UP: मेडिकल कॉलेज में डॉ. शाहीन की कुंडली खंगालेगी NIA, 2009 में हुई थी तैनाती…समुदाय विशेष को देती थी तवज्जो
Kannauj News: मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों ने बताया कि डाॅ. शाहीन फार्माकोलाॅजी की डाॅक्टर थी। इससे ओपीडी में नहीं बैठती थी। अगर कोई उसके समुदाय का मरीज आ जाए, तो बहुत सम्मान से बात करती थी और दूसरे वर्ग का कोई मरीज सामने खड़ा हो, तो अभद्रता करने पर उतारू हो जाती थी।
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दिल्ली में हुए धमाके के बाद डॉ. शाहीन को पुलिस ने एके 47 के साथ गिरफ्तार किया है। वह कन्नौज मेडिकल कॉलेज में तैनात रही थी। माना जा रहा है कि डॉ. शाहीन के बारे में जानकारी के लिए एनआईए की टीम मेडिकल कॉलेज आ सकती है। इसको लेकर बुधवार को कर्मचारी भी सशंकित हैं।
मेडिकल कॉलेज के शुरुआती दौर में डॉ. शाहीन यहां रही थी। उस समय वर्ष 2009 में राजकीय मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की मान्यता को लेकर चिकित्सा शिक्षकों का स्थानांतरण कानपुर व लखनऊ से किया गया था। तभी डा. शाहीन को भी स्थानांतरण कर भेजा गया था। मान्यता नहीं मिली तो छह माह बाद वापस कानपुर के लिए स्थानांतरण हो गया था।
वर्ष 2008 में बनकर तैयार हुआ था मेडिकल कॉलेज
राजकीय मेडिकल कालेज की वर्ष 2008 में तैयार हो गया था। काॅलेज के सबसे पहले प्राचार्य डा. आरके गुप्ता थे। वर्ष 2009-10 में एमबीबीएस की मान्यता को लेकर मेडिकल काॅलेज प्रशासन ने प्रयास शुरू किए थे। इससे शासन स्तर से 40 चिकित्सा शिक्षकों को कानपुर, लखनऊ समेत अन्य मेडिकल काॅलेजों से स्थानांतरण कर भेजा गया था। आयोग ने डाॅ. शाहीन को चार सितंबर 2009 को भेजा था। नौ सितंबर 2009 को डॉ. शाहीन ने फार्माकोलाॅजी विभाग में प्रवक्ता पद पर ज्वॉइन कर लिया था।
कानपुर मेडिकल कॉलेज में करा लिया था स्थानांतरण
मान्यता के मानक पूरे नहीं हो सके तो कॉलेज प्रशासन ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को मान्यता के लिए आवेदन नहीं किया था। इससे छह माह बाद 14 मार्च 2010 को डा. शाहीन ने अपना स्थानांतरण वापस कानपुर मेडिकल कॉलेज में करा लिया था। 19 मार्च 2010 को उसे रिलीव कर दिया गया। उस समय मान्यता न होने से छात्रों के प्रवेश भी नहीं हुए थे और शिक्षण कार्य भी नहीं हो रहा था। वर्ष 2012 में एमबीबीएस का पहला बैच आया था।
स्टॉफ से नहीं था ज्यादा मेलजोल
राजकीय मेडिकल कालेज में वर्ष 2009 में डाक्टर, स्टाफ नर्स और लिपिक की तैनाती हो गई थी। उस समय काम करने वाले कर्मचारियों ने बातचीत के दौरान बताया कि डाॅ. शाहीन को काॅलेज में एक-दो बार से ज्यादा नहीं देखा था। जब आती थी तो ज्यादा बात नहीं करती थी। ज्यादातर अकेले में रहती थी और उसकी गाड़ी में एक-दो लोग उसके समुदाय के ही बैठे रहते थे। स्टाफ से मेलजोल नहीं था। बिल्कुल रिजर्व रहती थी।
समुदाय विशेष के लोगों को देती थीं तवज्जो
मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों ने बताया कि डाॅ. शाहीन फार्माकोलाॅजी की डाॅक्टर थी। इससे ओपीडी में नहीं बैठती थी। अगर कोई उसके समुदाय का मरीज आ जाए, तो बहुत सम्मान से बात करती थी और दूसरे वर्ग का कोई मरीज सामने खड़ा हो, तो अभद्रता करने पर उतारू हो जाती थी। दूसरे वर्ग के लोगों से बोलना भी उसको पसंद नहीं था। व्यवहार में भी सौतेलापन झलकता था।