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Political discussions intensify after Uddhav-Fadnavis meeting, BJP's uneasiness increased due to MNS's entry?
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उद्धव-फडणवीस की मुलाकात के बाद सियासी चर्चाएं तेज, MNS की एंट्री से बढ़ी BJP की बेचैनी?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Fri, 18 Jul 2025 11:41 AM IST
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर करवट लेती दिख रही है। विपक्ष में बैठे उद्धव ठाकरे के साथ भाजपा के सबसे मजबूत चेहरे देवेंद्र फडणवीस की दो दिन में दो बार मुलाकात ने सियासी पारे को चढ़ा दिया है। जहां बुधवार को विधानसभा के भीतर दोनों नेताओं ने इशारों में एक-दूसरे की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, वहीं गुरुवार को विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कार्यालय में हुई उनकी बंद कमरे में 20 मिनट की मुलाकात ने चर्चाओं को और हवा दे दी है।
इस मीटिंग में आदित्य ठाकरे की मौजूदगी ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौंका दिया है। मुलाकात के तुरंत बाद उद्धव गुट ने इसे एक शैक्षणिक मुद्दे से जुड़ी पहल बताया, लेकिन फडणवीस के बीते दिन के बयान को देखें तो इस मुलाकात का अर्थ कहीं गहरा नजर आता है।
बुधवार को विधानसभा में फडणवीस ने कहा था – “भारतीय जनता पार्टी 2029 तक विपक्ष में जाने वाली नहीं है।”
इसके साथ ही उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से उद्धव ठाकरे को यह कहकर न्योता दे दिया कि “अगर कोई अलग रास्ता चुनना चाहे, तो दरवाजे खुले हैं।” यह बयान ऐसे समय पर आया जब उद्धव ठाकरे सरकार की तीन-भाषा नीति पर लगातार हमलावर थे।
क्या यह सिर्फ बयानबाज़ी थी या किसी सियासी समीकरण का हिस्सा? गुरुवार की मुलाकात ने इस सवाल को और गहरा कर दिया।
भाजपा और शिवसेना ने महाराष्ट्र की राजनीति में 25 साल तक गठबंधन की राजनीति की। लेकिन 2014 में सीट बंटवारे को लेकर यह साथ टूट गया। 2019 में उद्धव ठाकरे ने भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार बनाई। यह सरकार 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद गिर गई और भाजपा ने शिंदे के साथ सरकार बना ली।
लेकिन अब जब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के रिश्तों में गर्मजोशी लौट रही है, तो भाजपा को फिर से पुराने रिश्ते जोड़ने की ज़रूरत महसूस हो रही है।
5 जुलाई को उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने दो दशकों बाद पहली बार एक साथ मंच साझा किया। यह मौका था महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने वाले आदेशों को वापस लेने के फैसले के जश्न का। मंच से दोनों भाइयों ने ‘मराठी अस्मिता’ की बात की और पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक होने की इच्छा जताई।
राज ठाकरे ने अप्रैल में ही कहा था – “मराठी मानूस की भलाई के लिए हमें एक साथ आना होगा।”
इस बयान को अब भाजपा ने गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है। पार्टी को डर है कि अगर मराठी वोट बैंक को लेकर ठाकरे बंधु एक हो गए तो भाजपा को 2029 के विधानसभा चुनावों में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यह सबसे बड़ा सवाल है। 2024 लोकसभा चुनावों में शिवसेना (UBT) को कुछ खास सफलता नहीं मिली। वहीं कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ गठबंधन में भी मतभेद साफ हैं। इस समय भाजपा एकनाथ शिंदे के साथ सत्ता में है, लेकिन शिंदे की लोकप्रियता अब फडणवीस के लिए बोझ बनती जा रही है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि फडणवीस उद्धव ठाकरे के राजनीतिक पुनर्वास का रास्ता खोलना चाहते हैं, जिससे मराठी मतदाता भाजपा से पूरी तरह न कटे। अगर शिवसेना (UBT) साथ आती है तो भाजपा को शिंदे को किनारे करना पड़ सकता है।
आदित्य ठाकरे ने बताया कि गुरुवार की मुलाकात में उन्होंने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें पहली कक्षा से तीन-भाषा नीति पर आपत्ति जताई गई थी। इस मुद्दे को उद्धव गुट ने मराठी भाषा की गरिमा से जोड़ा है। सरकार को इस पर बैकफुट पर लाने के लिए ठाकरे गुट ने इसे जनभावना से जोड़कर बड़ी रणनीति बनाई है।
लेकिन दूसरी तरफ, फडणवीस ने इस मुद्दे को हल्का बनाकर पीछे हटने का संकेत दिया है। माना जा रहा है कि भाषा की राजनीति, उद्धव और फडणवीस के बीच बातचीत की एक आम ज़मीन बन गई है।
हालांकि विधानसभा चुनाव 2029 में हैं, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति लंबे प्लानिंग से चलती है। भाजपा को समझ आ गया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र से मिले संकेत अच्छे नहीं हैं। राज-उद्धव की एकता का डर और शिंदे की सीमित पकड़ को देखकर पार्टी अब “डैमेज कंट्रोल मोड” में है।
2029 को देखते हुए भाजपा चाहती है कि उद्धव ठाकरे को एक सम्मानजनक वापसी का विकल्प दिया जाए – ताकि मराठी भावना को साधा जा सके, और विपक्ष में कोई बड़ा ‘मराठी फ्रंट’ खड़ा न हो सके।
महाराष्ट्र की राजनीति में कोई भी रिश्ता स्थायी नहीं होता।
उद्धव ठाकरे और फडणवीस, जिन्होंने एक-दूसरे पर तीखे हमले किए हैं, अब एक बार फिर बातचीत की मेज पर हैं।
राज ठाकरे के साथ बढ़ती नजदीकियों ने भाजपा को रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है।
आगामी दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या फडणवीस की रणनीति रंग लाती है या ठाकरे बंधु मिलकर भाजपा को एक और राजनीतिक चुनौती देने की तैयारी में हैं।
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