Meerut: 42 हजार का गृहकर... महापौर तक पहुंचते ही पांच हजार में हुआ निपटारा, निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल
मेरठ नगर निगम में गृहकर से जुड़ा बड़ा मामला सामने आया है, जहां 42 हजार रुपये का बिल महज दो घंटे में 5 हजार कर दिया गया। महापौर के हस्तक्षेप के बाद अधिकारियों ने यू-टर्न लिया, जिससे भ्रष्टाचार के आरोप गहराए।
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मेरठ नगर निगम के गृहकर विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और बाबूशाही की काली तस्वीर सोमवार को एक बार फिर सामने आई। ताजा मामला कांशीराम कॉलोनी का है, जहां एक भवन स्वामी को गृहकर का 42 हजार रुपये का मनमाना बिल थमा दिया गया।
आरोप है कि बिल कम करने के नाम पर अधिकारियों ने सौदेबाजी की कोशिश की लेकिन जब मामला महापौर तक पहुंचा तो वही अधिकारी जो पहले बिल को सही बता रहे रहे थे दो घंटे के भीतर भरपूर छूट देकर भवन स्वामी का पांच हजार रुपये का नया बिल बना दिया।
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दरअसल कांशीराम कॉलोनी निवासी चंद्रप्रभा पांडेय के नाम आवंटित भवन का नगर निगम ने 42 हजार का बिल जारी किया। चंद्रप्रभा को पहली बार ही गृहकर का बिल मिला था। बिल पर भवन नंबर तो सही था लेकिन चंद्रप्रभा की जगह अजमत अली का नाम दर्ज था।
इसमें चार साल का पुराना टैक्स और भारी ब्याज भी जोड़ दिया गया। चंद्रप्रभा के बेटे अमन पांडेय का आरोप है कि जब उन्होंने आपत्ति जताई तो विभाग के एक अधिकारी ने बिल कम कराने के एवज में रिश्वत की मांग की लेकिन उसने साफ इन्कार कर दिया।
महापौर का दखल के बाद अधिकारियों ने मारी पलटी
अमन पांडेय ने रिश्वत देने के बजाय सीधे महापौर हरिकांत अहलूवालिया से शिकायत कर दी। महापौर ने मुख्य कर निर्धारण अधिकारी एसके गौतम को फोन पर कड़ी फटकार लगाई।
दिलचस्प बात यह रही कि करीब दो घंटे तक निगम के अफसर यह रट लगाते रहे कि 42 हजार का बिल बिल्कुल सही है लेकिन जैसे ही महापौर की नाराजगी बढ़ी अधिकारियाे ने आनन-फानन में गृह स्वामी से स्वकर प्रपत्र भरवाया और कुछ ही देर में बिल घटकर महज 5 हजार रुपये कर दिया।
पूर्व सांसद का मैनेजर हूं, रिश्वत नहीं दूंगा
अमन पांडेय ने निगम की कार्यशैली पर तीखे सवाल उठाए। उन्होंने दो-टूक कहा, मैं पूर्व राज्यसभा सदस्य कांता कर्दम की गैस एजेंसी में मैनेजर हूं किसी भी कीमत पर रिश्वत नहीं दूंगा। उन्होंने सवाल किया कि जब पहली बार बिल आया है तो चार साल का बकाया और ब्याज किस आधार पर लगाया गया।
स्वकर प्रपत्र: भ्रष्टाचार का हथियार
यह मामला सिर्फ एक भवन का नहीं है। नगर निगम इस समय शहर में करीब 3.50 लाख भवन स्वामियों से गृहकर वसूली में जुड़ा हुआ है। ऐसे में यदि इसी तरह मनमाने तरीके से बिल भेजे जा रहे हैं तो आम जनता पर इसका सीधा असर पड़ रहा है।
निगम के कुछ अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण गृहकर व्यवस्था लगातार सवालों के घेरे में है। लोगों का कहना है कि अगर हर मामले में महापौर को हस्तक्षेप करना पड़े तो आम आदमी अपनी समस्या लेकर कहां जाए।
मामला बेहद गंभीर है। गृहकर बिल को किस आधार पर और किन परिस्थितियों में कम किया गया, इसकी पूरी जांच कराई जाएगी। रिपोर्ट नगर आयुक्त को दी गई है। -लवी त्रिपाठी, अपर नगर आयुक्त
