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कौन था रहमान डकैत जिसने खुद की ही मां को उतारा था मौत के घाट ? 'धुरंधर' में अक्षय खन्ना ने निभाया इसका किरदार
एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला
Published by: हिमांशु सोनी
Updated Fri, 12 Dec 2025 03:36 PM IST
सार
Who Is Rehman Dakait: फिल्म 'धुरंधर' में अक्षय खन्ना द्वारा निभाए गए किरदार को काफी लोकप्रियता मिल रही है। जिस बेहतरीन तरीके से उन्होंने इस रोल को किया है, उसकी हर ओर तारीफ हो रही है। लेकिन असल में कौन हैं रहमान डकैत, चलिए जानते हैं।
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रहमान डकैत
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
फिल्म 'धुरंधर' में रणवीर सिंह भले ही मुख्य किरदार में नजर आए हों लेकिन दर्शकों की पूरी नजर जिस कलाकार पर टिक गई है, वो हैं अक्षय खन्ना। आदित्य धर की इस स्पाई-थ्रिलर फिल्म में अक्षय ने रहमान बलूच उर्फ रहमान डकैत को जिस तीखे तेवर, खौफ और रहस्यमयी अंदाज में पर्दे पर उतारा है, उसने फिल्म में एक अलग ही परत जोड़ दी है। बहरीनी गाने Fa9la पर किए गए धांसू डांस ने पहले से ही सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है।
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बड़े पर्दे पर उकेरे गए इस किरदार के पीछे एक ऐसा वास्तविक चेहरा है, जिसकी दहशत ने कभी कराची के ल्यारी इलाक़े को हिला कर रख दिया था। सवाल यही है कि क्या फिल्म में दिखाया गया रहमान उतना ही क्रूर था जितनी कहानियां सामने आ रही हैं? आखिर कौन था रहमान डकैत, चलिए जानते हैं।
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'धुरंधर' में अक्षय खन्ना
- फोटो : सोशल मीडिया
खौफ में था ल्यारी इलाका
पाकिस्तान के कराची का ल्यारी इलाका- तंग गलियां, भीड़भाड़, बेरोजगारी, अपराध और गैंगवार की लंबी दास्तानों वाला एक शहर। 1700 के दशक से अस्तित्व में रहे इस क्षेत्र में गरीबी और उपेक्षा ने हमेशा आपराधिक गिरोहों को जगह दी। यही वह दुनिया थी जहां 1979 में मोहम्मद दादल के घर एक बच्चे का जन्म हुआ- सरदार अब्दुल रहमान बलूच, जिसे पूरी दुनिया बाद में रहमान डकैत के नाम से जानने लगी।
यह खबर भी पढ़ें: ‘रणवीर शानदार और अक्षय खन्ना करिश्माई’, अल्लू अर्जुन ने किया ‘धुरंधर’ का रिव्यू; आदित्य धर को लेकर कही यह बात
कहते हैं रहमान ने किशोरावस्था में ही अपराध की राह पकड़ ली थी। 13 साल की उम्र में पहली बार हत्या, 15 साल की उम्र में परिवार से जुड़ी एक भयावह घटना—इन प्रारंभिक कथाओं ने उसे एक ऐसे रास्ते पर धकेल दिया, जहां हिंसा उसकी पहचान बन गई।
पाकिस्तान के कराची का ल्यारी इलाका- तंग गलियां, भीड़भाड़, बेरोजगारी, अपराध और गैंगवार की लंबी दास्तानों वाला एक शहर। 1700 के दशक से अस्तित्व में रहे इस क्षेत्र में गरीबी और उपेक्षा ने हमेशा आपराधिक गिरोहों को जगह दी। यही वह दुनिया थी जहां 1979 में मोहम्मद दादल के घर एक बच्चे का जन्म हुआ- सरदार अब्दुल रहमान बलूच, जिसे पूरी दुनिया बाद में रहमान डकैत के नाम से जानने लगी।
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कहते हैं रहमान ने किशोरावस्था में ही अपराध की राह पकड़ ली थी। 13 साल की उम्र में पहली बार हत्या, 15 साल की उम्र में परिवार से जुड़ी एक भयावह घटना—इन प्रारंभिक कथाओं ने उसे एक ऐसे रास्ते पर धकेल दिया, जहां हिंसा उसकी पहचान बन गई।
अक्षय खन्ना
- फोटो : यूट्यूब ग्रैब
गैंगवार का था सम्राट
90 के दशक के आखिर में रहमान हाजी लालू के गैंग का हिस्सा बना और 2001 में लालू की गिरफ्तारी के बाद पूरा तंत्र संभाल लिया। उसका असर इतना गहरा था कि ल्यारी की सड़कों पर उसकी अनुमति के बिना कोई फैसला नहीं होता था। कहा जाता है कि रहमान का नेटवर्क जबरन वसूली, हथियारों की तस्करी, अपहरण और ड्रग्स की अवैध सप्लाई जैसे संगठित अपराधों में गहराई से जुड़ा था। उसके चचेरे भाई उजैर बलूच और डरावनी छवि वाले साथी बाबा लाडला के साथ रहमान ने विरोधी गिरोहों को बेरहमी से खत्म किया। ल्यारी के आम लोग इस गैंगवार के दौर में लगातार डर के साए में जीते थे। कई स्थानीय लोगों ने कहा है कि रहमान के शासन में मौत किसी रोजमर्रा की घटना की तरह हो चुकी थी।
मां को ही उतारा था मौत के घाट
