सर्दी का मौसम है और गजक की बात न हो, ऐसा नहीं हो सकता। गजक के मामले में दौसा का नाम सबसे आगे है। यहां पर डेढ़ सौ प्रकार की गजक बनाई जाती है, जिसकी पूरे देश और विदेश में मांग है। सर्दी के मौसम में तिल और तिल से बनी गजक खाने का खास चलन है। माना जाता है कि सर्दियों के मौसम में तिल या तिल से बनी गजक खाने से शरीर की इम्यूनिटी बनी रहती है।
दौसा गजक के मामले में अग्रणी है। यहां के हर दुकानदार लगभग 300-400 किलो गजक रोज बनाकर बेच देता है। यहां गजक बनाने का प्रोसेस हालांकि अब मशीनों से होने लगा है, लेकिन दौसा में आज भी गजक हाथों से बनाई जाती है, जिसे करारी गजक के नाम से बेचा जाता है। इसका स्वाद ऐसा होता है कि मुंह में रखते ही यह अपने आप पिघल जाता है।
गजक निर्माता रामावतार साहू ने बताया कि उनकी गजक केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी विशेष डिमांड के साथ मंगाई जाती है। वे शुद्धता का ध्यान रखते हुए गजक बनाते हैं, जिसमें कई प्रकार की वैरायटी होती है, जैसे तिल की गजक, चीनी की गजक, देसी घी की गजक, तिलपट्टी, मूंगफली की चिक्की, और मूंगफली की पट्टी। यह सभी डेढ़ सौ प्रकार के आइटम तिल और मूंगफली से हाथों से बनाए जाते हैं। तिल के मामले में यह कहा जाता है कि जब तक इसे हाथों से कुटाई नहीं किया जाता, तब तक इसका स्वाद ठीक से नहीं आता।
रामावतार साहू ने बताया कि वह पिछले 22 साल से गजक बना रहे हैं। सर्दियों के मौसम में लगभग 60 से 70 लाख रुपए की गजक उनके यहां से बनाकर सप्लाई की जाती है, जिसकी एक से बढ़कर एक क्वालिटी उपलब्ध है। गजक की कीमत डेढ़ सौ रुपए से लेकर 450 रुपए प्रति किलो तक होती है, और यह सर्दियों में बड़ी तादाद में बेची जाती है। अब ये लोग अपनी गजक को ऑनलाइन बेचने पर भी विचार कर रहे हैं।