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अमर उजाला स्थापना दिवस: बशीर बद्र से लेकर विशाल भारद्वाज तक... कलम से दुनियाभर में बनाई मेरठ की पहचान

राजन शर्मा, मेरठ Published by: मोहम्मद मुस्तकीम Updated Thu, 12 Dec 2024 11:13 AM IST
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सार

साल 1987, पिछली सदी का यह साल ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद खास रहा। उस वक्त मेरठ जोन से निकली किसान क्रांति की अलख देशभर में प्रज्ज्वलित हो रही थी। इसी दौरान मेरठ में अमर उजाला ने निडर और निष्पक्ष पत्रकारिता की बुनियाद रखी।

Amar Ujala Foundation Day: From Bashir Badr to Vishal Bhardwaj... created Meerut's identity across the world
बशीर बद्र - फोटो : kavya
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विस्तार
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मेरठ में पिछले चार दशक में साहित्य और अदब के क्षेत्र में नए प्रयोग किए गए। गुलाब की पंखुड़ी सरीखे सुकुमार कवि भारत भूषण, गर्जना के संवाहक हरिओम पंवार, आधुनिक गालिब बशीर बद्र से लेकर सृजन की यह श्रृंखला बालीवुड में विशाल भारद्वाज के रूप में मेरठ की पहचान कराती है। यहां रचे गए गीत और गजलों की महक दुनियाभर में महसूस की जाती है। 
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बशीर बद्र ने मेरठ में रचे कई गजल संग्रह

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए।।

मेरठ के लिए यह फख्र की बात है कि इस शेर के खालिक डा. बशीर बद्र की शाम ही नहीं, बल्कि जिंदगी का बड़ा हिस्सा मेरठ के नाम रहा। बशीर बद्र का जन्म अयोध्या में हुआ था, लेकिन मेरठ भी उनकी कर्मभूमि रहा। कई दशकों यहां रहे। शास्त्री नगर में उनका आवास था। यह वो वक्त था जब बशीर बद्र की शायरी हर किसी की ज़ुबान पर होती थी। देश की तमाम महफिल उनके बगैर अधूरी मानी जाती थी। जिंदगी की आम बातों को बेहद खूबसूरती और सलीके से अपनी गजलों में कह जाना बशीर साहब की खासियत है। उन्होंने उर्दू गजल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि मेरठ के श्रोताओं के दिलों में भी उन्होंने अपनी खास जगह बनाई। कवि सुमनेश सुमन बताते हैं कि शुरुआती दिनों में बशीर बद्र बेगमपुल के निकट रहते थे। यहीं हर रोज अदब से जुड़े लोगों की महफिल सजती रहती थीं। मेरठ प्रवास के दौरान बशीर बद्र ने अपने कई लोकप्रिय गजलों के संग्रह भी लिखे।
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ललकार के कवि डा. हरिओम पंवार

मेरी ताकत केवल एक जुबान है
मेरी कविता घायल हिंदुस्तान है।

ये चंद लाइनें डा. हरिओम पंवार के मिजाज और उनके काव्यशिल्प को परिभाषित करने के लिए काफी हैं। सामाजिक और राजनैतिक हल्के की खामियों को डा. पंवार ने अपनी कविताओं के माध्यम से हमेशा ललकारा। इसी जज्बे ने उन्हें राष्ट्रीय अस्मिता के हिंदी कवि के रूप में पहचान दिलाई। उन्हें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं विभिन्न मुख्यमंत्रियों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। निराला पुरस्कार, भारतीय साहित्य संगम पुरस्कार, रश्मि पुरस्कार, जनजागरण सर्वश्रेष्ठ कवि पुरस्कार तथा आवाज-ए-हिन्दुस्थान आदि सम्मान प्रदान किए गए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए गर्व की बात यह है कि यहां के लोगों को पंवार साहब का सानिध्य जन्मभर के लिए मिला है। मुजफ्फरनगर और मेरठ के कालेजों में कानून के प्रोफेसर रहे। मेरठ उनके रोम-राम में रचा है। अमर उजाला से भी उनका आत्मिक रिश्ता है। उनका कहना है कि चार दशक से वह अमर उजाला से जुड़े हैं। अपनी निष्पक्ष और निडर छवि बनाने के लिए अमर उजाला ने कितना त्याग किया, इसके वह चश्मदीद हैं।
 

भारत भूषण कविता के आभूषण

निर्वर्ण खंडहर पृष्ठ है, अंतर कथाएं नष्ट हैं
व्यक्तित्व का यह संस्करण बस आवरण, बस आवरण।