यह भी कहा जाता है कि रहमान डकैत की बेरहमी ऐसी थी कि दुश्मनों को मारने के बाद उनके कटे हुए सिरों से वो और उसके गैंग के लोग फुटबॉल खेलते थे और कई स्थानीय रिपोर्ट्स में यह दावा भी मिलता है कि शक के आधार पर रहमान ने सिर्फ 15 साल की उम्र में अपनी ही मां की हत्या कर दी थी। कहा जाता है कि उसे शक था कि उसकी मां का संबंध उस गैंग से है जिसने उसके पिता को मारा था। हालांकि इन कहानियों के कई वर्जन हैं, लेकिन इन सबने मिलकर रहमान की ऐसी डरावनी छवि बनाई जिसने उसे कराची के सबसे खौफनाक अपराधियों की पंक्ति में खड़ा कर दिया।
90 के दशक के आखिर में रहमान हाजी लालू के गैंग का हिस्सा बना और 2001 में लालू की गिरफ्तारी के बाद पूरा तंत्र संभाल लिया। उसका असर इतना गहरा था कि ल्यारी की सड़कों पर उसकी अनुमति के बिना कोई फैसला नहीं होता था। कहा जाता है कि रहमान का नेटवर्क जबरन वसूली, हथियारों की तस्करी, अपहरण और ड्रग्स की अवैध सप्लाई जैसे संगठित अपराधों में गहराई से जुड़ा था। उसके चचेरे भाई उजैर बलूच और डरावनी छवि वाले साथी बाबा लाडला के साथ रहमान ने विरोधी गिरोहों को बेरहमी से खत्म किया। ल्यारी के आम लोग इस गैंगवार के दौर में लगातार डर के साए में जीते थे। कई स्थानीय लोगों ने कहा है कि रहमान के शासन में मौत किसी रोजमर्रा की घटना की तरह हो चुकी थी।
मां को ही उतारा था मौत के घाट
यह भी कहा जाता है कि रहमान डकैत की बेरहमी ऐसी थी कि दुश्मनों को मारने के बाद उनके कटे हुए सिरों से वो और उसके गैंग के लोग फुटबॉल खेलते थे और कई स्थानीय रिपोर्ट्स में यह दावा भी मिलता है कि शक के आधार पर रहमान ने सिर्फ 15 साल की उम्र में अपनी ही मां की हत्या कर दी थी। कहा जाता है कि उसे शक था कि उसकी मां का संबंध उस गैंग से है जिसने उसके पिता को मारा था। हालांकि इन कहानियों के कई वर्जन हैं, लेकिन इन सबने मिलकर रहमान की ऐसी डरावनी छवि बनाई जिसने उसे कराची के सबसे खौफनाक अपराधियों की पंक्ति में खड़ा कर दिया।
अक्षय खन्ना
- फोटो : X
राजनीति में जब रखा कदम
सिर्फ गनपावर ही नहीं, रहमान ने राजनीति में भी अपने पैर जमाने शुरू कर दिए। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के स्थानीय नेताओं से उसका बढ़ता संपर्क उसे एक "लोकल पावर सेंटर" के रूप में स्थापित कर रहा था। उसने अपना नाम बदलकर सरदार अब्दुल रहमान बलूच रखा और 2008 में पीपल्स अमन कमेटी बनाई, जिसका दावा था कि उसका उद्देश्य शांति स्थापित करना है। लेकिन राजनीतिक उठापटक और गिरोहों की बदलती समीकरणों के बीच रहमान खुद भी विवादों का केंद्र बन गया।
खौफनाक रहमान डकैट का अंत
अगस्त 2009 में कराची पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में रहमान की मौत हो गई। पर उसकी मौत जितनी सरल दिखाई दी, उतने ही बड़े सवाल पीछे छोड़ गई। स्थानीय नेताओं और विश्लेषकों का मानना है कि रहमान की हत्या गैंगवार, राजनीतिक दबाव और खुफिया सौदों के बीच पनपे किसी बड़े खेल का हिस्सा थी। रहमान तो 29 साल की उम्र में खत्म हो गया, लेकिन उसकी दहशत, उसके किस्से और उसकी निर्दयी छवि आज भी ल्यारी की दीवारों पर एक दाग की तरह मौजूद है। और अब धुरंधर के माध्यम से यह नाम भारत की जनता के बीच भी चर्चा का हिस्सा बन गया है।
सिर्फ गनपावर ही नहीं, रहमान ने राजनीति में भी अपने पैर जमाने शुरू कर दिए। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के स्थानीय नेताओं से उसका बढ़ता संपर्क उसे एक "लोकल पावर सेंटर" के रूप में स्थापित कर रहा था। उसने अपना नाम बदलकर सरदार अब्दुल रहमान बलूच रखा और 2008 में पीपल्स अमन कमेटी बनाई, जिसका दावा था कि उसका उद्देश्य शांति स्थापित करना है। लेकिन राजनीतिक उठापटक और गिरोहों की बदलती समीकरणों के बीच रहमान खुद भी विवादों का केंद्र बन गया।
खौफनाक रहमान डकैट का अंत
अगस्त 2009 में कराची पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में रहमान की मौत हो गई। पर उसकी मौत जितनी सरल दिखाई दी, उतने ही बड़े सवाल पीछे छोड़ गई। स्थानीय नेताओं और विश्लेषकों का मानना है कि रहमान की हत्या गैंगवार, राजनीतिक दबाव और खुफिया सौदों के बीच पनपे किसी बड़े खेल का हिस्सा थी। रहमान तो 29 साल की उम्र में खत्म हो गया, लेकिन उसकी दहशत, उसके किस्से और उसकी निर्दयी छवि आज भी ल्यारी की दीवारों पर एक दाग की तरह मौजूद है। और अब धुरंधर के माध्यम से यह नाम भारत की जनता के बीच भी चर्चा का हिस्सा बन गया है।