Pratapgarh : बड़ी मलिक बिटियन के मेले में श्रद्धालुओं का लगा तांता, सांस्कृतिक सौहार्द का प्रतीक है मेला
नगर पंचायत के चौकापारपुर में बृहस्पतिवार को आयोजित एतिहासिक बड़ी मलिक बिटियन का मेला आस्था और सांस्कृतिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण बनकर पूरे दिन गुलजार रहा।
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नगर पंचायत के चौकापारपुर में बृहस्पतिवार को आयोजित एतिहासिक बड़ी मलिक बिटियन का मेला आस्था और सांस्कृतिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण बनकर पूरे दिन गुलजार रहा। सुबह से ही प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर, कौशाम्बी, फतेहपुर, प्रयागराज, उन्नाव, कानपुर समेत विभिन्न जिलों से आए लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। मेला क्षेत्र में स्थित बेटी, मां और पिता की समाधियों पर श्रद्धालुओं ने तिलचौरी चढ़ाकर सुख-समृद्धि की कामना की।
मलिक बिटियन मेला सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। यहां मेले की तैयारियों, दुकानों और धार्मिक अनुष्ठानों में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग एक साथ मिलकर भाग लेते हैं। मेले में लगे अधिकांश स्टॉलों लकड़ी, लोहे के बर्तनों, गन्ने, खिलौनों और मिठाई का संचालन दोनों समुदायों के लोग मिलजुलकर करते हैं। मेले में लकड़ी और लोहे के पारंपरिक घरेलू उपकरणों की जमकर खरीदारी हुई। महिलाओं ने चूड़ियां, मेंहदी, बिंदी, पायल, कंघी समेत शृंगार सामग्री खूब खरीदी।
प्रदेश में प्रसिद्ध है मानिकपुर का गन्ना
मानिकपुर का गन्ना प्रदेश में प्रसिद्ध है, और इसी वजह से मेले में गन्ने की खरीदारी सबसे अधिक रही। मेले में सैकड़ों ट्राॅलियों में गन्ना आया और दूरदराज से आए लोग गन्ना लेकर लौटे। मेले में लगे बड़े झूले, ड्रैगन ट्रेन और बच्चों के खेल–तमाशों ने लोगों को आकर्षित किया। गुड़ की जलेबी, मूंगफली, सिंघाड़े और भेल जैसी चीजों की दुकानों पर पूरे दिन भीड़ उमड़ी रही।
नगर प्रशासन की ओर से पेयजल, बिजली, शौचालय व सीसीटीवी कैमरों की व्यवस्था की गई। नगर पंचायत अध्यक्ष चन्द्रलता जायसवाल और अधिशासी अधिकारी अतुल सिंह के निर्देशन में टीम ने साफ-सफाई और यातायात पर विशेष ध्यान दिया। थानाध्यक्ष नरेंद्र सिंह व उपनिरीक्षक भृगुनाथ मिश्रा, उमेश प्रताप सिंह और संतोष यादव सुरक्षा में सक्रिय दिखे।
अगले सप्ताह होगी छोटी बिटियन का आयोजन
एक सप्ताह बाद अगले बृहस्पतिवार को छोटी बिटियन का मेला आयोजित होगा। फिलहाल मेले की रौनक, भीड़ और सौहार्दपूर्ण माहौल ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि मलिक बिटियन मेला सिर्फ व्यापार या परंपरा नहीं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सद्भाव का जीवंत प्रतीक है।