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Himachal Pradesh: सूख रहीं बावड़ियां, खेती हो गई चौपट, पलायन को मजबूर युवा
Video Published by: पंखुड़ी श्रीवास्तव Updated Wed, 17 Dec 2025 01:46 PM IST
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हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर नम्होल उपतहसील का साई नोडुवा गांव आज गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। गांव में गिने-चुने खेतों में ही गेहूं की फसल दिखाई देती है और वह भी अब मुरझाने लगी है। किसानों की नजरें आसमान पर टिकी हैं, क्योंकि सर्दियों में पर्याप्त बारिश न होने की आशंका ने चिंता बढ़ा दी है।
गांव में पानी के परंपरागत स्रोत केवल दो बावड़ियां हैं। ग्रामीणों को डर है कि यदि इस बार भी बारिश कम हुई तो पिछले कुछ वर्षों की तरह ये बावड़ियां गर्मियों में सूख जाएंगी। नीचे बहने वाली अली खड्ड से उठाऊ पेयजल योजना का एक कनेक्शन गांव को मिला है, लेकिन उससे भी बहुत सीमित मात्रा में पानी पहुंच पाता है। गर्मियों में तो स्थिति और भी बदतर हो जाती है। अली खड्ड पर आसपास के हजारों लोगों की निर्भरता है, जिससे गर्मियों में उसमें भी पानी बेहद कम रह जाता है।
बावड़ी के पास खड़े 66 वर्षीय रती राम बताते हैं कि यह बावड़ी बेहद पुरानी है। पिछली बरसात में अच्छी बारिश हुई थी, इसके बावजूद इसमें पानी कम हो गया। अभी से गर्मियों की चिंता सताने लगी है। उनका कहना है कि पहले यहां अदरक, धान और अन्य फसलें भी होती थीं, लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। पीने के पानी का संकट भी गहराता जा रहा है।
गांव के सामने की पहाड़ी की ओर इशारा करते हुए ग्रामीण बताते हैं कि कभी वहां कहलूर रियासत के शासक का ग्रीष्मकालीन प्रवास हुआ करता था और उन पहाड़ियों पर बर्फ भी गिरती थी। आज यह सब केवल इतिहास बनकर रह गया है। पानी और खेती की समस्या के चलते गांव से पलायन की स्थिति पैदा हो चुकी है।
80 वर्षीय संती देवी दूसरी बावड़ी दिखाते हुए बताती हैं कि यहां कभी तालाब हुआ करता था, जहां से कूहल निकलती थी और पानी खेतों तक पहुंचाया जाता था। अब वहां घास और झाड़ियां उग आई हैं।
राजपाल का कहना है कि सिंचाई के साधन न के बराबर हैं, ऊपर से सुअर और मोर जैसी जंगली जीव फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हेमराज ठाकुर बताते हैं कि फोरलेन सड़क निर्माण के लिए जंगलों का कटान हुआ, जिससे जंगली जानवरों का प्राकृतिक आवास बिगड़ा और वे खेतों की ओर आने लगे।
पास के गांव गौटा के निवासी विजय कुमार भी बताते हैं कि उनके गांव में भी पानी की भारी किल्लत है। पहले अदरक की खेती बड़े पैमाने पर होती थी, लेकिन अब हालात ऐसे नहीं रहे। पानी और रोजगार की कमी के कारण युवा बद्दी और चंडीगढ़ जैसे शहरों में नौकरी करने को मजबूर हैं। गांवों में अब ज्यादातर बुजुर्ग पीढ़ी ही बची है।
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