{"_id":"6937e4ec3cbd37fe930f7f12","slug":"jhansi-bjp-minister-lost-his-post-for-making-vande-mataram-compulsory-in-schools-2025-12-09","type":"story","status":"publish","title_hn":"Jhansi: स्कूलों में वंदे मातरम लागू करने वाले यूपी के मंत्री को गंवानी पड़ी थी कुर्सी, बातचीत में बताई यह वजह","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Jhansi: स्कूलों में वंदे मातरम लागू करने वाले यूपी के मंत्री को गंवानी पड़ी थी कुर्सी, बातचीत में बताई यह वजह
अमर उजाला नेटवर्क, झांसी
Published by: दीपक महाजन
Updated Tue, 09 Dec 2025 02:30 PM IST
सार
तत्कालीन मंत्री रवींद्र शुक्ल ने बेसिक स्कूलों में वंदेमातरम का गायन अनिवार्य कर दिया था। जिसका विरोध शुरू हो गया। इस पर उस समय सीएम रहे कल्याण सिंह ने आदेश वापस लेने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
विज्ञापन
पूर्व मंत्री रवींद्र शुक्ल
- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
विस्तार
राष्ट्रगीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा देश भर में हो रही है। भाजपा मुखर है, लेकिन यह भी एक सच है कि सत्ता में रहने के दौरान इस गीत को उत्तर प्रदेश के बेसिक स्कूलों में अनिवार्य किए जाने पर 27 साल पहले भाजपा के मंत्री रवींद्र शुक्ल को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। केंद्र की साझा सरकार में शामिल दलों के दबाव में प्रदेश शासन को यह आदेश भी वापस लेना पड़ा था।
स्कूलों में वंदेमातरम अनिवार्य करते ही शुरू हो गया था विराेध
यह वह दौर था जब केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। प्रदेश सरकार में रवींद्र शुक्ल बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री थे। अपने ओजस्वी भाषणों के कारण चर्चाओं में रहने वाले रवींद्र शुक्ल ने शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई फैसले लिए। इसी क्रम में उन्होंने प्रदेश के बेसिक स्कूलों में वंदेमातरम का गायन अनिवार्य कर दिया था। यह आदेश तब जारी किया गया था जब केंद्र में अलग-अलग दलों के सहयोग से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार चला रहे थे। यूपी सरकार के इस आदेश का पूरे देश में कड़ा विरोध हुआ। उलेमा, मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड, बसपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया।
वंदे मातरम के खिलाफ फतवा जारी
वंदे मातरम के खिलाफ फतवा भी जारी किया गया। लोकसभा में भी जमकर हंगामा हुआ। विवाद बढ़ने पर पीएम और सीएम दोनों ने सफाई दी कि स्कूलों में वंदेमातरम गायन अनिवार्य नहीं है। इसके बाद भी रवींद्र शुक्ल अपने बयानों पर डटे रहे जिससे केंद्र और प्रदेश सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया। इस दौरान संसद में विशेषाधिकार हनन का भी प्रस्ताव आया। केंंद्र की साझा सरकार में शामिल दलों ने भी दबाव बनाया। आखिरकार वाजपेयी सरकार भी दबाव में आ गई।
4 दिसंबर 1998 को बीजेपी को अपने ही मंत्री को करना पड़ा बर्खास्त
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने वंदेमातरम गायन का आदेश वापस लेने के लिए रवींद्र शुक्ल से कहा लेकिन उन्होंने उनकी बात को भी नहीं माना। रवींद्र ने कहा कि अब वह अपनी कलम से लिखा आदेश नहीं पलटेंगे चाहे कुर्सी चली जाए। बाद में सरकार ने इस पर अपना पक्ष रखते हुए सभी आदेश वापस ले लिए।अमर उजाला ने 4 दिसंबर 1998 के अंक में ''''कल्प योजना के अंतर्गत जारी सभी आदेश निरस्त'''' शीर्षक से खबर प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित की थी। उसी दिन रवींद्र शुक्ल को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। राष्ट्रगीत पर देश की सबसे बड़ी पंचायत में चर्चा के बीच रवींद्र शुक्ल ने बर्खास्तगी के बारे में पूरी जानकारी अमर उजाला से साझा की।
अनजाने में गड़बड़ कर दी थी रवींद्र ने
झांसी से चार दफा विधायक चुने गए तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री रवींद्र शुक्ल अनजाने में मीडिया को बयान देकर भी बुरे फंस गए थे। उनके बयान से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के आश्वासन की सच्चाई संदिग्ध हो गई थी। 01 दिसंबर 1998 को रवींद्र शुक्ल ने यह बयान दिया था कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने बजट भाषण में कल्प योजना की अवधारणा दी थी और उसी का हिस्सा वंदे मातरम है। इस संबंध में 25 जुलाई को शासनादेश भी जारी किया जा चुका है। शुक्ल के मुताबिक कल्प योजना को अब तक 5000 स्कूलों में लागू किया जा चुका है और इस वर्ष के अंत तक शेष 1,00,000 विद्यालयों में लागू करने की योजना है। जबकि इससे पहले सरकार ने कहा था कि वंदेमातरम अनिवार्य नहीं है। बकाैल रवींद्र उन्हें सरकार के इस बयान की जानकारी नहीं थी। क्योंकि वह पत्नी का इलाज करवाकर मुंबई से लाैटे थे।
वंदे मातरम के खिलाफ जारी हुआ था फतवा
शिक्षण संस्थानों में वंदे मातरम को अनिवार्य रूप से लागू करने के आदेश को इस्लामिक विश्वविद्यालय दारूल उलूम के उलेमा ने इस्लाम के लिए खतरा माना था। मुफि्तयों ने 13 नवंबर 1998 को इस संबंध में फतवा जारी किया था। उन्होंने वंदे मातरम को हराम करार देते हुए फतवा सुनाया। उनकी राय थी कि वतन से मोहब्बत और वतन की पूजा अलग-अलग मसले हैं। तब मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के अध्यक्ष रहे अली मियां ने कड़ा विरोध किया था। उनके बाद शिया धर्मगुरु रहे माैलाना कल्बे सादिक ने भी कहा था कि मुसलमानों को वंदे मातरम और सरस्वती वंदना किसी भी सूरत में कबूल नहीं है।
सुनिए बर्खास्तगी की कहानी, रवींद्र शुक्ल की जुबानी....
