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Jalaun News: हर घर नल से जल पहुंचाने में बिजली बड़ी बाधा
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उरई। हर घर नल से जल पहुंचाने में बिजली बड़ी समस्या बन गई है। 24 घंटे बिजली उपलब्ध नहीं होने की वजह से जल शोधन संयंत्र नहीं चल पाएंगे। नदी से लाकर जल का शोधन नहीं होगा तो उसकी हर घर तक आपूर्ति भी संभव नहीं होगी। जिले में अभी चार जगह जल शोधन संयंत्र (वाटर ट्रीटमेंट प्लांट) लगाए गए हैं। चारों ही संयंत्र में 24 घंटे बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था नहीं है। बिजली निगम की तरफ से अलग फीडर के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। मंजूरी मिलने के बाद व्यवस्था की जाएगी।
बता दें कि जिले में लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नमामि गंगे योजना के तहत 1100 करोड़ रुपये की परियोजना धरातल पर लाई जा रही है। इसी परियोजना से गांव-गांव घर-घर तक नल से शुद्ध जल पहुंचाया जाएगा। इसके बाद लोगों को पानी के लिए नलकूप या हैंडपंप पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। कई जगहों पर पानी की सप्लाई शुरू हो गई है। हालांकि अभी यह परियोजना ही अधूरी है।
पेयजल आपूर्ति के लिए जिले में सला घाट, मुस्तकिल, राजपुरा और मड़ैयां में जल शोधन संयंत्र लगाए गए हैं। इन संयंत्रों से नदियों का पानी खींचकर शुद्ध किया जाता है। इसके बाद पाइपलाइन के जरिये पानी को गांव-गांव घर-घर पहुंचाया जाना है। जल शोधन के लिए संयंत्र को 20 से 24 घंटे लगातार बिजली की दरकार होती है। तभी निर्बाध पानी की आपूर्ति की जा सकती है।
हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी बिजली लाइनों से 16 से 18 घंटे ही सप्लाई हो रही है। योजना बनाते समय जल निगम और विभागीय अफसरों ने बिजली की निरंतर आपूर्ति के बारे में अलग प्रावधान नहीं किया। करोड़ों रुपये खर्च करके जल शोधन संयंत्र लगा दिए गए। पाइपलाइन भी बिछा दी गई, लेकिन पर्याप्त बिजली नहीं मिलने की वजह से जल का शोधन होना ही मुश्किल हो गया है।
अभी केवल सला घाट संयंत्र को ही इंडिपेंडेंट फीडर से जोड़ा गया है। इंडिपेंडेंट फीडर का मतलब है कि यह लाइन सीधे ग्रिड सबस्टेशन से जुड़ती है और केवल कुछ चुनिंदा उपभोक्ताओं को सप्लाई देती है। इसी तरह की व्यवस्था अन्य जल शोधन संयंत्रों में करनी होगी तभी शुद्ध पानी की आपूर्ति हो पाएगी।
संयंत्रों में वोल्टेज को नियंत्रित करने वाली मशीनें तक नहीं
जल निगम ग्रामीण ने बिजली विभाग से 100 किलोवाट से 300 किलोवाट तक के 30 कनेक्शन लिए हैं। ग्रामीण फीडर पहले से ही कमजोर हालत में हैं। ऊपर से जब 200-300 किलोवाट का अतिरिक्त लोड एक साथ डाला जाएगा तो तार और ट्रांसफार्मर इसे झेल नहीं पाएंगे। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन संयंत्रों में वोल्टेज को नियंत्रित करने वाली मशीनें तक नहीं लगाई गई हैं। ऐसे में जरा सा वोल्टेज घटा तो मशीनें बंद हो जाती हैं।
बिजली विभाग ने बनाया इस्टीमेट
योजना में गड़बड़ी न हो और सप्लाई ठप न हो इसलिए बिजली विभाग ने योजना बना ली है। जल निगम के अधिकारियों ने पत्र लिखकर इस्टीमेट की मांग की तो बिजली विभाग ने पहले चरण में सात इस्टीमेट तैयार किए हैं, जिनकी लागत 6.50 करोड़ रुपये है। इनसे कुछ संयंत्र को स्वतंत्र फीडर से जोड़ा जाएगा। दूसरे चरण में 15 इस्टीमेट और बनाए हैं, जिनकी लागत 13.68 करोड़ रुपये होगी। कुल मिलाकर 22 प्रस्ताव बनाकर झांसी भेजे गए हैं। अगर मंजूरी मिल गई तो नए स्वतंत्र फीडर बनेंगे और पानी की सप्लाई सुचारु हो सकेगी।
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क्या है जल शोधन संयंत्र
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी को शोधित करके पीने योग्य बनाया जाता है। इसके बाद ही उसकी आपूर्ति की जाती है। नदी या स्रोत से पानी खींच कर उसमें से गंदगी, कीचड़ और रसायन हटाया जाता है। बैक्टीरिया और हानिकारक तत्वों को खत्म किया जाता है। इस तरह पानी को पीने योग्य बनाया जाता है। इसके बाद इस पानी को पाइपलाइन के जरिए हर घर तक पहुंचाया जाता है। जल को शोधित करने के लिए संयंत्र को 24 घंटे बिजली की दरकार होती है।
