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भारत-अमेरिका व्यापार विवाद पर जयशंकर का ट्रंप को करारा जवाब
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sat, 23 Aug 2025 08:46 PM IST
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कर दिया है कि भारत और अमेरिका के बीच जारी व्यापार वार्ता में कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर समझौता किसी भी हाल में संभव नहीं है। इन सीमाओं को उन्होंने ‘रेड लाइन्स’ बताया। जयशंकर ने कहा कि किसानों और छोटे उत्पादकों के हित हमारे लिए आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकार से भी जुड़े हुए हैं। इसलिए इन मुद्दों पर भारत अपने रुख से पीछे नहीं हटेगा।
आर्थिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम में बोलते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि यह वार्ता कितनी सफल होगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत अपनी प्राथमिकताओं पर कितना डटा रहता है। उन्होंने दो टूक कहा,
“हमारे लिए यह सिर्फ व्यापारिक मसला नहीं है, बल्कि किसानों और छोटे उत्पादकों की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। यह हमारी अर्थव्यवस्था और समाज दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।”
भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से व्यापारिक मतभेद जारी हैं। हाल ही में इन मतभेदों में उस समय बढ़ोतरी हुई जब अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय सामान पर शुल्क बढ़ाने का फैसला किया। वहीं भारत ने भी अपनी ओर से जवाबी कदम उठाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि इन वार्ताओं का असर आने वाले समय में दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों पर गहरा पड़ सकता है। जयशंकर के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत दबाव में आकर कोई बड़ा रियायत देने के मूड में नहीं है।
कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति की शैली पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि ट्रंप का तरीका परंपरागत अमेरिकी नीति से बिल्कुल अलग है।
जयशंकर ने कहा,
“ट्रंप जिस तरह से विदेश नीति को सार्वजनिक मंच पर चलाते हैं, वह पहले कभी नहीं देखा गया। यह न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है। यह एक बड़ा बदलाव है।”
विश्लेषकों के मुताबिक, जयशंकर का यह बयान संकेत देता है कि भारत अमेरिकी प्रशासन की मौजूदा कार्यशैली को लेकर सजग है और हर कदम पर अपनी प्राथमिकताओं को सुरक्षित रखना चाहता है।
भारत और अमेरिका के बीच एक और बड़ा विवाद रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने को लेकर है। अमेरिका ने आरोप लगाया कि भारत रूस से तेल खरीदकर उसे यूरोप समेत अन्य बाजारों में बेच रहा है। इस पर जयशंकर ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“अगर उन्हें भारतीय तेल या पेट्रोलियम उत्पाद पसंद नहीं, तो वे खरीदें ही नहीं। भारत किसी को खरीदने के लिए मजबूर नहीं करता। लेकिन सच यह है कि अमेरिका और यूरोप खुद इन्हें खरीदते हैं।”
उनके इस बयान ने साफ कर दिया कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को लेकर किसी दबाव में नहीं आएगा और राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखेगा।
कार्यक्रम में एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने इस धारणा को खारिज किया कि अमेरिका से व्यापारिक मतभेदों के बीच भारत और चीन के रिश्ते सुधर रहे हैं। उन्होंने कहा,
“दोनों रिश्तों को जोड़कर देखना गलत है। भारत अपने पड़ोसी चीन से जुड़ी चुनौतियों को अलग ढंग से देखता है और इसका अमेरिकी व्यापार वार्ता से कोई लेना-देना नहीं है।”
यह बयान इस बात का संकेत है कि भारत अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखते हुए बहुपक्षीय चुनौतियों का सामना कर रहा है।
जयशंकर का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत अमेरिकी बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाना चाहता है, लेकिन घरेलू कृषि और छोटे उद्योगों के हितों से समझौता नहीं करना चाहता। विश्लेषकों का कहना है कि यह रणनीति आने वाले समय में भारत की आर्थिक कूटनीति की दिशा तय करेगी।
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