Trending Videos
स्कूलों में वंदेमातरम अनिवार्य करते ही शुरू हो गया था विराेध
यह वह दौर था जब केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। प्रदेश सरकार में रवींद्र शुक्ल बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री थे। अपने ओजस्वी भाषणों के कारण चर्चाओं में रहने वाले रवींद्र शुक्ल ने शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई फैसले लिए। इसी क्रम में उन्होंने प्रदेश के बेसिक स्कूलों में वंदेमातरम का गायन अनिवार्य कर दिया था। यह आदेश तब जारी किया गया था जब केंद्र में अलग-अलग दलों के सहयोग से अटल बिहारी वाजपेयी सरकार चला रहे थे। यूपी सरकार के इस आदेश का पूरे देश में कड़ा विरोध हुआ। उलेमा, मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड, बसपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया।
विज्ञापन
विज्ञापन
वंदे मातरम के खिलाफ फतवा जारी
वंदे मातरम के खिलाफ फतवा भी जारी किया गया। लोकसभा में भी जमकर हंगामा हुआ। विवाद बढ़ने पर पीएम और सीएम दोनों ने सफाई दी कि स्कूलों में वंदेमातरम गायन अनिवार्य नहीं है। इसके बाद भी रवींद्र शुक्ल अपने बयानों पर डटे रहे जिससे केंद्र और प्रदेश सरकार के सामने संकट खड़ा हो गया। इस दौरान संसद में विशेषाधिकार हनन का भी प्रस्ताव आया। केंंद्र की साझा सरकार में शामिल दलों ने भी दबाव बनाया। आखिरकार वाजपेयी सरकार भी दबाव में आ गई।
4 दिसंबर 1998 को बीजेपी को अपने ही मंत्री को करना पड़ा बर्खास्त
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने वंदेमातरम गायन का आदेश वापस लेने के लिए रवींद्र शुक्ल से कहा लेकिन उन्होंने उनकी बात को भी नहीं माना। रवींद्र ने कहा कि अब वह अपनी कलम से लिखा आदेश नहीं पलटेंगे चाहे कुर्सी चली जाए। बाद में सरकार ने इस पर अपना पक्ष रखते हुए सभी आदेश वापस ले लिए।अमर उजाला ने 4 दिसंबर 1998 के अंक में ''''कल्प योजना के अंतर्गत जारी सभी आदेश निरस्त'''' शीर्षक से खबर प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित की थी। उसी दिन रवींद्र शुक्ल को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। राष्ट्रगीत पर देश की सबसे बड़ी पंचायत में चर्चा के बीच रवींद्र शुक्ल ने बर्खास्तगी के बारे में पूरी जानकारी अमर उजाला से साझा की।
अनजाने में गड़बड़ कर दी थी रवींद्र ने
झांसी से चार दफा विधायक चुने गए तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री रवींद्र शुक्ल अनजाने में मीडिया को बयान देकर भी बुरे फंस गए थे। उनके बयान से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के आश्वासन की सच्चाई संदिग्ध हो गई थी। 01 दिसंबर 1998 को रवींद्र शुक्ल ने यह बयान दिया था कि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने बजट भाषण में कल्प योजना की अवधारणा दी थी और उसी का हिस्सा वंदे मातरम है। इस संबंध में 25 जुलाई को शासनादेश भी जारी किया जा चुका है। शुक्ल के मुताबिक कल्प योजना को अब तक 5000 स्कूलों में लागू किया जा चुका है और इस वर्ष के अंत तक शेष 1,00,000 विद्यालयों में लागू करने की योजना है। जबकि इससे पहले सरकार ने कहा था कि वंदेमातरम अनिवार्य नहीं है। बकाैल रवींद्र उन्हें सरकार के इस बयान की जानकारी नहीं थी। क्योंकि वह पत्नी का इलाज करवाकर मुंबई से लाैटे थे।
वंदे मातरम के खिलाफ जारी हुआ था फतवा
शिक्षण संस्थानों में वंदे मातरम को अनिवार्य रूप से लागू करने के आदेश को इस्लामिक विश्वविद्यालय दारूल उलूम के उलेमा ने इस्लाम के लिए खतरा माना था। मुफि्तयों ने 13 नवंबर 1998 को इस संबंध में फतवा जारी किया था। उन्होंने वंदे मातरम को हराम करार देते हुए फतवा सुनाया। उनकी राय थी कि वतन से मोहब्बत और वतन की पूजा अलग-अलग मसले हैं। तब मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के अध्यक्ष रहे अली मियां ने कड़ा विरोध किया था। उनके बाद शिया धर्मगुरु रहे माैलाना कल्बे सादिक ने भी कहा था कि मुसलमानों को वंदे मातरम और सरस्वती वंदना किसी भी सूरत में कबूल नहीं है।
सुनिए बर्खास्तगी की कहानी, रवींद्र शुक्ल की जुबानी....
विज्ञापन
रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.
विज्ञापन
विज्ञापन