टाइम मशीन : ब्याज पर तकरार, व्हाइट हाउस और फेड की पुरानी जंग का नया... सनसनीखेज संस्करण
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विस्तार
डोनाल्ड ट्रंप फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जीरोम पॉवेल पर आग बरसा रहे हैं। पॉवेल ब्याज दरें नहीं घटा रहे, क्योंकि ट्रंप के टैरिफ से महंगाई आएगी। महंगाई रोकना सेंट्रल बैंक की जिम्मेदारी है। नाराज ट्रंप ने पॉवेल को जड़बुद्धि, मूर्ख और पता नहीं क्या-क्या कह दिया है। तैयारी जीरोम पॉवेल को फेड से खदेड़ने की है। पॉवेल का कार्यकाल मई, 2026 में खत्म हो रहा है। ट्रंप कहते हैं कि फेड बोर्ड को पॉवेल से कंट्रोल छीन लेना चाहिए। वह नए बोर्ड मेंबर्स शामिल करके फेड को अपनी नीतियों के हिसाब से चलाना चाहते हैं। पॉवेल कहते हैं फेड की आजादी नहीं जाने देंगे। क्या ट्रंप पॉवेल को निकाल देंगे! गजब हो जाएगा तब तो! व्हाइट हाउस और फेड की यह जंग पुरानी है, पर यह नया संस्करण पहले से ज्यादा सनसनीखेज है, क्योंकि व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप विराज रहे हैं। बहरहाल, आप टाइम मशीन में विराजिए, हम चलते हैं पीछे, जब कहते हैं कि एक राष्ट्रपति ने एक फेड चेयरमैन के साथ हाथापाई की थी।
टाइम मशीन के फ्लाइट पाथ पर डेस्टिनेशन दिख रहा है-टेक्सास, 1965। सफर जरा लंबा है। हमारा एआई रोबो पायलट गजब का किस्सागो है। टेक्सास पहुंचने तक टाइम मशीन और आपकी उत्सुकता नई ऊंचाई पर होगी। आप अपनी स्क्रीन पर निगाह जमाइए और हेडफोन में किस्सा सुनिए।
यह 1951 है। हैरी ट्रूमैन और फेड चेयर थॉमस मैककेबे के बीच मोर्चा खुला हुआ है। कोरियाई युद्ध चल रहा है। ट्रूमैन चाहते हैं कि ब्याज दरें कम रहें, सरकार को सस्ता कर्ज मिल सके, क्योंकि जंग का खर्च बजट को मारे डाल रहा है। मैककेबे तैयार नहीं हैं। 31 जनवरी, 1951 की शाम को यह झगड़ा नया मोड़ ले लेता है। व्हाइट हाउस मीटिंग के बाद, ट्रूमैन प्रशासन ने एक झूठी प्रेस रिलीज जारी की है, जिसमें कहा गया है कि फेड ब्याज दरें स्थिर रखने पर राजी है, लेकिन पूर्व फेड चेयर मैरिनर एक्लेस ने अपने नोट्स प्रेस को लीक कर दिए। न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट में हेडलाइंस थी कि प्रेसिडेंट ने जनता को धोखा दिया! झूठ बोला। इस झंझट के बाद मैककेबे ने इस्तीफा दे दिया। अलबत्ता ब्याज दर पर व्हाइट हाउस की नहीं चली।
हमें पता है कि इस किस्से को सुनकर आप 2025 को याद कर रहे हैं। ट्रंप के बयानों के फुटेज आपके जेहन में घूम रहे हैं। और यह लीजिए, हम 1965 में पहुंच गए हैं। जगह है राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन का टेक्सास रैंच। महीना है दिसंबर का। अंदर एक बैठक चल रही है। खिड़कियों से झांककर देखना होगा। राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन, छह फुट चार इंच के हैं। सामने बैठे हैं फेड चेयरमैन विलियम मैक्चेस्नी मार्टिन जूनियर। देखिए प्रेसिडेंट जॉनसन कितने गुस्से में हैं-मार्टिन ने महंगाई के कारण ब्याज दर बढ़ा दी है, जबकि जॉनसन को अपने ‘ग्रेट सोसाइटी’ प्रोग्राम्स और वियतनाम युद्ध के लिए सस्ता पैसा चाहिए। जॉनसन चीख रहे हैं-‘बॉयज वियतनाम में मर रहे हैं, तुम्हें कोई फिक्र नहीं है!’ यह क्या? कद्दावर राष्ट्रपति जॉनसन ने मार्टिन को धकेलते हुए दीवार से सटा दिया है। मार्टिन का प्रतिरोध जारी है-‘फेडरल रिजर्व एक्ट ने इंटरेस्ट रेट्स की जिम्मेदारी हमें दी है, और हम इसे नहीं बदलेंगे।’ मगर जॉनसन भारी पड़े हैं। मार्टिन ने हार मान ली। फेड को राष्ट्रपति की बात माननी पड़ी। वर्षों बाद मार्टिन लिखेंगे, मैं शर्मिंदा हूं कि मुझे झुकना पड़ा, मैंने हार मान ली थी। मीडिया में चुहल चल रही है कि नहीं मानते, तो जॉनसन कूट ही देते उस दिन! यह फेड की स्वतंत्रता पर पहला बड़ा हमला था। केवल बयानों से नहीं, हाथ-पैर से भी!
