दौरान जिला जज लक्ष्मीकांत शुक्ल ने पत्रावली एडीजे प्रथम की अदालत में भेजी।
वहां एडीजे सुनील वर्मा ने लंबी सुनवाई के बाद आरोपियों की डिस्चार्ज अर्जी खारिज की थी और हत्या की धाराओं में भी चार्ज फ्रेम करने के बाद मामले से संबंधित गवाहों को पेश करने के लिए सरकारी वकील अरविंद त्रिपाठी डीजीसी क्रिमिनल को आदेशित किया। गवाही पूरी हो पाती इसी बीच एडीजे सुनील वर्मा को प्रोन्नति देते हुए जिला जज मोटर वाहन की जिम्मेदारी जिला खीरी में सौंपी गई। इसके बाद नियुक्त एडीजे प्रथम रामेंद्र कुमार ने सुनवाई प्रारंभ की, लेकिन 30 जून को उनके सेवानिवृत्त होने के बाद एडीजे प्रथम अदालत की बागडोर एडीजे पारुल जैन को मिली। इसी बीच जिला जज लक्ष्मीकांत शुक्ल ने पत्रावली एडीजे पंचम देवेंद्र नाथ सिंह की अदालत में तबादला कर दी है, जहां सुनवाई के लिए पहले से 24 जुलाई की तारीख नियत है।