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Budaun News: व्यवसायिक नहीं परोपकार के लिए बांस की खेती कर रहे किसान
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दातागंज में भटौली गांव में बांस के पेड़। संवाद
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बदायूं। जिले में बांस की खेती केवल नाममात्र की है। कुछ लोग गांवों में खाली पड़ी जगहों पर बांस लगाए हैं। आसफपुर और दातागंज में बांस की कुछ खेती जरूर की जा रही है लेकिन प्रोत्साहन ने मिलने से विस्तार नहीं हुआ है।
आसफपुर के गांव निवासी मनीश कुमार पाठक ने पांच-छह बीघा में बांस की खेती की है। वह खुद हरिद्वार शांति कुंज में रह रहे हैं। उनका एक बेटा है वह भी बाहर ही रहता है। यहां इनसे पूर्व गांव के ही महेश प्रताप सिंह ने बांस की खेती शुरू की थी। करीब 35 साल पहले वह उत्तराखंड से बांस की पौध लाए थे। रेलवे क्रांसिंग के पास उन्होंने करीब 20 बीघा में बांस की खेती कराई। इससे उन्हें फायदा भी हुआ। उनके निधन के बाद बेटों ने इस ओर कोई रुझान नहीं दिखाया और सरकार की ओर से भी कोई बढ़ावा या सहयोग नहीं मिला। अब कुछ बांस बचे हैं, जो गांव वालों की जरूरत पर काम आते हैं।
दातागंज के गांव भटौली में नेतराम शर्मा ने बेकार पड़ी भूमि पर बांस की खेती की है। उन्होंने बताया कि इससे उनका कोई व्यवसायिक लाभ नहीं है।
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बांस बरौलिया में कभी होती थी बांसों की खेती
बिल्सी क्षेत्र का गांव है बांस बरौलिया। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इस गांव में बांसों की लोग खेती की जाती थी। गांव ही नहीं आसपास के क्षेत्र के लोगों की बांस की जरूरत यहां से पूरी होती थी। अब इस गांव में बांस की खेती बंद हो गई है।

आसफपुर के गांव निवासी मनीश कुमार पाठक ने पांच-छह बीघा में बांस की खेती की है। वह खुद हरिद्वार शांति कुंज में रह रहे हैं। उनका एक बेटा है वह भी बाहर ही रहता है। यहां इनसे पूर्व गांव के ही महेश प्रताप सिंह ने बांस की खेती शुरू की थी। करीब 35 साल पहले वह उत्तराखंड से बांस की पौध लाए थे। रेलवे क्रांसिंग के पास उन्होंने करीब 20 बीघा में बांस की खेती कराई। इससे उन्हें फायदा भी हुआ। उनके निधन के बाद बेटों ने इस ओर कोई रुझान नहीं दिखाया और सरकार की ओर से भी कोई बढ़ावा या सहयोग नहीं मिला। अब कुछ बांस बचे हैं, जो गांव वालों की जरूरत पर काम आते हैं।
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दातागंज के गांव भटौली में नेतराम शर्मा ने बेकार पड़ी भूमि पर बांस की खेती की है। उन्होंने बताया कि इससे उनका कोई व्यवसायिक लाभ नहीं है।
बांस बरौलिया में कभी होती थी बांसों की खेती
बिल्सी क्षेत्र का गांव है बांस बरौलिया। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले इस गांव में बांसों की लोग खेती की जाती थी। गांव ही नहीं आसपास के क्षेत्र के लोगों की बांस की जरूरत यहां से पूरी होती थी। अब इस गांव में बांस की खेती बंद हो गई है।