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Nepal Unrest: पितृपक्ष में नेपाली हिंदुओं के बिना काशी के घाट और मंदिर सब वीरान, हिंसा के चलते नहीं आ रहे लोग

आशीष शुक्ला/अमन विश्वकर्मा, अमर उजाला, वाराणसी। Published by: प्रगति चंद Updated Thu, 11 Sep 2025 07:56 AM IST
सार

नेपाल में अशांति के बीच पितृपक्ष में नेपाली हिंदुओं के बिना काशी के घाट और मंदिर सब वीरान पड़े हैं। यहां हर साल पांच हजार से ज्यादा नेपाली हिंदू पिंडदान करने आते हैं। इस बार दो- चार लोग ही पहुंच रहे हैं। 

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Nepal violence Impact Kashi ganga ghats and temples deserted without Nepali Hindus during Pitru Paksha 2025
पशुपतेश्वरनाथ मंदिर। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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नेपाल और काशी का रिश्ता धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से मजबूत और अद्भुत है। लेकिन, इस बार नेपाल में बिगड़े हालात और तख्ता पलट का असर काशी में भी व्यापक रूप से दिख रहा है। पितृपक्ष में नेपाली हिंदुओं से गुलजार रहने वाले काशी के घाट, मंदिर और धर्मशाला वीरान हैं।

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मंगला गाैरी घाट स्थित नेपाली मंदिर, शीतला गौरी के पास नया व पुराना नेपाली धर्मशाला और नेपाली खपड़ा में नेपाल के पर्यटक नजर नहीं आ रहे हैं। हर साल पांच हजार से भी ज्यादा लोग काशी में अपने पितरों के तर्पण के लिए रोज कर्मकांड करते थे। लेकिन इस बार इनकी संख्या गिनती भर है। उनके न आने का असर पंडा, पुरोहितों के साथ ही होटल, खानपान, माला फूल, कपड़ा व बर्तन समेत सभी कारोबार पर साफ दिख रहा है।
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हर साल यहां दिन-रात लगी रहती थी कतार
नेपाली मंदिर (पशुपति नाथ मंदिर) से जुड़े रोहित कुमार ढकाल बताते हैं कि पितृपक्ष में यहां नेपाली हिंदुओं का जमावड़ा रहता था। दिन-रात पशुपति नाथ के दर्शन के लिए कतार लगी रहती थी। लेकिन, इस बार हालात खराब हैं। आंदोलन की वजह से पहले ही बहुत कम लोग यहां आए थे। हालात बिगड़ते देख जो आए थे वो भी नेपाल लौट गए हैं।

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Nepal violence Impact Kashi ganga ghats and temples deserted without Nepali Hindus during Pitru Paksha 2025
पशुपतेश्वरनाथ मंदिर। - फोटो : अमर उजाला
अतिथि गृह में एक भी नेपाली पर्यटक नहीं
परिसर में दूसरे तल पर बने अतिथि गृह में एक भी नेपाली पर्यटक नहीं है। यही हाल काशी में नेपाल के लोगों के ठहरने के लिए बनी दो धर्मशालाओं का भी है। धर्मशाला में एक भी नेपाल का पर्यटक नहीं है। मंदिर के प्रबंधक गंगा शंकर श्रेष्ठ कहते हैं, हर साल परिसर में 500 से ज्यादा लोग शाम को कर्मकांड और पूजा में शामिल होते थे। यहां 20 कमरे हैं, सभी भरे रहते थे। लेकिन इस बार एक भी पर्यटक नहीं आया। पहले ही लोगों ने फोन कर बता दिया था कि हालात ठीक नहीं हैं। हम नहीं आ सकेंगे।

नेपाल में जो हुआ शर्मनाक है
नेपाल की हालत पर चिंता जाहिर करते हुए नेपाली मूल के पं. देवनारायण चौलागई का कहना है कि नेपाल के हालात बहुत बिगड़ गए हैं। पहले हम खुद को शान से नेपाली बताते थे। लेकिन जो हुआ शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि इस बार नेपाल के लोगों के न पहुंच पाने से हालात ठीक नहीं है। हमारी कमाई पर असर पड़ा है। हम पितृपक्ष में बिना काम के हो गए हैं। चौलागई ने बताया कि वह सनातन के प्रति बहुत जागरूक हैं। कर्मकांड समझते हैं। काशी को सनातन की आत्मा मानते हैं।

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पशुपतेश्वरनाथ मंदिर में लगा नेपाल का पोस्टर। - फोटो : अमर उजाला
नेताओं ने नेपाल को बर्बाद किया, सत्ता पटल जरूरी था
बनारस में रहने वाले नेपाली मूल के दुर्गा प्रसाद अधिकारी ने कहा कि नेपाल में परिवर्तन बहुत जरूरी था। युवाओं में इसकी सुगबुगाहट काफी पहले से चल रही थी। यह हिंसा केपी सरकार की नादानी और तानाशाही का परिणाम है। नेपाल के किसान, दलित, आमजनता पर तमाम तरह के टैक्स लगाकर उन्हें आहत किया जा रहा था। नेपाल का युवा बेरोजगारी से भी जूझ रहा है। यही कारण है कि वह अपना घर-मकान बेचकर जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा या अन्य देशों में जाकर रोजगार ढूंढ रहा है।

नेपाल और नेपाली समाज को करीब से जानने वाले बनारस के प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने नेपाल हिंसा पर अपनी चिंता जताई। कहा कि काशी और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है। हिंदुस्तान का धार्मिक रिश्ता है। उत्तर प्रदेश-बिहार की सीमा पर बसे मद्धेशिया समाज के लोगों का इसमें काफी दखल है। बीपी कोईराला के पिताजी कैंट स्टेशन पर अखबार पर सोते थे, फिर धीरे-धीरे न्यूजपेपर बांटने भी लगे। बिशेश्वर प्रसाद कोईराला की पैदाइश यहीं सारनाथ में हुई।

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