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Nitish Kumar is adamant about seats in NDA, Chirag is also determined to create a ruckus!
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NDA में सीटों को लेकर अड़ गए नीतीश कुमार, चिराग ने भी ठानी रार!
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Tue, 14 Oct 2025 12:01 PM IST
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने रविवार को सीट बंटवारे पर सहमति बनने की घोषणा तो पूरे जोरशोर से कर दी, लेकिन 24 घंटे भी नहीं बीते कि भीतरखाने में नया संकट खड़ा हो गया। सोमवार को होने वाली संयुक्त प्रेस वार्ता अंतिम समय में टाल दी गई। वजह अब विवाद सीटों की संख्या नहीं, बल्कि चिह्नित क्षेत्रों पर आ गया है।
दरअसल, सीट संख्या पर सहमति बनने के बाद अब यह तय होना बाकी है कि किस पार्टी को कौन-सी विधानसभा सीट मिलेगी। यहीं से सारा खेल बिगड़ गया। सूत्र बताते हैं कि जदयू अब अपने हिस्से की कुछ पारंपरिक सीटें छोड़ने को तैयार नहीं है, जबकि सहयोगी दल लोजपा (रामविलास), हम (हितैशी) और आरएलएम (राष्ट्रीय लोकमत) इन्हीं सीटों पर दावा ठोक रहे हैं।
बीते चुनाव में भाजपा और जदयू के बीच ‘बड़ा भाई–छोटा भाई’ की जो बहस चली थी, इस बार समीकरण पलट गया है। भाजपा ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जबकि जदयू को भी उतनी ही सीटें मिली हैं, लेकिन सहयोगियों को दी गई कुछ सीटें दरअसल जदयू के पुराने हिस्से की हैं।
जदयू कदवा, सिमरी बख्तियारपुर, बरारी और साहेबपुर कमाल जैसी सीटें छोड़ने के मूड में नहीं है। उधर, लोजपा इन सीटों पर अपना हक जताते हुए पीछे हटने को तैयार नहीं। नतीजा राजग की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस को टालना पड़ा।
पटना के भाजपा कार्यालय में सोमवार सुबह हलचल तेज थी। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा से बातचीत की। लक्ष्य था सीट विवाद सुलझाना। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अगर जदयू के साथ समझौता बनता है तो भाजपा को एक बार फिर हम, लोजपा और आरएलएम से भी विमर्श करना होगा।
एक भाजपा रणनीतिकार ने बताया, “पहले ही हमने सहयोगियों को उम्मीद से कम सीटें दी हैं। अब अगर मनमाफिक क्षेत्र भी नहीं मिले तो इन्हें मनाना बहुत मुश्किल होगा।”
राजग के अंदरूनी असंतोष को अब सहयोगियों ने सार्वजनिक कर दिया है। आरएलएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया पर कार्यकर्ताओं से माफी मांगते हुए लिखा “आज बादलों ने फिर साजिश की, जहां मेरा घर था वहीं बारिश की।” उनका यह शायराना ट्वीट संकेत देता है कि वे सीट बंटवारे से बेहद निराश हैं।
वहीं, हम (Hindustani Awam Morcha) प्रमुख जीतन राम मांझी ने कहा कि, “हमारे कार्यकर्ताओं में निराशा और गुस्सा है। उम्मीदों से कम सीटें मिलने से नुकसान एनडीए को हो सकता है।”
इन दोनों नेताओं की टिप्पणी से साफ है कि राजग के भीतर असंतोष का गुबार अब धीरे-धीरे बाहर आने लगा है।
सूत्रों की मानें तो भाजपा और जदयू दोनों ही इस विवाद को सुलझाने के लिए एक नए “ट्रेड-ऑफ” फॉर्मूले पर विचार कर रहे हैं। इसके तहत जदयू के कुछ उम्मीदवारों को लोजपा (आर) के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है।
यह वही रणनीति है जो 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वीआईपी पार्टी के साथ अपनाई थी कुछ सीटें सहयोगी को दीं, लेकिन उम्मीदवार अपने ही खड़े किए। इस बार भी वैसी ही व्यवस्था पर मंथन चल रहा है ताकि सभी दलों का ‘सम्मान’ बचा रहे।
राजग के अंदरूनी मतभेद की खबर दिल्ली तक पहुंच चुकी है। केंद्रीय नेतृत्व को भी स्थिति की जानकारी दी गई है। बताया जा रहा है कि भाजपा आलाकमान ने सम्राट चौधरी को यह जिम्मेदारी दी है कि वे जदयू को मनाएं और सहयोगियों के बीच तालमेल बनाए रखें।
हालांकि अंदरखाने यह भी चर्चा है कि यदि जदयू ने ज्यादा अड़ियल रवैया अपनाया, तो भाजपा कुछ सीटें खुद अपने खाते से काटकर लोजपा और आरएलएम को देने का रास्ता अपना सकती है।
एनडीए ने सीट बंटवारे की घोषणा कर चुनावी एकता का प्रदर्शन करने की कोशिश तो की, पर ज़मीन पर हकीकत कुछ और ही दिख रही है। जदयू, भाजपा, लोजपा, हम और आरएलएम के बीच यह तकरार अगर जल्द नहीं सुलझी, तो इसका असर सीधे चुनावी मैदान पर पड़ सकता है।
फिलहाल, एनडीए की रणनीति यही है विवाद को “अंदर ही अंदर” सुलझाया जाए, ताकि विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा न बना सके। लेकिन बिहार की राजनीति में यह पुरानी कहावत एक बार फिर सही साबित होती दिख रही है- “यहां दोस्ती भी सौदे पर टिकती है, और सौदा भी सीट पर।”
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