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राम मंदिर के आंदोलन की कहानी: जब चरण रज के गुलाल व रामज्योति आई थी काशी, तो मनी थी होली और दिवाली

हीरालाल चौरसिया, अमर उजाला, वाराणसी Published by: किरन रौतेला Updated Wed, 10 Jan 2024 01:37 PM IST
सार

22 जनवरी को प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव देश भर में मनाया जा रहा है। एक अरसे तक चले आंदोलन में काशी की अहम भूमिका थी। हिंदू संगठनों की ओर से 1990 से 1992 तक चले व्यापक आंदोलन के दौरान काशी के कारसेवकों की सक्रियता ज्यादा थी। उन्होंने यहां के त्योहारों को प्रभु श्रीराम को समर्पित किया था।

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Story of Ram Temple movement When Gulal and Ramjyoti came to Kashi, then Holi and Diwali were celebrated
राम मंदिर निर्माण - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए जब सनातनियों का आंदोलन चरम पर था, तब प्रभु श्रीराम के श्रीचरण रज के गुलाल और रामज्योति काशी आई थी। इसी गुलाल से काशी में होली और रामत्योति से दिवाली का उत्सव मना था। कारसेवकों ने घर-घर गुलाल बांटा था और मंदिरों में रखी गई रामज्योति से ज्योति चलाकर रामभक्ति की गंगा बही थी।

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22 जनवरी को प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव देश भर में मनाया जा रहा है। एक अरसे तक चले आंदोलन में काशी की अहम भूमिका थी। हिंदू संगठनों की ओर से 1990 से 1992 तक चले व्यापक आंदोलन के दौरान काशी के कारसेवकों की सक्रियता ज्यादा थी। उन्होंने यहां के त्योहारों को प्रभु श्रीराम को समर्पित किया था। उस दौरान दिवाली आई तो श्रीरामलला मंदिर से ज्योति काशी लाई गई और श्रीराम जानकी सहित अन्य मंदिरों में ज्योति रखी गई थी। इस ज्योति से ही ज्योति जलाकर काशी में दिवाली मनाई गई थी।

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आरएसएस के विभिन्न इकाइयों के पुराने पदाधिकारी रहे प्रदीप और विश्व हिंदू परिषद के महानगर अध्यक्ष कन्हैयालाल सिंह ने बताया कि 1992 में अयोध्या से रामज्योति और गुलाल पहुंचाई गई थी। ट्राॅली और सगड़ी पर रामदरबार की झांकी सजाई गई थी। कारसेवक अयोध्या से रामज्योति लेकर निकले थे। इसके दर्शन के लिए होड़ मची थी। उस वक्त नारा भी दिया गया था कि ज्योति से ज्योति जलाते चलो, रामभक्ति की गंगा बहाते चलो...। कारसेवक तारकेश्वरनाथ जायसवाल और केवल कुशवाहा ने बताया कि गुलाल और रामज्योति लेने के लिए खासकर महिलाओं और युवतियों में खासा उत्साह था। 


श्रीराम चरण रज से बढ़ी भगवा रंग की पहचान

केवल कुशवाहा ने बताया कि अयोध्या से भगवा अबीर-गुलाल आया था और तभी से भगवा रंग का प्रचलन शुरू हुआ था। अयोध्या से आए भगवा गुलाल को घर-घर बांटा गया। कन्हैयालाल सिंह के मुताबिक रामनवमी के त्योहार पर अयोध्या से चूरन के रूप में राम प्रसाद आया था। इसे भी घर-घर बांटा गया था।

बाबा विश्वनाथ और संकटमोचन में रखी गई थी रामज्योति

कन्हैयालाल सिंह ने बताया कि अयोध्या से रामज्योति लाकर काशी विश्वनाथ, संकटमोचन, बाबा कालभैरव, संकष्ठी मंदिर और सभी रामजानकी मंदिरों में रखी गई थी। वहां से रामभक्त अपने-अपने घर रामज्योति लेकर गए। रामदरबार की निकली झांकी से भी ज्योति बांटी गई थी।

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