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करीब 22 इस्टीमेट तैयार कर झांसी भेजे गए हैं। मंजूरी मिल गई तो स्वतंत्र फीडर बनाकर जल शोधन संयंत्र को 24 घंटे बिजली दी जाएगी। एमडी को भी पत्र भेजकर मौजूदा स्थिति से अवगत कराया गया है। उच्च अधिकारियों से जैसे ही निर्देश मिलेंगे, उसी के अनुसार काम किया जाएगा।
- नंदलाल, अधीक्षण अभियंता, बिजली निगम

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बता दें कि जिले में लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए नमामि गंगे योजना के तहत 1100 करोड़ रुपये की परियोजना धरातल पर लाई जा रही है। इसी परियोजना से गांव-गांव घर-घर तक नल से शुद्ध जल पहुंचाया जाएगा। इसके बाद लोगों को पानी के लिए नलकूप या हैंडपंप पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। कई जगहों पर पानी की सप्लाई शुरू हो गई है। हालांकि अभी यह परियोजना ही अधूरी है।
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पेयजल आपूर्ति के लिए जिले में सला घाट, मुस्तकिल, राजपुरा और मड़ैयां में जल शोधन संयंत्र लगाए गए हैं। इन संयंत्रों से नदियों का पानी खींचकर शुद्ध किया जाता है। इसके बाद पाइपलाइन के जरिये पानी को गांव-गांव घर-घर पहुंचाया जाना है। जल शोधन के लिए संयंत्र को 20 से 24 घंटे लगातार बिजली की दरकार होती है। तभी निर्बाध पानी की आपूर्ति की जा सकती है।
हकीकत यह है कि ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी बिजली लाइनों से 16 से 18 घंटे ही सप्लाई हो रही है। योजना बनाते समय जल निगम और विभागीय अफसरों ने बिजली की निरंतर आपूर्ति के बारे में अलग प्रावधान नहीं किया। करोड़ों रुपये खर्च करके जल शोधन संयंत्र लगा दिए गए। पाइपलाइन भी बिछा दी गई, लेकिन पर्याप्त बिजली नहीं मिलने की वजह से जल का शोधन होना ही मुश्किल हो गया है।
अभी केवल सला घाट संयंत्र को ही इंडिपेंडेंट फीडर से जोड़ा गया है। इंडिपेंडेंट फीडर का मतलब है कि यह लाइन सीधे ग्रिड सबस्टेशन से जुड़ती है और केवल कुछ चुनिंदा उपभोक्ताओं को सप्लाई देती है। इसी तरह की व्यवस्था अन्य जल शोधन संयंत्रों में करनी होगी तभी शुद्ध पानी की आपूर्ति हो पाएगी।
संयंत्रों में वोल्टेज को नियंत्रित करने वाली मशीनें तक नहीं
जल निगम ग्रामीण ने बिजली विभाग से 100 किलोवाट से 300 किलोवाट तक के 30 कनेक्शन लिए हैं। ग्रामीण फीडर पहले से ही कमजोर हालत में हैं। ऊपर से जब 200-300 किलोवाट का अतिरिक्त लोड एक साथ डाला जाएगा तो तार और ट्रांसफार्मर इसे झेल नहीं पाएंगे। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन संयंत्रों में वोल्टेज को नियंत्रित करने वाली मशीनें तक नहीं लगाई गई हैं। ऐसे में जरा सा वोल्टेज घटा तो मशीनें बंद हो जाती हैं।
बिजली विभाग ने बनाया इस्टीमेट
योजना में गड़बड़ी न हो और सप्लाई ठप न हो इसलिए बिजली विभाग ने योजना बना ली है। जल निगम के अधिकारियों ने पत्र लिखकर इस्टीमेट की मांग की तो बिजली विभाग ने पहले चरण में सात इस्टीमेट तैयार किए हैं, जिनकी लागत 6.50 करोड़ रुपये है। इनसे कुछ संयंत्र को स्वतंत्र फीडर से जोड़ा जाएगा। दूसरे चरण में 15 इस्टीमेट और बनाए हैं, जिनकी लागत 13.68 करोड़ रुपये होगी। कुल मिलाकर 22 प्रस्ताव बनाकर झांसी भेजे गए हैं। अगर मंजूरी मिल गई तो नए स्वतंत्र फीडर बनेंगे और पानी की सप्लाई सुचारु हो सकेगी।
क्या है जल शोधन संयंत्र
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी को शोधित करके पीने योग्य बनाया जाता है। इसके बाद ही उसकी आपूर्ति की जाती है। नदी या स्रोत से पानी खींच कर उसमें से गंदगी, कीचड़ और रसायन हटाया जाता है। बैक्टीरिया और हानिकारक तत्वों को खत्म किया जाता है। इस तरह पानी को पीने योग्य बनाया जाता है। इसके बाद इस पानी को पाइपलाइन के जरिए हर घर तक पहुंचाया जाता है। जल को शोधित करने के लिए संयंत्र को 24 घंटे बिजली की दरकार होती है।
करीब 22 इस्टीमेट तैयार कर झांसी भेजे गए हैं। मंजूरी मिल गई तो स्वतंत्र फीडर बनाकर जल शोधन संयंत्र को 24 घंटे बिजली दी जाएगी। एमडी को भी पत्र भेजकर मौजूदा स्थिति से अवगत कराया गया है। उच्च अधिकारियों से जैसे ही निर्देश मिलेंगे, उसी के अनुसार काम किया जाएगा।
- नंदलाल, अधीक्षण अभियंता, बिजली निगम