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How much danger does tariff pose to India? Finance Ministry report warns!
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टैरिफ से भारत को कितना खतरा? वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट ने दी चेतावनी!
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Thu, 28 Aug 2025 04:10 PM IST
अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर हाल ही में लगाए गए ऊंचे टैरिफ ने वैश्विक व्यापारिक परिदृश्य में नई हलचल पैदा कर दी है। हालांकि, वित्त मंत्रालय के तहत आर्थिक मामलों के विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसका तात्कालिक असर सीमित है, लेकिन लंबे समय में भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरुआत में निर्यात पर असर मामूली है, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला, महंगाई और वैश्विक बाजारों में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा पर बड़ा असर हो सकता है। यही नहीं, अमेरिका की नीति के दूसरे और तीसरे स्तर के प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में घोषणा की कि भारत से होने वाले 60.2 अरब डॉलर के निर्यात पर 50 फीसदी टैरिफ लगेगा और 3.6 फीसदी माल पर 25 फीसदी टैरिफ लागू होगा। हालांकि, करीब 30 अरब डॉलर का सामान इस टैरिफ से बाहर रहेगा।
सबसे ज्यादा असर कपड़ा उद्योग, रत्न-आभूषण और सीफूड सेक्टर पर होगा क्योंकि ये श्रम-प्रधान उद्योग हैं। इसके अलावा, चमड़ा और फुटवियर इंडस्ट्री पर भी दबाव बढ़ेगा। फार्मास्युटिकल्स, मोबाइल फोन और पेट्रोलियम उत्पाद अभी शून्य टैरिफ पर निर्यात हो रहे हैं, लेकिन स्टील, एल्युमीनियम और कॉपर जैसे धातुओं पर 50% टैरिफ लागू हो गया है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए कदमों की घोषणा की है। सबसे अहम कदम है नेक्स्ट-जेनरेशन रिफॉर्म के लिए टास्क फोर्स का गठन।
यह टास्क फोर्स नियमों को सरल बनाने, अनुपालन की लागत कम करने और स्टार्टअप्स, एमएसएमई और उद्यमियों के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने पर काम करेगी। इसके अलावा, सरकार आने वाले महीनों में जीएसटी सुधार लागू करने की तैयारी में है, ताकि जरूरी चीजों पर कर का बोझ घटाया जा सके।
भारत ने वैश्विक व्यापारिक अनिश्चितताओं को देखते हुए अपनी व्यापार नीति को विविध बनाने पर जोर दिया है। हाल ही में भारत ने ब्रिटेन और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के साथ समझौते किए हैं। अमेरिका, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, चिली और पेरू जैसे देशों के साथ एफटीए पर बातचीत जारी है।
हालांकि, रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि इन पहलों का असर दिखने में समय लगेगा। अगर अमेरिकी टैरिफ लंबे समय तक जारी रहते हैं, तो यह कदम निर्यात में संभावित कमी को पूरी तरह से संतुलित नहीं कर पाएंगे।
विशेषज्ञों की राय
महेश सचदेव (पूर्व राजनयिक):
“कपड़ा, रत्न-आभूषण और सीफूड सेक्टर को झटका है, लेकिन यह पूरी तरह से तबाही नहीं है। भारत के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि ये श्रम-प्रधान उद्योग हैं।”
एमजे अकबर (पूर्व विदेश राज्यमंत्री):
“टैरिफ ताकत दिखाने का तरीका है, लेकिन इसका नुकसान अंततः अमेरिका को ही होगा। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी दबाव में झुकेगा नहीं। यह विवाद भारत और चीन को करीब ला रहा है, जो भू-राजनीतिक स्तर पर बड़ा बदलाव है।”
देव गर्ग (आईआरईएफ):
“अमेरिका भारत के लिए चावल का बड़ा बाजार है, जहां उपभोक्ता ऊंचे दाम चुकाने को तैयार हैं। लंबी अवधि में यह निर्यातकों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है।”
डॉ. अजय सहाय (FIEO):
“टैरिफ भारत के कुल निर्यात के लगभग 55% हिस्से पर असर डाल रहा है। एमएसएमई को राहत की जरूरत है क्योंकि उनके पास अधिक पूंजी नहीं होती। सरकार को फंड जारी कर स्किल ट्रेनिंग पर ध्यान देना चाहिए।”
अमेरिकी टैरिफ से भारत को फिलहाल बड़ा नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन लंबी अवधि में यह निर्यात, आपूर्ति श्रृंखला और महंगाई पर असर डाल सकता है। सरकार ने टास्क फोर्स और व्यापार नीति में विविधता जैसे कदम उठाए हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह संकट स्थायी नहीं है, लेकिन एमएसएमई और श्रम-प्रधान उद्योगों को तुरंत राहत की जरूरत है।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह झुकने वाला नहीं है। अब देखना यह है कि अमेरिका-भारत के बीच यह टकराव किस मोड़ पर खत्म होता है – समझौते से या नए तनाव से।
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