भीलवाड़ा का रोपां गांव दशहरे के अवसर पर अपनी अनोखी परंपरा के लिए चर्चित है। देशभर में विजयदशमी पर रावण दहन की परंपरा है लेकिन रोपां गांव में पिछले 100 वर्षों से रावण का दहन नहीं किया जाता, बल्कि उसकी स्थाई प्रतिमा का वध किया जाता है। ग्रामीण रावण को विद्वान और ज्ञानी मानते हैं और उसे देवता के रूप में पूजते हैं।
दशहरे के दिन यहां न तो लकड़ी और कागज से बने पुतले जलाए जाते हैं और न ही आतिशबाजी होती है। गांव के चौक में बनी सीमेंट की स्थाई रावण प्रतिमा को दशहरे से पहले विशेष रूप से रंग-रोगन कर सजाया जाता है। पर्व के दिन राम बने बालक तीर-कमान से प्रतिमा का वध करते हैं। यह दृश्य देखने के लिए न केवल गांव के लोग बल्कि आसपास के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं।
गांव के पुजारी सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि हमारे पूर्वजों ने सौ साल पहले रावण की यह प्रतिमा स्थापित की थी। संकट या मनोकामना पूरी करने के लिए लोग रावण की प्रतिमा पर चढ़ावा चढ़ाते हैं। कई बार कठिन समय में चमत्कार भी हुए हैं। एक बार अकाल पड़ा था, तब ग्रामीणों ने रावण के समक्ष रात्रि जागरण कर प्रार्थना की, अगले दिन भारी बारिश हुई और अकाल टल गया, तभी से रावण की महिमा और बढ़ गई।
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ग्रामीणों का मानना है कि रावण वेद-वेदांत का ज्ञाता, महान विद्वान और पराक्रमी था। उसका वध भगवान राम ने धर्म की स्थापना के लिए किया था, लेकिन जलाना मानव का कार्य नहीं। पुजारी शर्मा ने कहा कि लक्ष्मण ने अंतिम समय में रावण से ज्ञान प्राप्त किया था। ऐसे विद्वान का दहन कर हम अपने धर्मग्रंथों का अपमान नहीं कर सकते। इसलिए यहां प्रतिमा का वध होता है, दहन नहीं।
रोपां गांव में दशहरा केवल रावण वध तक सीमित नहीं है। इससे एक दिन पहले लंका दहन का आयोजन होता है। भगवान चारभुजा नाथ मंदिर से ठाकुरजी की शोभायात्रा निकलती है। इस दौरान राम-लक्ष्मण की बोली लगाई जाती है। हनुमान बने बाल कलाकार रावण चौक पहुंचते हैं और लंका दहन किया जाता है। इसके अगले दिन रावण वध की रस्म होती है।
ग्रामीणों का कहना है कि रावण वध की इस विशेष परंपरा के कारण रोपां गांव को रावण गांव भी कहा जाता है। दशहरे पर मेले का आयोजन होता है, जिसमें आसपास के गांवों से भीड़ जुटती है। लोग मानते हैं कि रावण से मांगी गई मनोकामना पूरी होती है, इसलिए हर शुभ कार्य की शुरुआत रावण को प्रणाम करके की जाती है।
इस परंपरा का संदेश साफ है कि रोपां में रावण को केवल नकारात्मक रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि उसके ज्ञान, पराक्रम और विद्वत्ता का सम्मान किया जाता है। रोपां गांव की यह अनूठी परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित है और दशहरे पर लोगों की आस्था और उत्साह को नया स्वरूप देती है। जब देशभर में रावण दहन होगा, रोपां गांव में रावण प्रतिमा का वध कर यह परंपरा निभाई जाएगी।