UP: असमय बारिश से फसलों में नए रोग लगने की संभावना बढ़ी, जलवायु परिवर्तन ने रोगों का समय भी बदला…ये भी खतरा
Kanpur News: सीएसए के अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों के कीट और रोग न केवल म्यूटेट होकर मजबूत हो रहे हैं, बल्कि बारिश के अनियमित चक्र से मिट्टी जनित रोग बढ़ रहे हैं। वहीं, पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है, जिससे कृषि पर गहरा संकट आ गया है।
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कानपुर में जलवायु परिवर्तन ने इंसानों के साथ सूक्ष्म जीवों और कीटों की दुनिया में भी उथलपुथल मचा दी है। मौसम चक्र के आगे-पीछे होने से सब्जियों और फसलों में लगने वाले सूक्ष्म जीवों और कीटों का जीवन चक्र संकट में पड़ रहा है। बारिश के अनियमित चक्र ने फसलों में होने वाले रोगों के समय में बदलाव कर दिया है। मसलन बारिश में जिन रोगों के होने की संभावना होती है, उस समय बारिश न होने से फसल रोग से बच जा रही है। असमय ज्यादा बारिश होने से फसलों में नए रोगों को संभावना बढ़ गई है।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के कीट विज्ञान और पादप रोग विभाग ने जलवायु परिवर्तन से पैदा इन चुनौतियाें का अध्ययन किया है। इसके साथ ही नए पैदा होने वाले कीटों की आशंका को लेकर भी काम कर रहे हैं। अध्ययन में यह भी मिला है कि कुछ कीट हालात से जूझकर मजबूत हो गए हैं। इससे इन कीटों से बचाव के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाओं का पावर भी बदल जाएगा।
वर्षा में कवक रोग सीमित होगा, लेकिन मिट्टी से होने वाला बढ़ता है
कीट विज्ञान और पादप रोग दोनों विभागों के अध्यक्ष डॉ. मुकेश श्रीवास्तव का कहना है कि वर्षा का पैटर्न बदलने से रोग चक्र में बदलाव आता है। कम वर्षा में कवक रोग सीमित होगा, लेकिन मिट्टी से होने वाला रोग फ्यूजेरियम, विल्ट, चारकोल राट बढ़ता है। अधिक वर्षा से पछेती तुषार, कोमल फफूंदी, विल्ट, कवक आदि रोग बढ़ जाते हैं। एक खास रोग फैलने के समय फसल न होने पर उस रोग से तो बचाव होगा, लेकिन दूसरा रोग लगने का खतरा है। इसके अलावा कीटों के म्यूटेशन से नया वैरिएंट नई चुनौती पैदा कर सकता है।
पैदावार भी प्रभावित कर रहा है जलवायु परिवर्तन
अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन से सफेद मक्खियां सरीखे के कीटों का प्रजनन बढ़ा है। इससे टमाटर के पत्तों को मोड़ने वाले रोग के विषाणु तेजी से फैलते हैं। अध्ययन में रुझान मिले हैं कि जलवायु परिवर्तन से फसलों की बीमारियां और इनकी गंभीरता दोनों बढ़ सकती हैं। इसके अलावा विभिन्न मौसम में कीटों को खाने वाले अन्य कीट जो संतुलन बनाते हैं, उनकी पैदावार भी जलवायु परिवर्तन प्रभावित कर रहा है। पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बारिश के मौसम में सूखे के कारण फसलों के पौधे संक्रमण को लेकर अधिक संवेदनशील हो रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन से यह भी खतरा
- गर्मी और आवास परिवर्तन से लेडी बग, बीटल, परजीवी ततैया, मकड़ी आदि लाभकारी जीवों में कमी आ सकती है।
- कीटों की आक्रामक प्रजातियां अधिक पनप सकती हैं।
- कार्बन डाई ऑक्साइड का उच्च स्तर पौधों की पोषण गुणवत्ता को कम करता है
- प्राकृतिक शत्रुओं में कमी से कीटों की संख्या में वृद्धि।
- एफिडस समेत अन्य घातक कीटों के प्रजनन में हो सकती वृद्धि।