साहित्य के संसार में अपनी सोच और रचनाओं की गहराई से विशिष्ठ स्थान बनाने वाले भारत भूषण की जन्म और कर्मभूमि रहा है मेरठ। एक शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले भारत भूषण काव्यशिल्प भी रचा। उनके सैकड़ों कविताओं व गीतों में सबसे चर्चित ''''राम की जलसमाधि'''' रही। तीन काव्य संग्रह लिखे। पहला सागर के सीप वर्ष 1958 में, दूसरा ये असंगति वर्ष 1993 में और तीसरा मेरे चुनिंदा गीत वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 1946 से मंच से जुड़ने वाले भारत भूषण मृत्यु से कुछ माह पूर्व तक मंच से गीतों की रसधार बहाते रहे। उन्होंने महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह ''''दिनकर'''' जैसे कवि-साहित्यकारों के साथ भी मंच साझा किया। मंच पर कविता की गरिमा और माधुर्य को हमेशा बरकरार रखा।
 

अमेरिका में हिंदी साहित्य को स्थापित किया

अमेरिका में हिंदी साहित्य को स्थापित करने में बड़ा योगदान देने के साथ ही वेद प्रकाश वटुक भाषा और लोक साहित्य पर अनेक पुस्तकों का लेखन और संपादन कर चुके हैं। मूलरूप से बड़ौत क्षेत्र के फजलपुर गांव निवासी वटुक ने मेरठ कॉलेज से स्नातकोत्तर के बाद हार्वर्ड विश्वविद्यालय से संस्कृत और ओल्ड चर्च स्लावॉनिक भाषा के तुलनात्मक अध्ययन पर डी-लिट की उपाधि प्राप्त की। हिंदी के उत्थान के लिए किए गए कार्यों के लिए उन्हें जोहानिसबर्ग में 2012 में सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी प्रथम प्रवासी भारतीय हिंदी भूषण सम्मान से विभूषित किया। वेद प्रकाश वटुक जी ने हाल ही में अपना 94 जन्मदिन मनाया है।
 

पंडित ताराचन्द्र हारीत के महाकाव्य पर हो रहा शोध

महाकवि पंडित ताराचन्द्र हारीत का जन्म मेरठ के सिवाया गांव में एक मई 1920 को हुआ। इनके पिता पं वंशीधर संस्कृत के विद्वान थे। महज 15-16 वर्ष की उम्र में ही हारीत जी ने लेखन यात्रा का आगाज कर दिया था। संस्कृत व आयुर्वेद आदि की शिक्षा खुर्जा में ग्रहण की। इनका प्रथम महाकाव्य दमयन्ती प्रकाशित हुआ। दमयन्ती को उप्र सरकार द्वारा हरिशंकर स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। दूसरा महाप्रयाण खण्डकाव्य के रूप में मेरठ प्रगतिशील साहित्यकार परिषद द्वारा प्रकाशित किया गया। 11 फरवरी 1988 को उनका देहावसान हो गया।
 

समसामायिक विषय की प्रखर कवयित्री

काव्य के क्षेत्र में विशिष्ठ पहचान रखने वाली डा. पूनम शर्मा मेरठ की बहू हैं। इनका जन्म बिहार के बेतिया जिले में हुआ था। इनकी पहचान समसामायिक विषयों पर प्रखर कवयित्री के रूप में है। विभिन्न प्रांतों के पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। खामोशियों के शामियाने शीर्षक से इनका कविता संकलन प्रकाशित है। पटना और नजीबाबाद रेडियो स्टेशन पर इनका काव्यपाठ प्रसारित होता रहता है।
 

नई विधा का शायर अजहर इकबाल

गाली को प्रणाम समझना पड़ता है,
मधुशाला को धाम समझना पड़ता है।
आधुनिक कहलाने के अंधी जिद में,
रावण को भी राम समझना पड़ता है।।

अजहर इकबाल बशीर बद्र और हफीज मेरठी की परंपरा को बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। बीते दशकों में उन्होंने शायरी के नए मानक गढ़े हैं। वह एक अलबेले शायर से इतर पटकथा लेखक, एंकर, टिप्पणीकार और साक्षात्कारकर्ता भी हैं। कविसम्मेलन और मुशायरों में अजहर कामयाबी की जमानत बन चुके हैं। उनकी जश्न-ए-रेख्ता, जश्न-ए-बहार, शंकर शाद मुशायरा और कई अन्य सहित सभी प्रमुख उर्दू/हिंदी भाषा उत्सवों और मुशायरों में शिरकत रहती है। अपनी गजलों में उन्होंने हिंदी और उर्दू को समान रूप से समाहित कर एक नई विधा को जन्म दिया है। अजहर की अनूठी प्रस्तुति और किरदार से वह देश और दुनिया में खासी मकबूलियत हासिल कर चुके हैं। उन्होंने मुख्य रूप से उर्दू/हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने की दिशा में हर्फकार फाउंडेशन की स्थापना की। अजहर इकबाल का जन्म मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना में हुआ। लंबे समय से उनका प्रवास मेरठ में है।

