{"_id":"6940578ef14756c64f0a0634","slug":"rain-damages-green-peas-forcing-farmers-to-harvest-them-prematurely-orai-news-c-224-1-ori1005-138059-2025-12-16","type":"story","status":"publish","title_hn":"Jalaun News: बारिश से खराब हुई हरी मटर, समय से पहले तुड़वा रहे किसान","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Jalaun News: बारिश से खराब हुई हरी मटर, समय से पहले तुड़वा रहे किसान
विज्ञापन
फोटो - 08 खेत में हरी मटर तोड़ते मजदूर। संवाद
विज्ञापन
मुहम्मदाबाद। इस बार हरी मटर की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। बोआई के बाद लगातार तीन दिन हुई बारिश से कई खेतों में मटर निकलने से पहले ही खराब हो गई। इससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। जिन किसानों ने दोबारा बोआई की, उन्हें भी उम्मीद के मुताबिक न गुणवत्ता अच्छी मिली न पैदावार। ऐसे में किसान लागत भी नहीं निकाल पाएंगे। इस वजह से समय से पहले ही मटर तुड़वा रहे हैं।
किसानों का कहना है कि अर्किल किस्म का हरी मटर का बीज करीब 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल मिलता है। एक बीघा में खाद, बीज, जुताई, बोआई, दवा, पानी और मजदूरी मिलाकर करीब 10 हजार रुपये तक खर्च आ जाता है। समय से बोआई करने के बावजूद अचानक हुई बारिश ने फसल को पूरी तरह चौपट कर दिया। जिन किसानों ने मटर दोबारा बोई थी, उन्हें एक बीघा में मात्र चार क्विंटल मटर मिल रही है। वहीं, सामान्य स्थिति में एक बीघा में 10 क्विंटल के करीब पैदावार होती है।
किसान देवेंद्र राजपूत, राधे राजपूत और राजकुमार मुखिया ने बताया कि सामान्य तौर पर 15 अक्तूबर से मटर की बोआई शुरू हो जाती है। 60 से 65 दिनों में फसल तैयार हो जाती है।
इसके बाद किसान दूसरी फसल की तैयारी कर लेते हैं, लेकिन इस बार बारिश के कारण खेत लंबे समय तक खाली पड़े रहे। मजबूरी में कई किसान फसल पूरी तरह तैयार होने से पहले ही मटर तुड़वा रहे हैं।
एक बीघा हरी मटर की खेती में लगभग 10 हजार रुपये का खर्च आता है। इसमें करीब चार हजार रुपये बीज, एक हजार खाद, तीन हजार दवा व लेबर, एक हजार सिंचाई और अन्य खर्च शामिल हैं। इसके बावजूद प्रति बीघा पैदावार महज तीन से चार क्विंटल रह गई है, जिससे लागत निकालना भी कठिन हो गया है। - तारिक अली, किसान
मटर तोड़ने वाले मजदूर को 210 से 250 रुपये प्रति झिल्ली देना पड़ रहा है। पल्लेदार करीब 500 रुपये प्रति व्यक्ति ले रहा है। इसके अलावा 15 रुपये प्रति झिल्ली अलग से खर्च हो रहे हैं। वजन में भी दो से तीन किलो प्रति झिल्ली कटौती की जा रही है। शुरुआत में दाम ठीक थे, लेकिन जैसे-जैसे आवक बढ़ी, रेट लगातार गिरते चले गए। उन्होंने मांग की कि सरकार मटर के भी समर्थन मूल्य तय करें, ताकि किसानों को उचित दाम मिल सके।
- पूरन वर्मा, किसान
समय से बोआई करने के बावजूद बारिश से खेत जलमग्न हो गए और अंकुरण भी नहीं हो पाया। पूरी फसल खराब हो गई। न तो मुआवजा मिला और न ही दोबारा बोआई संभव हो सकी। अधिक लागत के कारण कुछ जमीन खाली छोड़नी पड़ी।
- स्वयं प्रकाश निरंजन, किसान
बुंदेलखंड में हरी मटर की पैदावार सबसे अधिक होती है। इसे खरीदने के लिए कानपुर, गोरखपुर, गोंडा, बस्ती, लखनऊ और कोलकाता तक के व्यापारी एजेंटों के माध्यम से आते हैं। किन इस बार न फसल ठीक हुई और न ही दाम मिले। पहले मटर बेचकर गेहूं की फसल की तैयारी हो जाती थी, लेकिन इस बार मौसम की मार से किसान पूरी तरह टूट चुका है।
