सीहोर जिले में मानवीय रिश्तों की ऐसी मिसाल सामने आई है, जिसने समाज के दिलों को झकझोर दिया। गंज निवासी सुरेंद्र राठौर और नकुल राठौर ने अपने दिवंगत छोटे भाई रजत राठौर की पत्नी प्रतिभा का पुनर्विवाह कराकर ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जो आज की दुनिया में विरले ही देखने को मिलता है। जिस दौर में अधिकांश लोग मुश्किल समय में जिम्मेदारियों से किनारा कर लेते हैं, वहां राठौर परिवार की यह पहल संवेदनाओं और मानवता की नई परिभाषा बनकर उभरी है।
दुखों की छाया में उम्मीद की लौ बनी परिवार की सोच
राठौर परिवार का सबसे छोटा बेटा रजत, विवाह के सिर्फ नौ महीने बाद ही हार्ट अटैक से चल बसा। यह दर्द पूरे परिवार पर पहाड़ बनकर टूटा, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित हुई उसकी पत्नी प्रतिभा, जिसकी उम्र भी कम थी और पूरी जिंदगी आगे पड़ी थी। समाज में विधवा शब्द सुनकर ही कई लोग दूरी बना लेते हैं, लेकिन इस परिवार ने उसे बोझ नहीं, बल्कि अपनी बेटी की तरह स्वीकार कर नई राह दिखाने का निर्णय लिया। परिवार ने तय किया कि प्रतिभा अकेली नहीं रहेगी, बल्कि एक सम्मानजनक जीवन पाएगी।
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रूढ़ियों को तोड़ते हुए जेठों ने निभाया भाई का फर्ज
सुरेंद्र और नकुल राठौर ने समाज की उस मानसिकता को चुनौती दी, जो विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार देने से कतराती है। दोनों बड़े भाइयों ने स्वयं प्रतिभा के पुनर्विवाह की पहल की और भाई बनकर पूरी जिम्मेदारी भी उठाई। जिस तरह वे अपनी वास्तविक बहन की शादी में हर रस्म निभाते, ठीक उसी प्रेम और मान के साथ उन्होंने प्रतिभा की शादी की हर परंपरा में भाग लिया। यह कदम समाज में बदलाव की दिशा में उठाया गया साहसिक और प्रेरणादायक कदम है।
पुनर्विवाह का भावनात्मक समारोह, कन्यादान से लेकर विदाई तक निभाई सभी रस्में
विवाह समारोह में सोनकच्छ निवासी सुमित राठौर से प्रतिभा का विवाह कराया गया। ससुराल पक्ष ने स्वयं कन्यादान करते हुए प्रतिभा को बेटी की तरह सम्मान दिया। सुरेंद्र और नकुल ने भाइयों की भूमिका निभाते हुए सारी रस्में पूरी कीं। गृहस्थी का पूरा सामान उपहार में देकर नई जिंदगी की शुरुआत को मजबूती से सजाया गया। यह विवाह दृश्य ऐसा था जिसे देखकर हर किसी की आंखें नम हो गईं। दुख की जगह खुशी, विछोह की जगह अपनापन और संवेदना का भाव वातावरण में गूंजता रहा।
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कर्तव्य की मिसाल
सुरेंद्र राठौर ने भावुक होकर बताया कि रजत की मौत के बाद पूरा परिवार टूट गया था। प्रतिभा का भविष्य देखकर मन और भी व्यथित होता था। उन्होंने कहा कि अगर हमारी अपनी बेटी होती, तो भी हम उसका पुनर्विवाह ही कराते। बहू नहीं, वह हमारी बेटी है। उन्होंने बताया कि कन्यादान उनके माता-पिता ने किया और बाकी सभी भूमिकाएं उन्होंने खुद निभाईं। नकुल राठौर ने भी कहा कि वे चाहते थे कि प्रतिभा सम्मान के साथ आगे बढ़े, जीवन में खुशियां पाए और समाज का समर्थन उसे मिले। यह पूरा निर्णय बुजुर्गों की सहमति और मार्गदर्शन में लिया गया, जिससे हर किसी ने दिल से इस कदम को स्वीकार किया।
समाज के लिए संदेश, विधवा नहीं, बेटी का भविष्य समझें
यह आयोजन सिर्फ एक विवाह नहीं था, बल्कि सोच में बदलाव का आंदोलन था। राठौर परिवार ने साबित किया कि इंसानियत, संवेदनशीलता और कर्तव्य रिश्तों की असली नींव हैं। जिस समाज में विधवा महिलाओं को अक्सर उपेक्षित कर दिया जाता है, वहां उनका पुनर्विवाह करा कर परिवार ने दिखाया कि बेटी, बहन या बहू हर महिला को नई जिंदगी का अधिकार है। इस पहल ने पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बनकर सकारात्मक संदेश दिया है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन हों, सही सोच और मानवीय संवेदना हर अंधकार को मात दे सकती है।