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Saharanpur News: यह साल भी बीता, प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाई हिंडन
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बड़गांव क्षेत्र में गंदे नाले में बदली हिंडन नदी। संवाद
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- बाबा मंगलगिरी फिर बना रहे आंदोलन की रणनीति
संवाद न्यूज एजेंसी
बड़गांव। हिमालय की पहाड़ियों से स्वच्छ हिंडन नदी 75 किलोमीटर के सफर पर बड़गांव क्षेत्र में पहुंचते ही जहरीली हो जाती है। नदी किनारे बसे गांवों में हैंडपंपों का पानी भी दूषित और पीला निकलता है, जो पीने योग्य नहीं है। नतीजन जिस हिंडन (हरनंदी) को कभी जीवनदायिनी कहा जाता था वह आज अभिशप्त हो चुकी है।
गागलहेड़ी क्षेत्र से नागल तक कई फैक्टरियों से दूषित पानी हिंडन नदी में छोड़ा जा रहा है। गांवों से निकलने वाला गंदा पानी भी हिंडन में बहाया जाता है, जो इस नदी को प्रदूषित करता है। हिंडन को स्वच्छ और सदानीरा बनाने के लिए कई योजनाएं चलीं। एनजीटी के आदेश पर इसके किनारों को कब्जा मुक्त कराकर पौधरोपण भी किया गया, लेकिन बेहतर परिणाम नहीं निकले। हिंडन के प्रदूषण का असर इतना घातक हुआ कि किनारे बसे गांवों का 120 फीट गहराई तक पानी पीने योग्य नहीं रहा। नदी किनारे बसे बीस से अधिक गांवों के साढ़े तीन सौ से अधिक लोग विभिन्न बीमारियों की चपेट आकर मौत के मुंह में समा चुके हैं। प्रदूषण की वजह से ही प्रशासन ने लाल निशान लगाकर क्षेत्र के गांवों से सैकड़ों हैंडपंप उखड़वाए गए, लेकिन शुद्ध पानी की व्यवस्था नहीं हुई।
प्रदूषित हो चुकी हिंडन, कृष्णा एवं काली नदी को जीवित करने के लिए बाबा मंगल गिरी पिछले एक दशक से ज्यादा समय से आंदोलन कर रहे हैं। बाबा ने कई बार धरने दिए, अनशन पर बैठे। हर बार सरकार के मंत्री अफसर आकर आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त करा जाते लेकिन हालात नहीं सुधरे। अब एक बार फिर वह साधू संतों को साथ लेकर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं। उनका कहना है कि अबकी बार उनकी लड़ाई आरपार की होगी।
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संवाद न्यूज एजेंसी
बड़गांव। हिमालय की पहाड़ियों से स्वच्छ हिंडन नदी 75 किलोमीटर के सफर पर बड़गांव क्षेत्र में पहुंचते ही जहरीली हो जाती है। नदी किनारे बसे गांवों में हैंडपंपों का पानी भी दूषित और पीला निकलता है, जो पीने योग्य नहीं है। नतीजन जिस हिंडन (हरनंदी) को कभी जीवनदायिनी कहा जाता था वह आज अभिशप्त हो चुकी है।
गागलहेड़ी क्षेत्र से नागल तक कई फैक्टरियों से दूषित पानी हिंडन नदी में छोड़ा जा रहा है। गांवों से निकलने वाला गंदा पानी भी हिंडन में बहाया जाता है, जो इस नदी को प्रदूषित करता है। हिंडन को स्वच्छ और सदानीरा बनाने के लिए कई योजनाएं चलीं। एनजीटी के आदेश पर इसके किनारों को कब्जा मुक्त कराकर पौधरोपण भी किया गया, लेकिन बेहतर परिणाम नहीं निकले। हिंडन के प्रदूषण का असर इतना घातक हुआ कि किनारे बसे गांवों का 120 फीट गहराई तक पानी पीने योग्य नहीं रहा। नदी किनारे बसे बीस से अधिक गांवों के साढ़े तीन सौ से अधिक लोग विभिन्न बीमारियों की चपेट आकर मौत के मुंह में समा चुके हैं। प्रदूषण की वजह से ही प्रशासन ने लाल निशान लगाकर क्षेत्र के गांवों से सैकड़ों हैंडपंप उखड़वाए गए, लेकिन शुद्ध पानी की व्यवस्था नहीं हुई।
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प्रदूषित हो चुकी हिंडन, कृष्णा एवं काली नदी को जीवित करने के लिए बाबा मंगल गिरी पिछले एक दशक से ज्यादा समय से आंदोलन कर रहे हैं। बाबा ने कई बार धरने दिए, अनशन पर बैठे। हर बार सरकार के मंत्री अफसर आकर आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त करा जाते लेकिन हालात नहीं सुधरे। अब एक बार फिर वह साधू संतों को साथ लेकर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं। उनका कहना है कि अबकी बार उनकी लड़ाई आरपार की होगी।