टाइम मशीन का फ्लाइट पाथ अब 1971 दिखा रहा है। हम व्हाइट हाउस के बाहर उतर रहे हैं। यह निक्सन का दौर है, जो व्हाइट हाउस की वार्ताओं को टेप करते हैं। आगे यह बड़ा मुद्दा बनेगा। ओवल ऑफिस में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन फेड चेयर ऑर्थर बर्न्स से बात कर रहे हैं-और सब टेप हो रहा है। निक्सन 1972 के चुनाव से पहले ब्याज दरों में कमी चाहते हैं, लूज मॉनेटरी पॉलिसी चाहते हैं। वह धमका रहे हैं, अगर तुमने दरें कम नहीं कीं, तो यह आखिरी रिपब्लिकन एडमिनिस्ट्रेशन होगा।’ वह कभी धमकाते, तो कभी पुचकारते हैं। सब टेप्स पर रिकॉर्ड हो रहा है।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए अगले नौ साल ऐतिहासिक होने वाले हैं, मगर हमें तो पहुंचना है 1979 में, जहां एक और फेड गवर्नर हमारा इंतजार कर रहा है। तो जब तक न्यूयॉर्क फेड रिजर्व पहुंचें, हमारा किस्सागो आपका सफर रोचक बनाएगा।
1960 के अंत से अमेरिकी अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी। जॉनसन के फैसलों से सामाजिक सुधारों और वियतनाम युद्ध से सरकारी खर्च बढ़ा। महंगाई बढ़ी। यह गोल्ड स्टैंडर्ड का दौर था। दुनिया के देश डॉलर लौटाकर सोना मांगने लगे। निक्सन ने 1971 की गर्मियों में गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म कर दिया, यानी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बनी मौद्रिक व्यवस्था खत्म! दुनिया हिल गई इस फैसले से। फिर 1973 का अरब-इस्राइल युद्ध आया। निक्सन ने इस्राइल की मदद की, अरब देशों ने तेल बंद कर दिया। पांच महीने तेल न मिलने से महंगाई में पेट्रोल पड़ गया। निक्सन ने वेतन काटे, प्राइस कंट्रोल लगाए, तो आ गई स्टैगफ्लेशन। महंगाई 4.6 फीसदी, बेरोजगारी छह फीसदी और विकास दर ध्वस्त। 1974 में गेराल्ड फोर्ड व्हाइट हाउस पहुंचे, तो महंगाई थी 10.85 फीसदी पर। फोर्ड ने लोगों से कम खर्च करने को कहा। पर कोई असर नहीं पड़ा, चुनाव हारकर फोर्ड रुखसत हो गए। 1977 में जिमी कार्टर आए, तो ईरान क्रांति से बढ़ी तेल की कीमतों ने महंगाई को फिर भड़का दिया। कार्टर ने खर्च कम किया, मगर महंगाई 10 फीसदी के पार। और लीजिए, पायटल का किस्सा इतिहास के जिस मोड़ पर रुका है, हमारी टाइम मशीन भी वहीं आ गई है। हम 1979 में हैं। सामने है फेड रिजर्व। जिमी कार्टर ने पॉल वोल्कर को फेड चेयर बनाया है। छह फुट सात इंच लंबे कद्दावर वोल्कर, हाथ में बिना जला सिगार लिए फेड बोर्ड को आदेश दे रहे हैं-ब्याज दर बढ़ाओ, मनी सप्लाई रोक दो। वोल्कर बड़े सख्त हैं। कर्ज की महंगाई उनका विरोध बढ़ा रही है। यह दिसंबर 1980 है। फेड ने प्राइम लेंडिंग रेट 21.5 फीसदी पर पहुंचा दिया है। इतना महंगा कर्ज!! यकीनन, आज न्यूयॉर्क का माहौल गर्म है। किसानों ने ट्रैक्टरों से फेड बिल्डिंग घेर ली है। अखबारों में सुर््खियां देखिए-हाउसिंग मार्केट बैठ गया है। वोल्कर को फेड की कमान देकर जिमी कार्टर पछता रहे हैं। कार्टर चुनाव हार गए हैं, सत्ता रोनाल्ड रीगन को मिली है।
टाइम मशीन अब 1982 में है। महंगाई का आंकड़ा वोल्कर की जीत का एलान है। ब्याज दरें कम होने लगी हैं। रीगन के सुधारों को सस्ते कर्ज की जमीन मिलने वाली है। आपकी स्क्रीन पर पॉल वोल्कर के संस्मरण कीपिंग एट इट का एक पन्ना खुल रहा है। उसे पढ़िए-वोल्कर दफ्तर से घर जा रहे हैं। उनके ड्राइवर मि. पेना की बगल की सीट पर एक किताब रखी थी-हाउ टु लिव विद इन्फ्लेशन। वोल्कर निराश होते हैं। उनके ड्राइवर तक को महंगाई घटाने की कोशिशों पर भरोसा नहीं है। वोल्कर ने ड्राइवर से किताब की कैफियत पूछी। उसने कहा कि यह किताब 11 डॉलर की थी, अब दो डॉलर में मिली। पेना ने कहा, ‘यह तो सस्ती हो गई! महंगाई कम हो गई, गवर्नर सर।
यात्रीगण कृपया ध्यान दें, टाइम मशीन वापस वाशिंगटन आ गई है। महंगाई बढ़ रही है। पॉवेल ब्याज दरें न घटाने पर अड़े हैं। नई सुर्खियों का इंतजार कीजिए। फिर मिलते हैं अगले सफर पर...