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Cough syrup banned after child deaths, prohibited from being given to children below this age
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बच्चों की मौत के बाद कफ सिरप पर लगा प्रतिबंध, इतने उम्र से कम बच्चों को देने से रोक
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sat, 04 Oct 2025 11:50 AM IST
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मध्यप्रदेश और राजस्थान से मासूम बच्चों की मौत की खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया है। छिंदवाड़ा जिले में अब तक 9, जबकि राजस्थान के सीकर और भरतपुर में एक-एक बच्चे की मौत सामने आई है। सभी मामलों में एक ही पैटर्न दिखा खांसी-जुकाम के लिए दिया गया कफ सिरप, जिसके सेवन के बाद बच्चों की तबीयत बिगड़ी और फिर उनकी किडनी ने काम करना बंद कर दिया।
जांच रिपोर्ट में साफ हुआ कि बच्चों को जो सिरप दिया गया था, उसमें डायएथिलीन ग्लायकॉल नामक खतरनाक रसायन मिला हुआ था। यही ज़हर बच्चों की मौत का कारण बना।
कैसे सामने आई मौतों की सच्चाई?
छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने बताया कि जिन बच्चों की मौत हुई, उनमें से कुछ की किडनी बायोप्सी कराई गई। जांच में पाया गया कि सिरप में डायएथिलीन ग्लायकॉल मौजूद था।
सीकर के खोरी गांव के नित्यांश की मौत भी सिरप पीने से हुई। परिवार ने घर में रखा डेक्स्ट्रोमेथोर्फन सिरप बच्चे को पिलाया। रात तक बच्चा सामान्य था, लेकिन सुबह बेसुध मिला। अस्पताल ले जाते ही उसे मृत घोषित कर दिया गया।
भरतपुर में भी एक बच्चे की मौत के बाद मामला सामने आया। हालांकि यहां स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि बच्चा पहले से निमोनिया से पीड़ित था और उसे जयपुर रेफर किया गया था।
सरकार का रुख क्या है?
राजस्थान स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि यह मौतें राज्य की मुफ्त दवा योजना में बंटे सिरप से नहीं हुईं, बल्कि बच्चों को बिना डॉक्टर की सलाह के घर पर रखा सिरप पिलाया गया था।
वहीं केंद्र सरकार ने बच्चों में कफ सिरप के इस्तेमाल को लेकर नया गाइडलाइन जारी किया है। इसमें 2 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप न देने की सख्त हिदायत दी गई है। 5 साल तक के बच्चों में भी डॉक्टर की सलाह और सावधानीपूर्वक मूल्यांकन के बाद ही यह दवा दी जा सकती है।
कहां से आया था यह सिरप?
छिंदवाड़ा में जिन बच्चों की मौत हुई, उनमें से ज्यादातर को नागपुर रेफर किया गया था। जांच में पता चला कि संदिग्ध सिरप जबलपुर की एक कंपनी से आया था। इसी सिरप पर अब सवाल उठ रहे हैं। भोपाल में एहतियातन Nesto-DS और Coldrif कफ सिरप की बिक्री पर रोक लगा दी गई है।
डायएथिलीन ग्लायकॉल क्या है?
विशेषज्ञों के मुताबिक, डायएथिलीन ग्लायकॉल एक औद्योगिक सॉलवेंट है। इसका इस्तेमाल एंटीफ्रीज, ब्रेक फ्लूड, पेंट, टेक्सटाइल और अन्य इंडस्ट्रियल प्रोडक्ट्स में किया जाता है। शरीर में पहुंचते ही यह डाइग्लाइकोलिक एसिड में बदल जाता है, जो किडनी और नर्वस सिस्टम को गंभीर नुकसान पहुंचाता है।
कफ सिरप में क्यों मिलाया जाता है यह जहर?
डॉ. ज्योत्सना श्रीवास्तव बताती हैं कि सिरप को पतला और मीठा बनाने के लिए कंपनियां इसमें डायएथिलीन ग्लायकॉल मिलाती हैं। यह सस्ता विकल्प है, जिससे दवा की लागत कम हो जाती है। लेकिन जब इसे तय सीमा से ज्यादा मिलाया जाता है, तो यह जहरीला बन जाता है और मौत का कारण बनता है।
लक्षण क्या होते हैं?
डायएथिलीन ग्लायकॉल युक्त सिरप के सेवन के बाद बच्चों में
• पेट दर्द
• उल्टी-दस्त
• पेशाब करने में कठिनाई
• सिरदर्द और मानसिक स्थिति में बदलाव
• और अंत में किडनी फेलियर जैसे लक्षण दिखते हैं।
पहले भी हो चुकी हैं मौतें
यह कोई पहला मामला नहीं है।
• 2019 में जम्मू में दूषित सिरप पीने से 11 बच्चों की मौत हो गई थी।
• 2022 में गाम्बिया में भारत से निर्यात किए गए कफ सिरप पीने से 66 बच्चों की जान चली गई थी।
दोनों मामलों में भी डायएथिलीन ग्लायकॉल ही मौतों का कारण निकला।
हर बार जांच और मौतों के बाद कड़े नियम बनाने की बात होती है, लेकिन हकीकत में हालात नहीं बदलते। छिंदवाड़ा, सीकर और भरतपुर में मासूमों की मौत ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक लालच और लापरवाही के बीच बच्चों की जिंदगी बलि चढ़ती रहेगी?
सरकार ने अलर्ट जारी कर दिया है, लेकिन अब जरूरत है सख्त मॉनिटरिंग और जिम्मेदारी तय करने की, ताकि अगली बार किसी मासूम की जान सिरप की एक खुराक पर निर्भर न हो।
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