कैसे हो काशी का विकास, मुआवजे के फेर में फंसे करोड़ों के प्रोजेक्ट


लगभग एक पखवारे में 240 करोड़ के सापेक्ष सिर्फ 50 करोड़ रुपये बांटे जा सके हैं। भूमि अध्यापित अधिकारी राजेंद्र कुमार ने बताया कि अप्रैल भर मुआवजा बांटा जाएगा। कितने किसानों को दिया गया, कैंप आदि की संख्या, वह स्पष्ट नहीं कर पाए।
सूत्रों की मानें तो धीमी गति के कारण मुआवजा बांटने में दो महीने लगेंगे। जाहिर है कि इसके बाद जून में ही रिंग रोड का काम रफ्तार पकड़ सकेगा। बता दें कि रिंग रोड से संबंधित किसानों को 1 जनवरी, 2014 के सर्किल रेट का चार गुना मुआवजे के रूप में दिया जा रहा है।
जिले से तीन नेशनल हाईवे गुजरते हैं। इन तीनों के चौड़ीकरण की योजना भी अधिकारियों की सुस्ती की शिकार है। इसलिए यह काम रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है। मुआवजा देने में हीलाहवाली के कारण न केवल काम में देरी हो रही है, बल्कि आए दिन किसान अपने मुआवजे के लिए आंदोलन के मूड में आ जाते हैं। अधिकारी इन किसानों को बहला-फुसलाकर शांत कर देते हैं लेकिन मुआवजे की राशि के वितरण में तेजी नहीं आ पाई है।
एनएच-56 के चौड़ीकरण के पहले भाग में 183 करोड़ रुपये मुआवजे में से अब तक 155 करोड़ रुपये ही किसानों को दिए गए हैं। वहीं दूसरे भाग में 353 करोड़ मुआवजा दिया जाना है। अब तक 304 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है। एनच-2 पर चल रहे काम के लिए 71 करोड़ में से 50 करोड़ बांटे जा चुके हैं।
एनएच-233 के लिए अधिग्रहीत जमीन के लिए 311 करोड़ रुपये मुआवजा दिया जाना था जिसमें से 200 करोड़ रुपये ही बांटा जा सका है। इसी प्रकार एनएच 29 के लिए 404 करोड़ रुपये के सापेक्ष 225 करोड़ प्रतिकर का भुगतान किया गया है।
जलमार्ग-एक के तहत गंगा में वाराणसी से हल्दिया के बीच जल परिवहन शुरू करने के लिए 4200 करोड़ रुपये की परियोजना की फंडिंग विश्व बैंक कर रहा है। इसके तहत रामनगर में मल्टी मॉडल टर्मिनल का निर्माण कराया जा रहा है लेकिन जितनी जमीन की जरूरत है, उतनी अब तक अधिग्रहीत नहीं की जा सकी है। तीन साल से आईडब्ल्यूएआई एक काश्तकार को मनाने में लगा है। उसकी आठ हेक्टेयर से अधिक जमीन अधिगृहीत की जानी है।
अधिकारियों की मानें तो काश्तकार जमीन अधिग्रहण के बाद भी जमीन पर होने वाले निर्माण और उसके बाद भी अपना पूरा दखल चाहता है। मुआवजे के साथ उसकी कई शर्तें हैं। आईडब्ल्यूएआई अब प्रशासन की मदद लेने की तैयारी कर रहा है। दरअसल, टर्मिनल के बाद सेकेंड फेज में जिउनाथपुर से रेल लाइन बिछनी है। इसके लिए 27 हेक्टेयर से अधिक जमीन चाहिए।
अब तक 12 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण हो पाया है। जमीन न मिल पाने के चलते टर्मिनल निर्माण के लिए बिजली का कनेक्शन भी नहीं मिल पाया है।