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संघर्ष से सफलता की कहानी: आठ साल की उम्र में दंगल लड़ा, पहली बार मिला था पांच रुपये इनाम

अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी। Published by: प्रगति चंद Updated Fri, 21 Nov 2025 02:05 PM IST
सार

Varanasi News: वाराणसी के कुश्ती खिलाड़ी दिनेश यादव ने अपने शहर ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में प्रसिद्धि हासिल की है। वे आठ साल की उम्र में दंगल लड़े। उन्हें पहली बार पांच रुपये इनाम मिला था। आइए जानते हैं इनके सफलता की कहानी... 

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Success story of wrestler Dinesh Yadav of Varanasi
कुश्ती खिलाड़ी दिनेश यादव (नीला आउटफिट में) - फोटो : अमर उजाला
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वाराणसी जिले के आयर क्षेत्र के हरदासपुर निवासी पहलवान को पूर्वांचल ही नहीं प्रदेश में भी प्रसिद्धि मिली है। दिनेश यादव के परिवार में कोई भी कुश्ती का खिलाड़ी नहीं है। उन्होंने दुधिया को देखकर शारीरिक अभ्यास शुरू किया। आठ साल की उम्र में मुनारी अखाड़े पर इनामी दंगल लड़ा, जो कि बराबरी पर छूटा। पांच रुपये बतौर पुरस्कार मिले। अब तक 26 पदक जीत चुके दिनेश यादव अंतर विश्वविद्यालयीय प्रतियोगिता में खेलेंगे।

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उन्होंने 2012 में कुश्ती लड़ना शुरू किया। इसके एक साल बाद उनका चयन गोरखपुर स्पोर्ट्स कॉलेज के लिए हो गया। छह साल तक स्पोर्ट्स कॉलेज की ओर से नौ राष्ट्रीय मुकाबलों के अलावा प्रादेशिक में 17 पदक हासिल किए। 2023 में स्पोर्ट्स कोटे से कला संकाय में चयन हो गया। फिलहाल हिंदी में ऑनर्स कर रहे हैं। 
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बताया कि बागपत में प्रादेशिक मुकाबले में खेलने जाना था, लेकिन पढ़ाई की वजह से नहीं जा सके। फिलहाल पांचवें समेस्टर की परीक्षा की तैयारी करने के साथ खेल को भी समय दे रहे हैं। बीएचयू के विश्वविद्यालय क्रीड़ा परिषद के सहायक निदेशक और कुश्ती कोच डॉ. हरेराम यादव ने बताया कि दिनेश रोज दो सत्र में पांच घंटे अभ्यास करते हैं। दिनेश ने वाराणसी के अलावा प्रदेश में 18 चैंपियन का खिताब अपने नाम किया है। 

शिवाजी हॉल में हर रोज चार घंटे करते हैं अभ्यास

Success story of wrestler Dinesh Yadav of Varanasi
दिनेश यादव - फोटो : अमर उजाला
दिनेश ने बताया कि उनके दिन की शुरुआत कुश्ती से ही होती है। वह ब्रोचा मैदान में दौड़ लगाने के बाद शिवाजी हॉल में अभ्यास करते हैं। यहां इंड्योरेश के लिए जिम में वर्कआउट करते हैं। इसके बाद कुश्ती के मैट पर ड्राई अभ्यास का सेशन करते हैं। कोच के मुताबिक ड्राई अभ्यास के बाद खिलाड़ी डमी के साथ अभ्यास करते हैं। इसमें वजन बैलेंस करने के बाद उसे अलग अलग दिशा में पटकना होता है।

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गांव से लाते हैं घी और चना
उन्हें कुश्ती के मैट पर उतरने से पहले डाइट के लिए संघर्ष करना पड़ता है। माह में एक बार गांव जाते हैं और वहां से घी और चना लेकर आते हैं। उनके पिता किसानी करते हैं लेकिन बेटा कुश्ती में अच्छा करे इसका ध्यान रखते हैं। बताया कि सुबह कुश्ती कर वापस छित्तूपुर छात्रावास साइकिल चलाकर आते हैं। दिन में कला संकाय में पढ़ाई करने के बाद शाम को दोबारा कोच की देखरेख में अभ्यास करते हैं।

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