शायरी का विश्वविद्यालय थे हफीज मेरठी

जब सबके लब सिल जाएंगे हाथों से कलम छिन जाएंगे,
कातिल से लोहा लेने का ऐलान करेंगी जंजीरें।
आजादी का दरवाजा भी खुद ही खोलेंगी जंजीरें,
टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगी जब हद से बढ़ेंगी जंजीरें।।

अंग्रेजों के खिलाफ इस इंकलाबी शेर के खालिक हफीज मेरठी हैं। इनका जन्म 10 जनवरी 1922 को मेरठ के मोहल्ला पूर्वा शेखलाल में हकीम इब्राहिम के यहां हुआ था। इनकी शायरी पर आज भी शोध हो रहा है। इनके शिष्याें की लंबी फेहरिस्त है। इन्होंने गुल ओ बुल, जाम ओ मीना और तितलियों के फसाने नहीं लिखे, बल्कि अपने फन और फिक्र को समाजी मसाइल व जंगे आजादी का परचम बना लिया। इनके लिखे अशआर अदब के माथे का झूमर बन गए। हफीज का गजल संग्रह शेर ओ शऊर और गहराईयां हैं। एक दीवान मता ए आखिरी शब को उर्दू अकादमी पुरस्कार मिला। हफीज मेरठी चमक-दमक से दूर रहे, लेकिन उनके शेर फनपारों की तरह समाज में रोशनी बिखेर रहे हैं। खुद्दार मिजाज के हफीज मेरठी को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यश भारती की पेशकश की, लेकिन इन्होंने साफ इंकार कर दिया।

सुमधुर कंठ के धनी धर्मजीत सरल

सुमधुर कंठ के धनी धर्मजीत सरल के गीतों की धूम पूरे देश में थी। साहित्यिक पत्रिकाओं दैनिक हिंदुस्तान, कादंबिनी, सारिका में भी इनकी कविताएं प्रकाशित होती रही हैं। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर साहित्य की साधना करते रहे। बहुत कम साधन और भाव के रहते हुए उन्हें वह स्थान न मिल सका जिसके वह साहित्य जगत में हकदार थे। उनका एक गीत संग्रह तुम पुकारते अमूल्य निधि है। उनके लिखे अनेक बाल गीत विद्यालयों में बच्चों के पाठ्यक्रम में भी लगाए गए हैं। वह 2020 में दिवंगत हो गए।
 

बाल कवि मौलाना इस्माईल मेरठी

रब का शुक्र अदा कर भाई,
जिसने हमारी गाय बनाई।

गोमाता का महत्व समझाती यह नज्म एक मोमिन ने लिखी है। इनका नाम है मौलाना इस्माईल मेरठी। इस लाजवाब शख्सियत का जन्म 12 नवंबर 1833 को हुआ। शुरुआती दौर में गजलें लिखीं, लेकिन बाद में बाल कविताएं उनकी पहचान बन गईं। शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उनकी सेवाएं और काबिलियत देखकर सरकार ने उन्हें खान बहादुर के खिताब से नवाजा। उन्होंने बच्चों के लिए बहुत ही आसान भाषा में नज्में लिखीं जो आज भी लोगों को ज़ुबानी याद हैं। वो सहारनपुर और आगरा में फारसी के उस्ताद के तौर पर मुकर्रर हुए। अजीब चिड़िया, असलम की बिल्ली, एक बच्चा और जुगनू, एक गधा शेर बना, जैसी कृतियां उन्होंने लिखी। उनके द्वारा रचित बाल कविताओं पर आज भी शोध हो रहे हैं। इस्माइल डिग्री कॉलेज और इस्माइल इंटर कॉलेज इन्हीं के नाम पर हैं।

हिंदी गजल के पर्यायवाची ओंकार गुलशन

प्रसिद्ध स्वांग लेखक और लोकगायक खजान सिंह के घर जन्मे ओंकार गुलशन हिंदी गजल के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजे गए। अंगड़ाईयों ने खत लिखे शीर्षक से उनका गजल संग्रह प्रकाशित है। उनकी अनेक गजल दिल्ली दूरदर्शन और आकाशवाणी से प्रसारित हो चुकी हैं।
 

