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गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल: यशवंत व्यास बोले- 'वायरल की तरह नहीं बल्कि मोहब्बत लाइलाज बीमारी की तरह होनी चाहिए'

अमर उजाला नेटवर्क, गोरखपुर Published by: रोहित सिंह Updated Mon, 22 Dec 2025 01:43 PM IST
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सार

लेखक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास ने हिंदी साहित्य की परंपरा, भूगोल और सामाजिक यथार्थ के आपसी संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। कहा कि, साहित्य में कोई भी विधा या विषय निरर्थक नहीं होता। अक्सर जिसे हम हल्का या हाशिये का साहित्य मान लेते हैं, वही कई बार समाज की हकीकत को सामने लाता है।

Senior journalist and writer Yashwant Vyas also participated in the Gorakhpur Literary Festival.
वरिष्ठ पत्रकार व लेखर यशवंत व्यास व अन्य लोग - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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विस्तार
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गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल में रविवार को दूसरा सत्र साहित्य के नाम रहा। 'तीन लेखक, तीन कहानियां, तीन अंदाज' विषयक इस सत्र में लेखिका इरा टॉक, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास व सुनील द्विवेदी ने विचार साझा किए।

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लेखक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास ने हिंदी साहित्य की परंपरा, भूगोल और सामाजिक यथार्थ के आपसी संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। कहा कि, साहित्य में कोई भी विधा या विषय निरर्थक नहीं होता। अक्सर जिसे हम हल्का या हाशिये का साहित्य मान लेते हैं, वही कई बार समाज की हकीकत को सामने लाता है।
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क्राइम थ्रिलर और पल्प फिक्शन के दौर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, उस समय मनोरंजन के सीमित साधनों के बीच कहानियां लोगों के जीवन का अहम हिस्सा थीं। पल्प साहित्य में जो घटनाएं और चरित्र दिखाई देते हैं, वे कहीं न कहीं हमारे आसपास के जीवन से ही उठाए गए होते हैं। लोकप्रिय लेखन और गंभीर साहित्य के बीच खींची गई रेखा कृत्रिम है। दोनों का उद्देश्य मनुष्य और समाज को समझना है।

लेखिका इरा टॉक ने गोरखपुर से अपने रिश्ते की चर्चा की। उन्होंने अपनी कहानी 'बेगम साहिबा' का उल्लेख करते हुए कहा कि वायरल की तरह नहीं बल्कि मोहब्बत लाइलाज बीमारी की तरह होनी चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार सुनील द्विवेदी ने कहा कि पत्रकारिता से मिले अनुभव उनकी रचनाओं की पृष्ठभूमि में हमेशा मौजूद रहते हैं। साहित्य का काम सिर्फ मनोरंजन करना नहीं बल्कि पाठक को भीतर तक छूना और उसे अपने समय के सवालों से रूबरू कराना भी है।

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