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VIDEO : कैथल से कई मठों के 50 से अधिक संत प्रयागराज कुंभ पहुंचे
प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुंभ मेले में कैथल से पांच से अधिक मठों के संत पहुंचे हैं। इस दौरान महाकुंभ के कार्यक्रम के कपिस्थल संत महामंडल के नेतृत्व में जिले के कई मठों से 50 से अधिक संत महाकुंभ में स्नान करने के लिए गए हैं। जूना अखाड़ा सहित कई संप्रदायों के संत कुंभ मेले में सनातन धर्म की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए गए हैं।
इस दौरान इन संतों ने यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ से भी मुलाकात की। सूर्यकुंड डेरे के मुख्य महंत व कपिस्थल संत महामंडल के अध्यक्ष रमन पुरी ने बताया कि नए साल से पहले ही कुंभ की तैयारियां पूरी हो गई थी। संत ने संदेश दिया कि कुंभ मेले में प्रबंधन की ओर से अच्छे से तैयारी की थी। वहां पर भोजन व रहने की व्यवस्था की गई है। यूपी सरकार ने संतों का विशेष तौर पर ख्याल रखा है।
सरकार सनातन धर्म की संस्कृति को फैलाने के लिए संकल्पबद्ध है। कुंभ मेले में भारतीय संतों के साथ-साथ विदेशों से भी लोग स्नान करने के लिए पहुंच रहे है। कुंभ की मान्यता है कि कुल 12 कुंभ होते हैं, जिनमें से चार पृथ्वी पर होते हैं और बाकी के 8 कुंभ का देव लोक में होते हैं, मान्यताओं के अनुसार देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त करने का प्रयास किया।
जब अमृत कलश की प्राप्ति हुई, तो इसे लेकर देवताओं और दानवों के बीच 12 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ। देवताओं का एक दिन मानव के एक वर्ष के बराबर माना जाता है, इसलिए यह युद्ध पृथ्वी के समय अनुसार 12 वर्षों तक चला।
कहते हैं कि युद्ध के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर गिरीं। इसलिए इन चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। महंत ने बताया कि इस कुंभ मेले में निरंजन पुरी, त्रिवेणी दास, ईश्वर दास, रामेश्वर पुरी, नरेश पुरी, प्रेमानंद पुरी आदि संत पहुंचे हैं।
पंडित रविदत्त शास्त्री ने महाकुंभ के महत्व पर चर्चा की। इस मौके पर गंगा किनारे वास करना असंख्य पुण्यों के उदय होने पर ही किया जा सकता है। फिर माघ के पवित्र महीने में पतित पावनी मां गंगा के किनारे निरंतर भगवान का भजन पूजन, जप तप और संयमित व्यवहार और मर्यादा युक्त आचरण मोक्ष प्रदान कर देता है।
माघ माह के इस महीने में प्रयागराज में निवास करना सर्वोत्तम माना गया है। शास्त्री ने बताया कि महाभारत में कहा कि माघ के महीने में सब तीर्थ और देवताओं का आगमन प्रयागराज में होता है। जो नियम पूर्वक माघ मास में स्नान करते हैं, वे समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं।
प्रयाग देवताओं की यज्ञ भूमि है। श्रीमद्भागवत महापुराण में शुक्र देव महाराज ने राजा परीक्षित को गंगा की महिमा के बारे में बताते हुए कहा कि माघ माह में गंगा स्नान करने से अश्वमेघ और राजसूय यज्ञों के समान फल मिलता है। प्रयाग मात्र तीर्थ नहीं है, माघ स्नान सिर्फ हमारी परंपरा का परिचायक नहीं है, अपितु प्रयाग स्नान हमारे लिए स्थूल और सूक्ष्म दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
हमारी भौतिक जिंदगी प्रयागराज में जाकर आध्यात्मिक रूप लेने लगती है। संगम पर पहुंचकर जीवात्मा मानो परमात्मा से साक्षात्कार करने लगती है। वास्तव में मकर राशि में सूर्य के आने पर तीर्थ राज प्रयाग में सभी तीर्थ निवास करते हैं और उस समय व्यक्ति संगम पर स्नान कर ले तो संपूर्ण तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है।
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