Hindi News
›
Video
›
India News
›
Why will small packets remain expensive even after GST rates are reduced?
{"_id":"68c5114bd9ac986bbe071909","slug":"why-will-small-packets-remain-expensive-even-after-gst-rates-are-reduced-2025-09-13","type":"video","status":"publish","title_hn":"जीएसटी दरों में कटौती पर भी छोटे पैकेट महंगे क्यों रहेंगे?","category":{"title":"India News","title_hn":"देश","slug":"india-news"}}
जीएसटी दरों में कटौती पर भी छोटे पैकेट महंगे क्यों रहेंगे?
वीडियो डेस्क अमर उजाला डॉट कॉम Published by: आदर्श Updated Sat, 13 Sep 2025 12:08 PM IST
22 सितंबर से लागू होने वाली जीएसटी दरों में कटौती का असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर उम्मीद के मुताबिक देखने को नहीं मिलेगा। खासकर, रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ी चीजों जैसे बिस्कुट, साबुन और टूथपेस्ट के छोटे पैकेट पर उपभोक्ताओं को तत्काल कोई राहत नहीं मिलने वाली है।
एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियों ने साफ कहा है कि वे 5 रुपये, 10 रुपये और 20 रुपये वाले छोटे पैकेट की कीमतों में कटौती नहीं कर पाएंगी। कंपनियों का तर्क है कि भारतीय उपभोक्ताओं के मनोवैज्ञानिक मूल्य ढांचे को तोड़ना उनके लिए संभव नहीं है।
क्या है मामला?
अभी तक 20 रुपये वाले बिस्कुट पैक पर 18 फीसदी जीएसटी लागू था। 22 सितंबर के बाद यह टैक्स घटकर 5 फीसदी हो जाएगा। यानी सिद्धांत रूप से उपभोक्ता को अब यह पैकेट 20 रुपये की बजाय लगभग 18 रुपये में मिलना चाहिए।
लेकिन कंपनियों का कहना है कि वे इस तरह की कटौती करके 20 रुपये के पैकेट को 18 रुपये में बेचने का जोखिम नहीं उठा सकतीं। क्योंकि भारतीय उपभोक्ता की आदत 5, 10 और 20 रुपये के पैकेट खरीदने की है। अगर ये कीमतें बदल गईं तो बिक्री पर नकारात्मक असर पड़ेगा और उपभोक्ता को यह बदलाव स्वीकार करना मुश्किल होगा।
एक एफएमसीजी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) के साथ बातचीत में कहा:
“अगर हम जीएसटी कटौती का पूरा लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाएं तो 20 रुपये वाला पैकेट 18 रुपये में बिकेगा। लेकिन उपभोक्ता 18 रुपये की एमआरपी को स्वीकार नहीं करेगा। उसकी मांग केवल 5, 10 और 20 रुपये की श्रेणी में रहती है। इसलिए हम इस ढांचे को बिगाड़ना नहीं चाहते।”
दूसरी कंपनियों का भी मानना है कि इस ढांचे को तोड़ने से ब्रांड लॉयल्टी और बिक्री रणनीति दोनों प्रभावित होंगी।
तो सवाल यह उठता है कि उपभोक्ताओं को फायदा कैसे मिलेगा? कंपनियों का कहना है कि वे कीमत घटाने की बजाय पैक में मौजूद वस्तु की मात्रा बढ़ा देंगी।
यानी 20 रुपये वाला बिस्कुट पैकेट आगे भी 20 रुपये में ही मिलेगा, लेकिन उसमें बिस्कुट की संख्या या वजन कुछ बढ़ जाएगा। इसे कंपनियां “ग्रामेज इंक्रीज” की रणनीति कह रही हैं।
बीकाजी फूड्स इंटरनेशनल के सीएफओ ऋषभ जैन ने कहा, “हम इंपल्स पैक्स (यानी वे उत्पाद जिन्हें उपभोक्ता बिना प्लानिंग के खरीद लेता है) में ग्रामेज बढ़ाएंगे। इससे उपभोक्ता को जीएसटी कटौती का लाभ मिलेगा।”
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में सरकार ऐसे उत्पादों पर दिशानिर्देश जारी कर सकती है। ताकि कंपनियां टैक्स कटौती का फायदा उपभोक्ताओं तक पहुंचाए बिना अनजाने में मुनाफाखोरी न करने लगें।
सरकार की चिंता यह है कि कहीं कंपनियां केवल दिखावे के लिए पैकेट का आकार थोड़ा बड़ा कर दें और असल लाभ अपने पास रख लें। इसलिए पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए निगरानी तंत्र पर काम किया जा रहा है।
डाबर इंडिया के सीईओ मोहित मल्होत्रा का कहना है कि कंपनियां उपभोक्ताओं तक लाभ पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनका मानना है कि टैक्स कटौती के बाद उपभोक्ताओं को बेहतर मूल्य मिलेगा और इससे उत्पादों की खपत बढ़ेगी।
उन्होंने कहा, “हम निश्चित तौर पर जीएसटी दरों में कटौती का लाभ ग्राहकों तक पहुंचाएंगे। इससे बाजार में मांग तेज होगी और उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी।”
मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि एफएमसीजी कंपनियां उपभोक्ता मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझती हैं। छोटे पैकेट की कीमतें भारतीय बाजार की रीढ़ हैं। यह वर्ग ग्रामीण और निम्न आयवर्ग के उपभोक्ताओं पर आधारित है।
अगर इनकी कीमतों में 1 या 2 रुपये का बदलाव भी किया जाए तो उपभोक्ता का नजरिया तुरंत बदल जाता है। यही कारण है कि कंपनियां इस ढांचे को टूटने नहीं देना चाहतीं।
बाजार विश्लेषकों का अनुमान है कि भले ही एमआरपी में सीधी कटौती न हो, लेकिन ग्रामेज बढ़ने से उपभोक्ता को फायदा मिलेगा। इससे उसी पैसे में ज्यादा उत्पाद मिलेगा। लंबे समय में इससे खपत बढ़ेगी और कंपनियों की बिक्री भी मजबूत होगी।
जीएसटी दरों में कटौती उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी राहत का संकेत है, लेकिन इसका असर भारतीय बाजार की वास्तविकताओं से टकरा रहा है। 5 रुपये, 10 रुपये और 20 रुपये वाले पैकेट भारतीय उपभोक्ता की खरीद आदतों का स्थायी हिस्सा बन चुके हैं।
कंपनियां इस ढांचे को तोड़ने से हिचक रही हैं और कीमतें घटाने की बजाय पैकेट का साइज बढ़ाने की रणनीति अपना रही हैं। सरकार भी इस पर पैनी नज़र रखे हुए है।
यानी 22 सितंबर के बाद भी बिस्कुट, साबुन और टूथपेस्ट के छोटे पैकेट सस्ते तो नहीं होंगे, लेकिन उनमें मौजूद उत्पाद की मात्रा बढ़ सकती है। उपभोक्ता के लिए असली सवाल यही है कि यह राहत कितनी पारदर्शी और असरदार साबित होगी।
एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें
Next Article
Disclaimer
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।