धर्म: दुनिया का इकलौता मंदिर जो ब्रह्मा और उनकी दूसरी पत्नी को है समर्पित, जानिए क्यों कहा जाता है “तीर्थराज”
धार्मिकनगरी पुष्कर में स्थापित ब्रह्मा मंदिर सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा को समर्पित विशिष्ट मंदिर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी पर आकर यज्ञ किया था और इसी स्थान को अपने मंदिर के लिए चुना।
विस्तार
राजस्थान के अजमेर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर पवित्र धार्मिकनगरी पुष्कर में स्थापित ब्रह्मा मंदिर सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा को समर्पित विशिष्ट मंदिर है, जो पवित्र सरोवर के पास है। यह मंदिर करीब 2000 साल पुराना माना जाता है, हालांकि माैजूदा संरचना 14वीं शताब्दी की है। वैसे तो पुष्कर में सैकड़ों मंदिर हैं लेकिन ब्रह्मा जी की तपस्थली माने जाने की वजह से ब्रह्मा मंदिर में आस्था का सैलाब सामान्य दिनों में भी उमड़ता है। दुनिया का यह इकलाैता मंदिर है जिसका गर्भगृह भगवान ब्रह्मा और उनकी दूसरी पत्नी गायत्री को समर्पित है। वहीं ब्रह्मा की पहली पत्नी सावित्री को समर्पित मंदिर रत्नागिरि पहाड़ी पर स्थित है, जो पुष्कर सरोवर से करीब पांच किलोमीटर दूर ऊंचाई पर है। यह भी जानना रोचक है कि राजस्थान के बाड़मेर जिले के बालोतरा में श्री खेतेश्वर ब्रह्मधाम है। जहां भगवान ब्रह्मा के साथ उनकी पहली पत्नी सावित्री की संयुक्त प्रतिमा स्थापित है, जो इसे अन्य मंदिरों से विशिष्ट बनाती है।
उत्तर भारतीय नागर शैली में बना मंदिर
ब्रह्मा मंदिर में राजस्थानी स्थापत्य की स्थानीय विशेषताओं के साथ उत्तर भारत नागर शैली का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। यह मंदिर संगमरमर और पत्थर की शिलाओं से निर्मित है। यहां लगे पत्थर में पाकिस्तान के लाैहार के हिंदू श्रद्धालु के योगदान का भी जिक्र है। मंदिर का लाल रंग का ऊंचा शिखर दूर से ही दिखाई देता है और मंदिर में हंस (पक्षी) विशिष्ट प्रतीक के रूप में अंकित है जो ब्रह्मा जी का वाहन माना जाता है। यूं तो कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पुष्कर मेले के दौरान ब्रह्मा को समर्पित विशेष उत्सव मनाया जाता है। श्रद्धालु पुष्कर सरोवर में स्नान कर पवित्र करने के बाद ब्रह्मा मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं।
तीर्थराज ऐसी है धार्मिक मान्यता
देश के पांच प्रमुख तीर्थ स्थलों में प्रयागराज, वाराणसी (उत्तर प्रदेश), गया (बिहार), कुरुक्षेत्र (हरियाणा) के अलावा पुष्कर भी शामिल है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने पृथ्वी पर आकर यज्ञ किया था और इसी स्थान को अपने मंदिर के लिए चुना। इसलिए पुष्कर को हिंदू धर्म में “तीर्थराज” कहा जाता है। आठवीं शताब्दी में महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार में योगदान दिया था। सरोवर के पास ही बने मंदिर में आदि शंकराचार्य की स्थापित मूर्ति इसकी गवाही देती है। ब्रह्मा मंदिर की वर्तमान संरचना का श्रेय रतलाम के महाराजा जवात राज को दिया जाता है, जिन्होंने मंदिर की मरम्मत कर उसमें कुछ परिवर्तन किए। धार्मिक मान्यता है कि पुष्कर सरोवर में स्नान करने से पापों का नाश होता है। पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। पुष्कर सरोवर को पितृ तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए भी बेहद पवित्र माना गया है। गया के बाद पुष्कर को पितृ कर्मों का प्रमुख स्थल माना जाता है। राजस्थान पर्यटन विभाग के मुताबिक ब्रह्मा मंदिर को दुनिया के दस सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में शामिल किया गया है। यह भी बता दें कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ स्थानों पर भी ब्रह्मा मंदिर हैं। भारत के बाहर इंडोनेशिया और कंबोडिया में भी भगवान ब्रह्मा को समर्पित भव्य मंदिर हैं।
पुष्कर क्षेत्र में ब्रह्मा पूजा की प्राचीन परंपरा
राजस्थान के अजमेर स्थित अकबर के किले में बनाए गए राजकीय संग्रहालय में भगवान ब्रह्मा की तीन प्राचीन मूर्तियां प्रदर्शित हैं। 10वीं सदी के आसपास की ये मूर्तियां ऐतिहासिक, धार्मिक और पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। एक मूर्ति में भगवान ब्रह्मा को उनके पारंपरिक स्वरूप चार मुख, कमंडल और वेद के संकेतों के साथ दर्शाया गया है। यह प्रतिमा पुष्कर क्षेत्र या उसके आसपास से प्राप्त मानी जाती है, जहां ब्रह्मा पूजा की प्राचीन परंपरा रही है। संग्रहालय में रखी गईं ये मूर्तियां इस तथ्य की पुष्टि करती हैं कि मध्यकाल से पहले भी पुष्कर–अजमेर क्षेत्र में ब्रह्मा पूजा प्रचलित थी। इतिहासकारों का अनुमान है कि 10वीं से 12वीं सदी तक शासन करने वाले चाैहान वंश के राजाओं ने अपने कार्यकाल में इन मंदिरों को विशेष रूप से संरक्षित किया होगा।
ब्रह्मा मंदिर में चांदी के उपयोग और कछुआ
ब्रह्मा मंदिर में हंस की तरह कुछ और धार्मिक प्रतीक है, जिनमें चांदी का उपयोग और कछुआ प्रमुख हैं। गर्भगृह में मूर्ति की सजावट में चांदी का उपयोग किया गया है। इसका उपयोग पवित्रता और वैभव का प्रतीक माना जाता है। श्रद्धालु अक्सर चांदी के दीपक, कलश और चांदी की छोटी मूर्तियां अर्पित करते हैं। वहीं मंदिर के फर्श पर शीशे में रखा गया कछुआ स्थिरता का प्रतीक है। इसका वास्तुशास्त्रीय महत्व भी हो सकता है।
राम-राम सा...
पुष्कर सरोवर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सनातन संस्कृति की आध्यात्मिक परंपरा का जीवंत केंद्र भी है। इस धार्मिक नगरी पुष्कर में श्रद्धा और लोकसंस्कृति की झलक उस समय देखने को मिली, जब शहर के प्रमुख मार्गों और प्रवेश द्वारों पर राम-राम सा लिखे होर्डिंग लगे हुए मिले। राजस्थानी अभिवादन शैली में लगाए गए ये होर्डिंग श्रद्धालुओं और पर्यटकों का पारंपरिक तरीके से स्वागत कर रहे हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार इन होर्डिंग्स का उद्देश्य राजस्थानी संस्कृति और लोकभाषा को बढ़ावा देना, तीर्थनगरी की आध्यात्मिक पहचान को मजबूत करना और देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को अपनापन महसूस कराना है।
पुष्कर मंदिर और सरोवर का वीडियो...
- पुष्कर (अजमेर) से लाैटकर अमरनाथ की रिपोर्ट
