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Tribal women of self-help groups making herbal coloured gulaal from flowers and leaves
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Sagar News: फूलों से हर्बल रंग गुलाल बना रही स्वसहायता समूह की आदिवासी महिलाएं, होली के कारण जोरों पर काम
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: सागर ब्यूरो Updated Fri, 07 Mar 2025 12:30 PM IST
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने में आजीविका मिशन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस मिशन से जुड़े स्वसहायता समूहों की महिलाएं नए-नए कार्यों के जरिए अपनी आजिविका को सशक्त कर रही हैं।
अब होली का त्योहार नजदीक आ रहा है। रंगों के इस पर्व में लोग जमकर रंग व गुलाल का उपयोग करते हैं। हालांकि, बाजार में मिलने वाले केमिकलयुक्त रंगों से त्वचा संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इस कारण अब हर्बल रंगों और गुलाल की मांग तेजी से बढ़ने लगी है। इसी को ध्यान में रखते हुए, आजीविका मिशन स्वसहायता समूहों से जुड़ी सागर जिले की महिलाएं इन दिनों प्राकृतिक फूलों और वनस्पतियों से हर्बल रंग और गुलाल तैयार कर रही हैं।
जिले के पडरिया गांव स्थित राधारानी गौशाला का संचालन करने वाली लक्ष्मी स्वसहायता समूह की आदिवासी महिलाएं फूलों और वनस्पतियों से हर्बल गुलाल और रंग बना रही हैं। इन महिलाओं ने बताया कि वे टेसू, सेमल के फूल, स्थानीय वनस्पति के फूलों और पेड़ों की पत्तियों को सुखाकर पीसती हैं और उनसे प्राकृतिक रंग व गुलाल तैयार करती हैं। इसके बाद इन्हें पैक कर आजीविका मिशन सागर के माध्यम से बेचा जाता है।
इन हर्बल रंगों की विशेषताएं
पूरी तरह से प्राकृतिक व केमिकल-फ्री
त्वचा और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित
पर्यावरण के अनुकूल
गोबर से लकड़ी और कंडे भी बना रहीं महिलाएं
अच्छी आमदनी भी हो रही
आजीविका मिशन के सागर विकासखंड प्रबंधक ने बताया कि ये आदिवासी महिलाएं पिछले चार वर्षों से राधारानी गौशाला का सफल संचालन कर रही हैं। पर्यावरण संरक्षण और वनों की कटाई रोकने के लिए ये महिलाएं गोबर से गौ-कास्ट (गोबर की लकड़ी) और कंडे तैयार करती हैं। इसके अलावा, होली के लिए विशेष मालाएं भी बनाई जाती हैं। पिछले साल से उन्होंने हर्बल गुलाल और रंगों का निर्माण शुरू किया, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है। महिलाओं द्वारा बनाए गए ये सभी उत्पाद लोगों को पसंद आ रहे हैं और इनकी अच्छी बिक्री हो रही है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।
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