Grahan 2024: इस साल भारत में नहीं दिखेगा एक भी ग्रहण, 72 साल बाद बना योग; खुले रहेंगे मंदिरों के पट
भारत में इस साल एक भी ग्रहण दिखाई नहीं देगा। ऐसा 72 साल बाद हो रहा है। मान्यता है कि ग्रहण जिस भी देश में दिखाई देता है, वहां प्राकृतिक और विषम प्रभाव पड़ते हैं। ज्योतिषविद विमल जैन, दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री व अमित मिश्र ने बताया कि भौगोलिक गणना के अनुसार इस साल हमारे देश में कोई भी ग्रहण दृश्यमान नहीं है।
विस्तार
इस साल भारत में एक भी ग्रहण दिखाई नहीं देगा। ऐसा 72 साल बाद हो रहा है। इस साल दो चंद्र गहण और दो सूर्य ग्रहण लग रहे हैं लेकिन इसका प्रभाव भारत में आंशिक मात्र भी नहीं पड़ेगा। सूतक का प्रभाव नहीं पड़ने से इस साल मंदिरों के पट बंद नहीं होंगे। यह भारत के लिए सुखद है।
मान्यता है कि ग्रहण जिस भी देश में दिखाई देता है, वहां प्राकृतिक और विषम प्रभाव पड़ते हैं। ज्योतिषविद विमल जैन, दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री व अमित मिश्र ने बताया कि भौगोलिक गणना के अनुसार इस साल हमारे देश में कोई भी ग्रहण दृश्यमान नहीं है। इसलिए इसका धार्मिक महत्व नहीं होगा। देश में सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। सन 1952 के बाद ऐसी स्थिति आई है। उन्होंने बताया कि इस साल लगने वाले ग्रहण का प्रभाव उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, अर्जेंटीना, दक्षिण चिली, मध्य एशियाई देशों, हिंद महासागर, अर्कटिक और अटलांटिक महासागर पर पड़ेगा। ये ग्रहण मार्च, अप्रैल और अक्तूबर में लगेंगे।
कब-कब लगेगा ग्रहण
पहला सूर्यग्रहण आठ अप्रैल को रात 9:12 बजे लगेगा और रात 1:25 बजे तक रहेगा। इसकी अवधि 4:25 घंटे रहेगी। दो अक्तूबर को दूसरा सूर्य ग्रहण लगेगा। जो रात 9:13 बजे से रात 3:17 बजे तक रहेगा। इसकी अवधि 6:04 घंटे की होगी। वहीं, पहला चंद्रग्रहण 25 मार्च को सुबह 10:23 बजे से दोपहर 3:02 बजे तक लगेगा। इसकी अवधि 4:36 घंटे रहेगी। 18 सितंबर को चंद्र ग्रहण सुबह 6:12 बजे से 10:17 बजे तक रहेगा। इसकी अवधि 4:04 घंटे रहेगी।
प्रशांत महासागर में सूर्यग्रहण ज्यादा दृश्यमान
ज्योतिषविद विमल जैन के मुताबिक सूर्य ग्रहण एक वलयाकार ग्रहण होगा। सूर्यग्रहण तब लगता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा हो, लेकिन इसकी दूरी धरती से दूर होती है। धरती से दूर होने के कारण चंद्रमा छोटा दिखता है। सूर्यग्रहण ज्यादा दृश्यमान प्रशांत महासागर में होगा। वहीं, चंद्र ग्रहण में चंद्रमा केवल पृथ्वी की छाया के बाहरी किनारों से होकर गुजरता है। इसलिए ग्रहण काफी कमजोर होगा। चंद्रमा गहरी छाया में प्रवेश नहीं करेगा। इसलिए यूरोप, उत्तर-पूर्व एशिया सहित कुछ महासागरों में दिखाई देगा।
