UP News: यूपी के इस जिले में विकास की भेंट चढ़े 50 हजार पेड़, हाईवे बने हरियाली की कब्रगाह
बरेली जिले में हाईवे निर्माण और चौड़ीकरण के लिए 50 हजार पेड़ भेंट चढ़ गए। इसके बदले में दूसरे जिलों में पौधरोपण हो रहा है। लेकिन जो पौधे लगाए गए हैं, वे पेड़ भी नहीं बन पा रहे हैं।
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बरेली जिले में बन रहे हाईवे हरियाली की कब्रगाह साबित हो रहे हैं। बरेली में 50 हजार पेड़ विकास की भेट चढ़ गए हैं। इसके बदले मिर्जापुर, सिद्धार्थनगर और बिजनौर के नजीबाबाद में पौधे लगाए जा रहे हैं। बरेली-मथुरा नेशनल हाईवे के लिए 12 हजार पेड़ काटे जा रहे हैं। शहर में लाल फाटक से रामगंगा पुल तक सड़क चौड़ीकरण के लिए दो साल पहले नौ हजार पेड़ों पर आरी चलाई गई थी। बरेली-सितारगंज हाईवे के लिए 14 हजार पेड़ काट दिए गए। बरेली-आंवला-रामनगर हाईवे के चौड़ीकरण के लिए भी 10 हजार पेड़ों को चिह्नित किया गया है। बड़ा बाइपास पर फ्लाईओवर निर्माण के लिए भी पांच हजार पेड़ों की बलि दे दी गई।
वन विभाग यूं तो हर साल जिले में औसतन 45 लाख पौधे रोप रहा है, लेकिन वे पेड़ नहीं बन पा रहे हैं। जिले के कुल क्षेत्रफल का 0.1 फीसदी ही वन भूमि है। ऐसे में पौधरोपण रेलवे, सेना, ग्राम्य विकास, पंचायती राज अन्य विभागों की भूमि पर किया जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमानुसार एक पेड़ काटने के बदले तीन पौधों का रोपण किया जाना चाहिए। जिले में वन भूमि न होने के कारण काटे जाने वाले पेड़ों के बदले नजीबाबाद, सिद्धार्थनगर और मिर्जापुर में पौधरोपण किया गया है।
दो साल में पूरा होगा काम
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण बदायूं डिवीजन के परियोजना निदेशक उत्कर्ष शुक्ला ने बताया कि बरेली-मथुरा हाईवे के लिए वन विभाग की अनुमति से 12 हजार पेड़ काटे जा रहे हैं। मथुरा से कासगंज तक हाईवे का काम लगभग पूरा हो गया है। वर्ष 2027 के अंत तक कासगंज और बरेली के बीच भी काम पूरा कर लिया जाएगा।
मित्र वन, गोपाल उपवन... अब नगर वन की कवायद
इस वर्ष एक पौधा मां के नाम अभियान में बरेली प्रदेश में दूसरे स्थान पर रहा। जिले में मित्र वन, ऑक्सीजन वन, शौर्य वन, गोपाल वन, अटल वन आदि को विकसित करने की कवायद भी की गई। अब सीबीगंज में नगर वन विकसित करने का प्रस्ताव है। यहां वन विभाग का 30 हेक्टेयर क्षेत्र आरबोरेटम है। इसमें चंदन, रुद्राक्ष, केवड़ा समेत श्रीलंका में पाई जाने वाली दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ मौजूद हैं।
बांस से जिले की पहचान लेकिन रकबा लगभग शून्य
बरेली की पहचान बांस बरेली के नाम से होती है। ब्रिटिशकाल के बाद भी बरेली में बांस की कई प्रजातियां पाई जाती थीं। यहां बांस के फर्नीचर का भी बड़ा काम था, लेकिन अब बरेली में बांस का रकबा लगभग शून्य हो गया है। सीबीगंज में वन विभाग के आरबोरेटम और आंवला क्षेत्र के अलावा अन्य स्थानों पर बांस की खेती ही नहीं होती। आरबोरेटम में बांस की कई दुर्लभ प्रजातियों के पौधे उपलब्ध हैं।
वन राज्यमंत्री डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि नेशनल हाईवे व अन्य सड़कों के चौड़ीकरण और विकास के लिए जितने पेड़ों को काटा गया है, उससे कहीं ज्यादा पौधे भी रोपे गए हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक पौधा जरूर लगाना चाहिए और पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करनी चाहिए।
