UP: 'चार आने का धनिया और सूखी रोटी, घी नहीं... चटनी ले आओ', मायावती के रिक्शे से सीएम बनने तक की कहानी
वीर सिंह का मानना है कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल के शुरूआती दौर में मायावती ने सर्वसमाज के हित के लिए बहुत काम किए। दलितों में समाजिक चेतना उन्हीं की वजह से आई लेकिन बाद में मायावती बदलती चली गईं। पार्टी की बैठकों में मायावती कुर्सी पर बैठती थीं और बाकी सारे मंत्री, विधायक व पदाधिकारी जमीन पर।
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हाल ही में लखनऊ में हुई बहुजन समाज पार्टी की रैली ने प्रदेश की सियासत में इस सवाल को एक बार फिर जिंदा कर दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बसपा कितनी बड़ी भूमिका निभाएगी। तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे वीर सिंह उन लोगों में से हैं जिन्होंने प्रदेश में बसपा की जड़ें जमाने में 1982-83 के बाद के उस दौर में अहम भूमिका निभाई जब संगठन की कोई खास पहचान नहीं हुआ करती थी। वीर सिंह लंबे समय तक मायावती के साथ परछाईं की तरह रहे। 2021 में बसपा से अलग होने के बाद वीर सिंह ने सपा का दामन थामा और फिर दो साल बाद भाजपा में चले गए। वीर सिंह आज भी बसपा के साथ बिताए दिनों को शिद्दत से याद करते हैं। वीर सिंह की उस दौर की यादें एक ऐसी सियासी कहानी सुनाती हैं, जिनका निजी होते हुए भी सार्वजनिक महत्व है।
चार आने का धनिया ले आओ वीर सिंह
नहीं बहन जी, आप फिक्र मत करिए, घी का बंदोबस्त हो जाएगा... वीर सिंह ने जवाब दिया, लेकिन मायावती ने एक नहीं सुनी। बोलीं, मैं जो कह रही हूं वही करो। रोटी, चटनी के साथ भी खाई जा सकती है। जरूरी नहीं है कि उस पर घी चुपड़ा ही जाए। और फिर वीर सिंह बाजार से चार आने का धनिया ले आए। धनिया पत्ती सिलबट्टे पर पीसी गई। मायावती ने रोटी-चटनी बड़े स्वाद से खाई।
यह 84-85 के आस-पास की बात है। हुआ यह था कि हमेशा की तरह मायावती मुरादाबाद के दौरे के दौरान वीर सिंह के घर पर ठहरी हुई थीं। तब पार्टी का इतना विस्तार नहीं हुआ था। संसाधन सीमित थे। मायावती घर पर ठहरतीं तो वीर सिंह उनके लिए रोटी के साथ घी का बंदोबस्त जरूर करते। मगर उस दिन घी खत्म हो गया। जब वीर सिंह की पत्नी उन्हें यह बात बता रहीं थीं तो बगल के कमरे में बैठीं मायावती ने सुन लिया और फिर घी के बजाय चटनी के लिए इसरार करने लगीं।
वीर सिंह के पास किस्सों की भरमार
यह अकेला किस्सा नहीं है। वीर सिंह जब अपनी यादों का पिटारा खोलते हैं तो उनके पास ऐसे किस्सों की भरमार है। वह बताते हैं कि शुरुआत में जब मायावती जिले के दौरे पर आती थीं तो अक्सर उन्हीं के घर पर ठहरती थीं। उनके पास महज दो कमरों का किराये का एक मकान था।
एक कमरे में मायावती ठहरतीं। दूसरे में उनका पूरा परिवार। उस घर में कई और किरायेदार भी रहा करते थे। सबके बीच इंडियन स्टाइल का कॉमन टॉयलेट था। मायावती भी उसी टॉयलेट का इस्तेमाल करतीं। उन्होंने अपने लिए किसी विशिष्ट सुविधा की मांग कभी नहीं की।
जब रिक्शे में बैठ मायावती ने किया सफर
वह एक और किस्सा सुनाते हैं- उस बार मायावती ट्रेन से आईं। मैं उन्हें स्टेशन से लेने के लिए साइकिल से गया। इतने पैसे नहीं थे कि उनके लिए गाड़ी का बंदोबस्त किया जाता। लिहाजा स्टेशन से बाहर निकल कर रिक्शा किया गया। साथ में एक अन्य कार्यकर्ता जयवीर भी थे। उन्हें रिक्शे पर मायावती के बगल में बैठाना ठीक नहीं लगा।
लिहाजा जयवीर रिक्शे पर पीछे की ओर करीब-करीब लटक कर बैठे। वीर सिंह, उस दौर की मायावती की अपने मिशन के प्रति निष्ठा और लगन को याद करते हुए कहते हैं- बहन जी भोर में उठ जाती थीं। पार्टी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं से मिलने के लिए तड़के ही तैयार होकर निकल पड़ती थीं। उनका कहना था कि जहां भी जाओ इतनी सुबह जाओ कि इंसान सोता हुआ मिले और उसके पास यह बहाना न हो कि मैं बाहर गया हुआ हूं।
सर्वसमाज के हित के लिए किए काम
वीर सिंह का मानना है कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल के शुरूआती दौर में मायावती ने सर्वसमाज के हित के लिए बहुत काम किए। दलितों में समाजिक चेतना उन्हीं की वजह से आई लेकिन बाद में मायावती बदलती चली गईं। पार्टी की बैठकों में मायावती कुर्सी पर बैठती थीं और बाकी सारे मंत्री, विधायक व पदाधिकारी जमीन पर।
वीर सिंह कहते हैं कि पार्टी के कुछ नेताओं को यह बुरा भी लगता था। उन्होंने मुझसे कहा, आप बहनजी को समझाते क्यों नहीं। मैंने एक बार कोशिश की तो उन्होंने डपट दिया- वीर सिंह मुझे मत सिखाओ। इसी तरह छोटे-छोटे मसलों पर धीरे-धीरे बात बिगड़ती गई और पार्टी के तमाम नेता और कार्यकर्ता उनसे दूर होते चले गए।
शुरुआत में कार्यकर्ताओं में था जोश
मायावती के जन्मदिन पर आयोजित होने वाले भव्य समारोहों को याद करते हुए वीर सिंह कहते हैं कि शुरुआत में कार्यकर्ताओं में जोश था। वह अपनी इच्छा से खर्च करते थे लेकिन बाद में उन्हें समझ में आने लगा कि जो चंदा वह इकट्ठा करके देते हैं वह पार्टी के कामों की बजाय कहीं और लग रहा है। इसके बाद कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा पड़ता गया। 2021 में वीर सिंह ने कई तरह के मतभेदों के कारण बसपा से इस्तीफा दे दिया।
उस प्रसंग की चर्चा छिड़ने पर वीर सिंह का लहजा थोड़ा तल्ख हो जाता है- मुझे अफसोस इस बात का है कि बहन जी ने व्यक्तिगत रिश्तों का भी लिहाज नहीं किया। मेरे पार्टी छोड़ने के कुछ दिनों बाद ही मेरी पत्नी का निधन हो गया। बहन जी जब मुरादाबाद आतीं, पत्नी उनकी बहुत सेवा करती थीं। इसके बावजूद उनका एक फोन तक नहीं आया। इससे ज्यादा खराब बात यह हुई कि बहनजी ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को इस बात की ताकीद करा दी कि कोई वीर सिंह के घर नहीं जाएगा।
