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UP: भारत की सभी जातियों में मिला रामायण वाली जनजातियों का DNA; बीएचयू सहित कई संस्थानों के विज्ञानी कर रहे शोध

रबीश श्रीवास्तव, अमर उजाला, वाराणसी Published by: प्रगति चंद Updated Sat, 20 Jan 2024 07:12 PM IST
सार

बीएचयू और आईआईटी सहित तमाम संस्थान के विज्ञानी शोध कर रहे हैं। इस दौरान 200 लोगों के ब्लड सैंपल की जांच से पता चला कि रामायणकालीन जनजातियों का डीएनए भारत की सभी जनजातियों में पाया जाता है। अभी यह शोध लंबा चलेगा।

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DNA of Ramayana tribes found in all castes of India BHU and IIT Scientists research
varanasi news - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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देशभर के जीन विज्ञानी रामायण से जुड़े किरदारों के वैज्ञानिक आधार का पता लगाने में जुटे हैं। 200 लोगों के ब्लड सैंपल की जांच से पता चला कि रामायणकालीन जनजातियों का डीएनए भारत की सभी जातियों, जनजातियों में पाया जाता है। इस शोध से बीएचयू में जूलॉजी डिपार्टमेंट के जीन विज्ञानी प्रो ज्ञानेश्वर चौबे भी जुड़े हैं। उनका कहना है कि शोध में शबरी, निषादराज, कोल, भील और गोंड सहित अन्य किरदारों को शामिल किया गया है। शोध लंबा चलेगा।

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अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के मद्देनजर रामायण, राममंदिर में लगने वाली मूर्तियों सहित अन्य विषय वस्तुओं पर अध्ययन हो रहे हैं। इस बीच जनजातियों पर होने वाला अध्ययन भी प्रासंगिक हो गया है। बीएचयू के जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के मुताबिक 2013 से चल रहे शोध में नई जानकारियां मिलती जा रही हैं। रामायण में वर्णित श्री रामवन गमन के रास्तों के आसपास से तीन प्रमुख जनजातियों(कोल, भील, गोंड) के 200 से ज्यादा लोगों के खून के नमूने एकत्रित किए गए। इसमें आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और तेलंगाना राज्य के लोगों को शामिल किया गया।
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जिन लोगों का ब्लड सैंपल लिया गया, उनके जेनोमिक डेटा को भारत के साथ विश्व के 10,000 से ज्यादा नमूनों के साथ मिलान किया गया। विज्ञान की भाषा में कहें तो विभिन्न स्टैटिस्टिकल जैसे की ऐडमिक्सचर और प्रिंसिपल कंपोनेंट एनालिसिस किया गया। इसके बाद पता चला कि संपूर्ण भारत की जातियां और जनजातियां एक ही क्लाइन या साधारण शब्दों में समझें तो एक ही अक्षीय लाइन पर अपने जियोग्राफी के अनुसार साथ हो रही थी। कोल, भील और गोंड भी इनके ही बीच में आ रहे थे। इससे यह पता चलता है कि इन सभी के आधार एक ही हैं।

आईआईटी के विज्ञानी भी जुड़े

शोध में आईआईटी खड़गपुर के अनुराग कादियान, इंस्टिट्यूट ऑफ वेदा दिल्ली के सरोज बाला और एंथ्रोपोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक प्रो. वीआर राव सहित अन्य लोग शामिल हैं। बीएचयू के डॉ. प्रज्ज्वल प्रताप सिंह, डॉ. सचिन कुमार तिवारी, सीसीएमबी हैदराबाद से प्रो. वसंत शिंदे भी शोध को आगे बढ़ा रहे हैं।

निष्कर्षों पर प्रकाशित होगी पुस्तक, सरकार को भी भेजेंगे
शोध के नतीजों पर पुस्तक प्रकाशित की जाएगी। जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि अब तक पांच शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इसमें पहला शोध अमेरिका के पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस के पीएलओएस वन, दूसरा नेचर के साइंटिफिक रिपोर्ट्स, तीसरा यूरोपियन जर्नल ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स, चौथा इनसाइक्लोपीडिया ऑफ लाइफ साइंस और पांचवां मैन इन इंडिया में प्रकाशित हो चुका है। शोध कार्य के पूरा होने के बाद उसके निष्कर्षों पर प्रकाशित होने वाली पुस्तक को सरकार सहित प्रमुख शोध से जुड़ी संस्थानों को भी भेजा जाएगा, जिससे कि अधिक से अधिक लोगों को जनजातियों के इतिहास की सही जानकारी मिल सके।

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