मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को बरी किए जाने के बाद उनकी बड़ी बहन उपमा सिंह ने एक बड़ा बयान दिया है. उपमा सिंह ने कहा कि इस फैसले से हिंदुत्व की जीत हुई है और सत्य ने असत्य पर विजय प्राप्त की है. उन्होंने साध्वी प्रज्ञा को ‘शेरनी’ बताया और बताया कि वे निजी दौरे पर बिलासपुर पहुंची हैं. उपमा सिंह का यह बयान साध्वी प्रज्ञा की बरी होने की खुशी और गर्व को दर्शाता है.
वहीं, रायपुर से पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज ने मालेगांव बम ब्लास्ट केस के फैसले पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह के आधार पर बरी किया है. उन्होंने इस फैसले को बड़ी लापरवाही बताया और कहा कि एनआईए ने इस मामले की जांच ठीक से नहीं की. दीपक बैज ने स्पष्ट किया कि सबूतों के अभाव में यह निर्णय आया है, लेकिन यह देश के न्याय व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है. उन्होंने सरकार और जांच एजेंसियों से इस मामले की पुनः जांच करने की मांग भी की है.
मालेगांव बम ब्लास्ट केस 17 साल से देश में चर्चा का विषय रहा है. इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत आठ आरोपियों पर 2008 में हुए विस्फोट का आरोप था. मामले की जांच और न्याय प्रक्रिया में कई वर्षों तक विवाद और राजनीतिक बयानबाजी होती रही. साध्वी प्रज्ञा के समर्थक इसे राजनीतिक उत्पीड़न मानते आए हैं, जबकि विपक्षी दल इसे गंभीर आतंकवादी घटना बताते हैं.
साध्वी प्रज्ञा की बरी होने के बाद उनके समर्थकों ने इसे एक बड़ी जीत माना है, जबकि विपक्ष ने इसे न्याय प्रणाली की विफलता बताया है. उपमा सिंह के बयान ने साध्वी प्रज्ञा के समर्थकों को और आत्मविश्वास दिया है. दूसरी ओर, पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज का बयान इस फैसले पर सवाल उठाता है और जांच की सच्चाई सामने लाने की अपील करता है.
मामले के निर्णय ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर नई बहस छेड़ दी है. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मालेगांव ब्लास्ट केस अब भी संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है. साध्वी प्रज्ञा की बरी के बाद उनका राजनीतिक सफर भी नई गति पकड़ेगा, वहीं विपक्ष इस फैसले के खिलाफ कानूनी विकल्प तलाशने की संभावना जताता रहा है. इस बीच, न्यायालय के फैसले को लेकर विभिन्न वर्गों में मतभेद देखे जा रहे हैं. साध्वी प्रज्ञा की बहन उपमा सिंह की खुशी और बयान उनके परिवार के इस फैसले को लेकर गर्व को दर्शाता है. वहीं, राजनीतिक दलों के बीच इस फैसले को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं, जो देश की न्याय व्यवस्था और जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल खड़े करती हैं.
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