स्कूल में पानी भर गया लेकिन आंखों में शर्म का पानी कब आएगा? यह सवाल अब बालोतरा जिले के अराबा गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय का स्थायी प्रतीक बन चुका है। हर साल मानसून आते ही यह स्कूल जलमग्न हो जाता है और हर साल वही पुराने वादे दोहराए जाते हैं- समाधान निकलेगा, स्थायी व्यवस्था बनेगी लेकिन परिणाम हर बार शून्य।
यह स्कूल केवल बारिश के पानी से नहीं बल्कि जोधपुर की औद्योगिक इकाइयों से छोड़े जा रहे रासायनिक अपशिष्ट जल से भी प्रभावित होता है। गांव वाले बताते हैं कि यह पानी चवा और डोली गांव होते हुए अराबा और कल्याणपुर तक फैलता है, जिससे पूरा इलाका एक कृत्रिम झील में तब्दील हो जाता है। इस झील का पहला शिकार बनता है- अराबा स्कूल।
हर साल मंत्री, विधायक, अधिकारी मौके पर पहुंचते हैं। आश्वासन दिए जाते हैं कि अब स्थायी समाधान किया जाएगा लेकिन हर साल की तरह इस बार भी ये वादे सिर्फ शब्दों में बह गए और स्कूल एक बार फिर पानी में डूब गया। बारिश की वजह से स्कूल का मुख्य भवन पूरी तरह से जलमग्न हो गया। अगर यह बारिश दिन में होती, जब बच्चे स्कूल में मौजूद रहते, तो एक बड़ा हादसा हो सकता था।
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फिलहाल विद्यालय को ग्राम पंचायत के दो भवनों में स्थानांतरित किया गया है, जहां 300 से ज्यादा बच्चे बेहद बदतर हालात में पढ़ने को मजबूर हैं। चारों तरफ कीचड़, बदबू और असुविधाओं के बीच शिक्षा का यह मजाक गांव के बच्चों के भविष्य पर भारी पड़ रहा है। यह स्कूल एक हाईवे के पास प्राकृतिक जलभराव क्षेत्र में स्थित है। बावजूद इसके यहां स्कूल का निर्माण किया गया, जो प्रशासन की लापरवाही का जीवंत उदाहरण है। स्कूल में 18 कमरे, एक बड़ा हॉल और अन्य सुविधाएं हैं लेकिन हर मानसून में यह सब व्यर्थ हो जाता है।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने औद्योगिक इकाइयों को अपशिष्ट जल का उचित निपटारा करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। प्रशासन इसे हर साल की सामान्य ग्रामीण समस्या मानकर अनदेखा करता है, जबकि यह बच्चों के जीवन और शिक्षा से जुड़ा गंभीर मामला है।
ग्रामीणों का कहना है कि केवल कागजों में समाधान तलाशने से कुछ नहीं होगा। जब तक प्रशासन, औद्योगिक प्रबंधन और सरकार मिलकर एक स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते, तब तक हर साल आराबा स्कूल डूबता रहेगा और साथ में डूबती रहेगी शिक्षा व्यवस्था, बच्चों की उम्मीदें और समाज की संवेदनशीलता।