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Rampur News: रामपुर में जापानी इंसेफेलाइटिस का केस मिला, हड़कंप
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रामपुर। ब्लॉक चमरौआ के ग्राम सिकरौल में 12 वर्षीय शिखा में जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) की पुष्टि हुई है। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल से सीएमओ दीपा सिंह को यह रिपोर्ट प्राप्त हुई है। जिले में यह पहला मामला सामने आया है। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव का निरीक्षण किया।
सीएचसी प्रभारी डॉ. नवीन प्रसाद ने बताया कि शिखा को नौ सितंबर से बुखार आ रहा था। उसकी मानसिक स्थिति में भी बदलाव देखा जा रहा था। उसे दो दिन जिला अस्पताल में भर्ती कर छुट्टी दे दी गई थी। बताया कि 14 सितंबर को दोबारा शिखा को रामपुर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। सीटी स्कैन में दिमाग में सूजन मिली। इसके बाद उसे हायर सेंटर रेफर कर दिया।
उन्होंने बताया कि दो अक्तूबर को मुरादाबाद के निजी अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया। यहां भी दिमाग में सूजन मिली। इसके बाद परिजन सात अक्तूबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले गए। अस्पताल प्रबंधन ने ब्लड के सैंपल भेजे थे। इसमें जेई की पुष्टि हुई। यहां उसका इलाज चला। इलाज के बाद उसे छुट्टी दे दी गई।
इसके बाद प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीम मंगलवार को शिखा के घर पहुंची। उन्होंने बताया कि शिखा कि हालत स्थिर है। वह घर में ही है। स्वास्थ्य विभाग की टीम लगातार उसके स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग कर रही है।
सिकरौल गांव में कल लगेगा कैंप
सीएमओ डॉ. दीपा सिंह ने बताया कि बृहस्पतिवार को गांव में कैंप लगाया जाएगा। बुखार पीड़ितों की जांच की जाएगी। साथ ही मच्छरों की रोकथाम के लिए लार्वी साइडल का छिड़काव किया जाएगा। उन्होंने लोगों से स्वास्थ्य शिविर में जांच कराने और मच्छरों से बचने के लिए मच्छर दानी का प्रयोग और साफ-सफाई करने के निर्देश दिए हैं।
ऐसे फैलता है
जब क्यूलेक्स प्रजाति का कोई मच्छर रोग से ग्रसित सूअर या जंगली पक्षियों का रक्त चूसता है तो उस रोग के वायरस मच्छर में पहुंच जाते हैं। जब यह मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह व्यक्ति भी इस रोग की चपेट में आ जाता है। संक्रमण के शिकार व्यक्ति में इस रोग के लक्षण 5 से 15 दिनों के बीच देखने को मिलते हैं। जिसे ‘इंक्युबेशन पीरियड’ कहते हैं। यह रोग अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है। सबसे पहले इस वायरस की पहचान जापान में हुई थी। जिसकी वजह से इस रोग का नाम ‘जापानी इंसेफेलाइटिस’ रखा गया।
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सीएचसी प्रभारी डॉ. नवीन प्रसाद ने बताया कि शिखा को नौ सितंबर से बुखार आ रहा था। उसकी मानसिक स्थिति में भी बदलाव देखा जा रहा था। उसे दो दिन जिला अस्पताल में भर्ती कर छुट्टी दे दी गई थी। बताया कि 14 सितंबर को दोबारा शिखा को रामपुर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। सीटी स्कैन में दिमाग में सूजन मिली। इसके बाद उसे हायर सेंटर रेफर कर दिया।
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उन्होंने बताया कि दो अक्तूबर को मुरादाबाद के निजी अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया। यहां भी दिमाग में सूजन मिली। इसके बाद परिजन सात अक्तूबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले गए। अस्पताल प्रबंधन ने ब्लड के सैंपल भेजे थे। इसमें जेई की पुष्टि हुई। यहां उसका इलाज चला। इलाज के बाद उसे छुट्टी दे दी गई।
इसके बाद प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीम मंगलवार को शिखा के घर पहुंची। उन्होंने बताया कि शिखा कि हालत स्थिर है। वह घर में ही है। स्वास्थ्य विभाग की टीम लगातार उसके स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग कर रही है।
सिकरौल गांव में कल लगेगा कैंप
सीएमओ डॉ. दीपा सिंह ने बताया कि बृहस्पतिवार को गांव में कैंप लगाया जाएगा। बुखार पीड़ितों की जांच की जाएगी। साथ ही मच्छरों की रोकथाम के लिए लार्वी साइडल का छिड़काव किया जाएगा। उन्होंने लोगों से स्वास्थ्य शिविर में जांच कराने और मच्छरों से बचने के लिए मच्छर दानी का प्रयोग और साफ-सफाई करने के निर्देश दिए हैं।
ऐसे फैलता है
जब क्यूलेक्स प्रजाति का कोई मच्छर रोग से ग्रसित सूअर या जंगली पक्षियों का रक्त चूसता है तो उस रोग के वायरस मच्छर में पहुंच जाते हैं। जब यह मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह व्यक्ति भी इस रोग की चपेट में आ जाता है। संक्रमण के शिकार व्यक्ति में इस रोग के लक्षण 5 से 15 दिनों के बीच देखने को मिलते हैं। जिसे ‘इंक्युबेशन पीरियड’ कहते हैं। यह रोग अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में सबसे ज्यादा फैलता है। सबसे पहले इस वायरस की पहचान जापान में हुई थी। जिसकी वजह से इस रोग का नाम ‘जापानी इंसेफेलाइटिस’ रखा गया।