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Jhansi: दस में से एक मरीज पर एंटीबायोटिक बेअसर, मेडिकल कॉलेज में भर्ती रहे मरीजों की जांच में खुलासा
अमर उजाला नेटवर्क, झांसी
Published by: दीपक महाजन
Updated Tue, 30 Dec 2025 01:43 PM IST
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सार
डॉ. रामबाबू सिंह ने बताया कि हर महीने आईसीयू में भर्ती दस में से एक मरीज पर एंटीबायोटिक दवा बेअसर होने की स्थिति मिल रही है, जो कई मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रही है।
दवा (प्रतीकात्मक फोटो)
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विस्तार
बिना चिकित्सीय सलाह के अंधाधुंध एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन मरीजों की जान पर भारी पड़ रहा है। महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के आईसीयू में पिछले महीने भर्ती रहे करीब 100 रोगियों का माइक्रोबायोलॉजी लैब में ड्रग सेंसिटिविटी टेस्ट कराया गया। जांच में पाया गया कि हर दस में से एक मरीज पर एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं कर रही हैं।
चिकित्सकों का आकलन है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध की वजह से सामान्य संक्रमण भी मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. रामबाबू सिंह ने बताया कि इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में भर्ती मरीजों की पहले कल्चर जांच कराते हैं। इससे उनके शरीर में मौजूद जीवाणु, रोगाणु आदि की मौजूदगी और प्रकार का पता लगाया जाता है। इसके बाद ड्रग सेंसिटिविटी टेस्ट (दवा संवेदनशीलता परीक्षण) कराते हैं जिससे मरीज पर कौन सी दवा असर कर रही है और कौन सी नहीं, इसकी जानकारी होती है। मेडिकल कॉलेज में मरीजों को कई तरह की एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। इनमें मेरोपेनम, इमिपेनेम, टैजोबैक्टम, पिपेरासिलिन, एमिकासिन, एमोक्सीक्लेव, फेरोपेनम, सिप्रोफ्लोक्सासिन, जेंटामाइसिन, वैनकोमाइसिन आदि शामिल हैं। उन्होंने बताया कि हर महीने आईसीयू में भर्ती दस में से एक मरीज पर एंटीबायोटिक दवा बेअसर होने की स्थिति मिल रही है, जो कई मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रही है।
इन कारणों से एंटीबायोटिक दवाएं हो रहीं बेअसर
एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल जीवाणु से होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। ये दवाएं जीवाणु को न सिर्फ बढ़ने से रोकती हैं, बल्कि उसे मारने का भी काम करती है। फिर रोगी स्वस्थ हो जाता है लेकिन चिंता की बात है कि जरा सा बुखार आए या खांसी, लोग खुद ही मेडिकल स्टोर से एंटीबायोटिक दवा खरीदकर खा लेते हैं। जो मरीज चिकित्सीय सलाह पर एंटीबायोटिक खाते हैं, उनमें से भी कई या तो पर्याप्त डोज का सेवन नहीं करते या अधूरा कोर्स छोड़ देते हैं। इन कारणों से मरीजों में प्रतिरोध उत्पन्न हो रहा है। पहले जिन संक्रमणों का इलाज सामान्य एंटीबायोटिक से आसानी से हो जाता था, अब वही जटिल रूप ले रहे हैं। मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ रहा है और इलाज की लागत भी बढ़ रही है। कुछ मामलों में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि युवा मरीजों की भी जान बचाना मुश्किल हो जाता है।
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चिकित्सकों का आकलन है कि एंटीबायोटिक प्रतिरोध की वजह से सामान्य संक्रमण भी मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. रामबाबू सिंह ने बताया कि इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में भर्ती मरीजों की पहले कल्चर जांच कराते हैं। इससे उनके शरीर में मौजूद जीवाणु, रोगाणु आदि की मौजूदगी और प्रकार का पता लगाया जाता है। इसके बाद ड्रग सेंसिटिविटी टेस्ट (दवा संवेदनशीलता परीक्षण) कराते हैं जिससे मरीज पर कौन सी दवा असर कर रही है और कौन सी नहीं, इसकी जानकारी होती है। मेडिकल कॉलेज में मरीजों को कई तरह की एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। इनमें मेरोपेनम, इमिपेनेम, टैजोबैक्टम, पिपेरासिलिन, एमिकासिन, एमोक्सीक्लेव, फेरोपेनम, सिप्रोफ्लोक्सासिन, जेंटामाइसिन, वैनकोमाइसिन आदि शामिल हैं। उन्होंने बताया कि हर महीने आईसीयू में भर्ती दस में से एक मरीज पर एंटीबायोटिक दवा बेअसर होने की स्थिति मिल रही है, जो कई मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रही है।
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इन कारणों से एंटीबायोटिक दवाएं हो रहीं बेअसर
एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल जीवाणु से होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। ये दवाएं जीवाणु को न सिर्फ बढ़ने से रोकती हैं, बल्कि उसे मारने का भी काम करती है। फिर रोगी स्वस्थ हो जाता है लेकिन चिंता की बात है कि जरा सा बुखार आए या खांसी, लोग खुद ही मेडिकल स्टोर से एंटीबायोटिक दवा खरीदकर खा लेते हैं। जो मरीज चिकित्सीय सलाह पर एंटीबायोटिक खाते हैं, उनमें से भी कई या तो पर्याप्त डोज का सेवन नहीं करते या अधूरा कोर्स छोड़ देते हैं। इन कारणों से मरीजों में प्रतिरोध उत्पन्न हो रहा है। पहले जिन संक्रमणों का इलाज सामान्य एंटीबायोटिक से आसानी से हो जाता था, अब वही जटिल रूप ले रहे हैं। मरीजों को लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ रहा है और इलाज की लागत भी बढ़ रही है। कुछ मामलों में स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि युवा मरीजों की भी जान बचाना मुश्किल हो जाता है।