- काजू दुबे, किसान
बेमौसम बारिश होने से पौधा कमजोर हो गया है। इससे फसल पर इसका सीधा असर पड़ा है। कुछ दिन बाद निकली धूप से फलिया कमजोर हो गई है। इससे उपज में कमी हुई है।
- गौरव यादव, जिला कृषि अधिकारी
Trending Videos
किसानों का कहना है कि अर्किल किस्म का हरी मटर का बीज करीब 10 हजार रुपये प्रति क्विंटल मिलता है। एक बीघा में खाद, बीज, जुताई, बोआई, दवा, पानी और मजदूरी मिलाकर करीब 10 हजार रुपये तक खर्च आ जाता है। समय से बोआई करने के बावजूद अचानक हुई बारिश ने फसल को पूरी तरह चौपट कर दिया। जिन किसानों ने मटर दोबारा बोई थी, उन्हें एक बीघा में मात्र चार क्विंटल मटर मिल रही है। वहीं, सामान्य स्थिति में एक बीघा में 10 क्विंटल के करीब पैदावार होती है।
विज्ञापन
विज्ञापन
किसान देवेंद्र राजपूत, राधे राजपूत और राजकुमार मुखिया ने बताया कि सामान्य तौर पर 15 अक्तूबर से मटर की बोआई शुरू हो जाती है। 60 से 65 दिनों में फसल तैयार हो जाती है।
इसके बाद किसान दूसरी फसल की तैयारी कर लेते हैं, लेकिन इस बार बारिश के कारण खेत लंबे समय तक खाली पड़े रहे। मजबूरी में कई किसान फसल पूरी तरह तैयार होने से पहले ही मटर तुड़वा रहे हैं।
एक बीघा हरी मटर की खेती में लगभग 10 हजार रुपये का खर्च आता है। इसमें करीब चार हजार रुपये बीज, एक हजार खाद, तीन हजार दवा व लेबर, एक हजार सिंचाई और अन्य खर्च शामिल हैं। इसके बावजूद प्रति बीघा पैदावार महज तीन से चार क्विंटल रह गई है, जिससे लागत निकालना भी कठिन हो गया है। - तारिक अली, किसान
मटर तोड़ने वाले मजदूर को 210 से 250 रुपये प्रति झिल्ली देना पड़ रहा है। पल्लेदार करीब 500 रुपये प्रति व्यक्ति ले रहा है। इसके अलावा 15 रुपये प्रति झिल्ली अलग से खर्च हो रहे हैं। वजन में भी दो से तीन किलो प्रति झिल्ली कटौती की जा रही है। शुरुआत में दाम ठीक थे, लेकिन जैसे-जैसे आवक बढ़ी, रेट लगातार गिरते चले गए। उन्होंने मांग की कि सरकार मटर के भी समर्थन मूल्य तय करें, ताकि किसानों को उचित दाम मिल सके।
- पूरन वर्मा, किसान
समय से बोआई करने के बावजूद बारिश से खेत जलमग्न हो गए और अंकुरण भी नहीं हो पाया। पूरी फसल खराब हो गई। न तो मुआवजा मिला और न ही दोबारा बोआई संभव हो सकी। अधिक लागत के कारण कुछ जमीन खाली छोड़नी पड़ी।
- स्वयं प्रकाश निरंजन, किसान
बुंदेलखंड में हरी मटर की पैदावार सबसे अधिक होती है। इसे खरीदने के लिए कानपुर, गोरखपुर, गोंडा, बस्ती, लखनऊ और कोलकाता तक के व्यापारी एजेंटों के माध्यम से आते हैं। किन इस बार न फसल ठीक हुई और न ही दाम मिले। पहले मटर बेचकर गेहूं की फसल की तैयारी हो जाती थी, लेकिन इस बार मौसम की मार से किसान पूरी तरह टूट चुका है।
- काजू दुबे, किसान
बेमौसम बारिश होने से पौधा कमजोर हो गया है। इससे फसल पर इसका सीधा असर पड़ा है। कुछ दिन बाद निकली धूप से फलिया कमजोर हो गई है। इससे उपज में कमी हुई है।
- गौरव यादव, जिला कृषि अधिकारी

फोटो - 08 खेत में हरी मटर तोड़ते मजदूर। संवाद

फोटो - 08 खेत में हरी मटर तोड़ते मजदूर। संवाद

फोटो - 08 खेत में हरी मटर तोड़ते मजदूर। संवाद

फोटो - 08 खेत में हरी मटर तोड़ते मजदूर। संवाद

फोटो - 08 खेत में हरी मटर तोड़ते मजदूर। संवाद
