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Shashi Tharoor raises questions on India's participation in the Gaza peace conference
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गाजा शांति सम्मेलन में भारत की भागीदारी पर शशि थरूर ने उठाए सवाल
अमर उजाला डिजिटल डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Tue, 14 Oct 2025 12:05 PM IST
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इस्राइल और हमास के बीच दो साल से जारी खूनी संघर्ष के बाद आखिरकार शांति समझौता हो गया है। इस ऐतिहासिक मौके को लेकर दुनियाभर में राहत और खुशी का माहौल है। मिस्र के शर्म अल-शेख में आयोजित गाजा शांति सम्मेलन में दर्जनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री और शीर्ष प्रतिनिधि शामिल हुए। लेकिन भारत की तरफ से केवल विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह की मौजूदगी ने नई राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है।
कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतने बड़े मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व “कमज़ोर” और “कमज़ोर संदेश” देने वाला साबित हुआ। उन्होंने कहा कि दुनिया के कई बड़े देशों के शीर्ष नेता वहां मौजूद थे, लेकिन भारत की ओर से सिर्फ एक राज्य मंत्री का पहुंचना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका को सीमित दिखाता है।
थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी पोस्ट में लिखा कि यह सवाल किसी व्यक्ति विशेष के प्रति नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं को लेकर है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कीर्ति वर्धन सिंह की योग्यता या प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन “इतने बड़े सम्मेलन में केवल राज्य मंत्री का प्रतिनिधित्व यह संकेत देता है कि भारत शायद इस मामले में जानबूझकर रणनीतिक दूरी बनाए रखना चाहता है।”
थरूर ने कहा, “हमारे आधिकारिक बयान इस ‘रणनीतिक दूरी’ की भावना को पूरी तरह व्यक्त नहीं करते। यह जरूरी है कि भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और पुनर्निर्माण के प्रयासों में एक प्रभावशाली भूमिका निभाए।”
थरूर ने यह भी कहा कि भारत का प्रतिनिधित्व अगर उच्च स्तर पर होता, तो गाजा पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता पर भारत की आवाज़ अधिक प्रभावशाली ढंग से सुनी जाती। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में मौजूद प्रमुख नेताओं के बीच भारत की उपस्थिति “औपचारिक” नजर आई, जबकि भारत को “सक्रिय” भूमिका में होना चाहिए था।
थरूर ने लिखा कि भारत दशकों से मध्य पूर्व में एक संतुलित शक्ति के रूप में देखा जाता रहा है, लेकिन इस बार हमारी उपस्थिति ने यह छवि कमजोर की है। उन्होंने इसे एक “मिस्ड ऑपर्च्युनिटी” बताया और कहा कि यह सोचने की जरूरत है कि क्या भारत ने सच में एक बड़ा मौका गंवा दिया है, या यह किसी बड़े रणनीतिक संयम का हिस्सा था।
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गाजा शांति समझौते के बाद इस्राइली बंधकों की रिहाई पर खुशी जताई है। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भूमिका की सराहना की।
पीएम मोदी ने कहा, “हम दो साल से अधिक समय तक बंधक बनाए गए सभी लोगों की रिहाई का स्वागत करते हैं। उनकी आज़ादी उनके परिवारों के साहस, राष्ट्रपति ट्रंप के अटूट शांति प्रयासों और प्रधानमंत्री नेतन्याहू के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। भारत क्षेत्र में शांति बहाल करने के हर प्रयास का समर्थन करता है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने सम्मेलन में सीमित उपस्थिति रखकर “रणनीतिक संतुलन” बनाए रखने की कोशिश की है। भारत की विदेश नीति लंबे समय से इस्राइल और फिलिस्तीन, दोनों के साथ समान संबंधों पर आधारित रही है।
लेकिन थरूर का सवाल यह है कि “क्या भारत का संतुलन इस बार उसकी दृश्यमान उपस्थिति को कमजोर नहीं कर गया?”
उनके अनुसार, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सक्रिय भूमिका ही उसकी विश्वसनीयता को मजबूत करती है। और इसलिए आने वाले समय में यह चर्चा और गहरी हो सकती है कि भारत ने यह “कम प्रतिनिधित्व” रणनीति से किया, या यह एक कूटनीतिक भूल थी।
गाजा में शांति का सूरज भले उग गया हो, लेकिन भारत की भूमिका को लेकर बहस अभी जारी है। थरूर का बयान भारत की विदेश नीति पर नए सवाल खड़े करता है क्या यह संयम है या चूक? फिलहाल, दुनिया शांति का जश्न मना रही है, और भारत के सामने चुनौती है इस नई व्यवस्था में खुद को फिर से एक प्रभावशाली मध्यस्थ के रूप में स्थापित करने की।
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