आम आदमी के शायर हैं परवाज

हिंदी-उर्दू शायरी में विजेंद्र सिंह परवाज़ का नाम बेहद सम्मान से लिया जाता है। अब तक 45 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। परवाज आसान जुबान में शायरी कहते हैं इसलिए वो आम आदमी के शायर हैं। विख्यात कथावाचक मुरारी बापू को इनकी शायरी पर झूमते देखा गया है।

दशकों तक मेरठ में रहे शमीम जयपुरी

फिल्मी गीतकार और शायर शमीम साहब का जन्म 1932 में जयपुर में हुआ। उन्हें 1951 में नौचंदी मेले के मुशायरे में आमंत्रित किया गया। वह एक बार मेरठ क्या आये कि यहीं के होकर रह गए। मेरठ के तहसील कोतवाली क्षेत्र की जामा मस्जिद के निकट उनका आशियाना था। मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज न दो .. जैसे अमर गीतों का रचियेता 2003 में अपनी अंतिम सांस लेने तक मेरठ में रहा। वह बेहतरीन शायर ही नहीं खुद्दार इन्सान भी थे. उनकी ग़ज़लें बेगम अख्तर ने गायीं।
 

गीतों में सत्य को जीता सत्यपाल सत्यम

मेरठ के कवि सत्यपाल सत्यम लाल किला समेत देश के प्रतिष्ठित मंचों पर काव्यपाठ करते रहते हैं। अखिल भारतीय साहित्य कला मंच के उपाध्यक्ष हैं। शिक्षण से सेवानिवृत्त होने के उपरांत संपूर्ण समय साहित्य सेवा में संलग्न है अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं अनुशंसा पत्र प्राप्त हुए।

हास्य विधा का अनूठा शायर
डा. सैयद एजाजुद्दीन शाह उर्फ पॉपुलर मेरठी हिंदी और उर्दू पद्यविधा के अनूठे शायर हैं। सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों को हास्य और व्यंग्य विधा में कहना इनके लिए आसान काम है। इनकी खूबी यह है कि ये हास्य में भी समाज को बड़ा संदेश देते हैं। देश-दुनिया के मुशायरों में इनकी शिरकत होती रहती है।

व्यंग्य के अमिट हस्ताक्षर निर्मल गुप्त
मेरठ के निर्मल गुप्त के साहित्य-सृजन को देखकर इस तथ्य पर विश्वास हो जाता है कि साहित्य-साधना के प्रति लगाव और समर्पण एक ईश्वर प्रदत्त संपदा होती है। निर्मल गुप्त को संवेदना, चिंतन और साहित्यिक अभिरुचि नैसर्गिक रूप से मिले हैं जिन्हें उन्होंने अपने अध्ययन के धैर्य, संवेदना के विस्तार, भावबोध-सामर्थ्य, अभिव्यक्ति के अथक श्रम और अपने लेखन-कौशल से उत्तरोत्तर निखारा और परिपक्व किया है। निर्मल गुप्त अपनी यथार्थ-बोध की विस्मयकारी व्यंजना और प्रतीकों द्वारा साहित्य-जगत को चौंकाते रहे हैं। निर्मल जी की रचनाएं "व्यंग्य का विषय और भुस्स में खोई सुई", "मंटो से आत्मिक मुलाकात", "कहाँ है टोबा टेक सिंह", "मंचीय कविजी और उनकी लफ्फाजी" इत्यादि प्रहारक रचनाएं कही जा सकती हैं। उनके दो व्यंग्य संकलन तथा दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अमर उजाला समेत देश के प्रतिष्ठित अखबारों के संपादकीय पेज पर इनके व्यंग्य प्रकाशित होते रहते हैं।

इन साहित्य रत्नों से भी मेरठ गौरवान्वित
होमवती देवी ,कमला चौधरी आचार्य प्रभु दत्त स्वामी, पद्मश्री रघुबीर शरण मित्र, विष्णु खन्ना, कैलाश चंद गौतम, सुरेश दत्त शुक्ल, मदन शर्मा “ सुधाकर”,नरेंद्र करुण सहित अनेक रचनाकारों की शृंखला में कमलेश्वर नाथ कमल, कुमार अनुपम, कुमार अनिल आदि ऐसे नाम रहे, जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। सामाजिक विषमताओं पर विष्णु पारस, प्रेम नाथ नदीम, संजय शर्मा,राजन स्वामी ऋचा अग्रवाल, शोभना श्याम, पूनम शर्मा , सुनीता अवस्थी की कलम निरंतर लिखती रही । आज की युवा पीढ़ी में भी कुछ रचनाकार मंचीय मोह त्यागकर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में जुटे हैं।




 
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