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Gorakhpur News: लेखक भले बूढ़ा हो जाए...किरदार कभी बूढ़ा नहीं होता
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बैंक रोड के एक उत्सव लॉन में गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के दूसरे दिन तीन लेखक, तीन कहानियां और ती
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- गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के ''''''''गुफ्तगू'''''''' सत्र में बोले प्रख्यात उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक
अमर उजाला ब्यूरो
गोरखपुर। उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि लेखक भले बूढ़ा हो जाए, किरदार कभी बूढ़ा नहीं होता। कहानी की निरंतरता अगर बनी रहती है तो वह पात्रों को रोके रखती है। पात्र कथाकाल के हिसाब से जवान ही बने रहते हैं।
वह रविवार को गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के ''''''''गुफ्तगू'''''''' सत्र में प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा से संवाद कर रहे थे। ''''''''पल्प फिक्शन बनाम साहित्य : क्या यह विभाजन आवश्यक है?'''''''' विषय पर चर्चा में उन्होंने कहा कि कहानी पहले पैराग्राफ से शुरू हो जानी चाहिए और पाठक को बांधकर रखना कहानी का मूल होना चाहिए। छोटे चरित्र भी महत्वपूर्ण और प्रभावी होंगे तभी वह पाठक को प्रभावित करेंगे।
उन्होंने कहा कि, वह साहित्यकार नहीं, कारोबारी लेखक हैं। कहानी लिखते हैं, कंटेंट में तर्क डालने या वैज्ञानिक अप्रोच के लिए वह विशेषज्ञों से मशविरा करते हैं। लेखक की सोच उसके चरित्रों में भी झलकती ही है। पाठकों की रुचि को बनाए रखने के लिए उपन्यासों में अलग-अलग किरदारों को गढ़ा। उन्होंने कहा कि, आज के समय में लेखकों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनकी शैली और कथानक को कॉपी किया जा रहा है। उन्हें भी इसके खिलाफ दो बार अदालत जाना पड़ा है, मुकदमे लड़ने पड़े हैं। उन्होंने कहा कि कामयाबी सीढ़ी चढ़ने का नाम है। कामयाबी के लिए कोई लिफ्ट नहीं होती जो पहली से सीधे दसवीं मंजिल पर पहुंचा दे।
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साहित्य में कोई भी विषय निरर्थक नहीं होता : यशवंत व्यास
- गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के साहित्य सत्र में ''''''''तीन लेखक, तीन कहानियां, तीन अंदाज'''''''' विषय पर हुई चर्चा
अमर उजाला ब्यूराे
गोरखपुर। गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल में रविवार को दूसरा सत्र साहित्य के नाम रहा। ''''''''तीन लेखक, तीन कहानियां, तीन अंदाज'''''''' विषयक इस सत्र में लेखिका इरा टॉक, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास व सुनील द्विवेदी ने विचार साझा किए।
लेखक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास ने हिंदी साहित्य की परंपरा, भूगोल और सामाजिक यथार्थ के आपसी संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। कहा कि, साहित्य में कोई भी विधा या विषय निरर्थक नहीं होता। अक्सर जिसे हम हल्का या हाशिये का साहित्य मान लेते हैं, वही कई बार समाज की हकीकत को सामने लाता है। क्राइम थ्रिलर और पल्प फिक्शन के दौर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, उस समय मनोरंजन के सीमित साधनों के बीच कहानियां लोगों के जीवन का अहम हिस्सा थीं। पल्प साहित्य में जो घटनाएं और चरित्र दिखाई देते हैं, वे कहीं न कहीं हमारे आसपास के जीवन से ही उठाए गए होते हैं। लोकप्रिय लेखन और गंभीर साहित्य के बीच खींची गई रेखा कृत्रिम है। दोनों का उद्देश्य मनुष्य और समाज को समझना है।
लेखिका इरा टॉक ने गोरखपुर से अपने रिश्ते की चर्चा की। उन्होंने अपनी कहानी ''''''''बेगम साहिबा'''''''' का उल्लेख करते हुए कहा कि वायरल की तरह नहीं बल्कि मोहब्बत लाइलाज बीमारी की तरह होनी चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार सुनील द्विवेदी ने कहा कि पत्रकारिता से मिले अनुभव उनकी रचनाओं की पृष्ठभूमि में हमेशा मौजूद रहते हैं। साहित्य का काम सिर्फ मनोरंजन करना नहीं बल्कि पाठक को भीतर तक छूना और उसे अपने समय के सवालों से रूबरू कराना भी है।
अमर उजाला ब्यूरो
गोरखपुर। उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि लेखक भले बूढ़ा हो जाए, किरदार कभी बूढ़ा नहीं होता। कहानी की निरंतरता अगर बनी रहती है तो वह पात्रों को रोके रखती है। पात्र कथाकाल के हिसाब से जवान ही बने रहते हैं।
वह रविवार को गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के ''''''''गुफ्तगू'''''''' सत्र में प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा से संवाद कर रहे थे। ''''''''पल्प फिक्शन बनाम साहित्य : क्या यह विभाजन आवश्यक है?'''''''' विषय पर चर्चा में उन्होंने कहा कि कहानी पहले पैराग्राफ से शुरू हो जानी चाहिए और पाठक को बांधकर रखना कहानी का मूल होना चाहिए। छोटे चरित्र भी महत्वपूर्ण और प्रभावी होंगे तभी वह पाठक को प्रभावित करेंगे।
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उन्होंने कहा कि, वह साहित्यकार नहीं, कारोबारी लेखक हैं। कहानी लिखते हैं, कंटेंट में तर्क डालने या वैज्ञानिक अप्रोच के लिए वह विशेषज्ञों से मशविरा करते हैं। लेखक की सोच उसके चरित्रों में भी झलकती ही है। पाठकों की रुचि को बनाए रखने के लिए उपन्यासों में अलग-अलग किरदारों को गढ़ा। उन्होंने कहा कि, आज के समय में लेखकों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनकी शैली और कथानक को कॉपी किया जा रहा है। उन्हें भी इसके खिलाफ दो बार अदालत जाना पड़ा है, मुकदमे लड़ने पड़े हैं। उन्होंने कहा कि कामयाबी सीढ़ी चढ़ने का नाम है। कामयाबी के लिए कोई लिफ्ट नहीं होती जो पहली से सीधे दसवीं मंजिल पर पहुंचा दे।
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साहित्य में कोई भी विषय निरर्थक नहीं होता : यशवंत व्यास
- गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल के साहित्य सत्र में ''''''''तीन लेखक, तीन कहानियां, तीन अंदाज'''''''' विषय पर हुई चर्चा
अमर उजाला ब्यूराे
गोरखपुर। गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल में रविवार को दूसरा सत्र साहित्य के नाम रहा। ''''''''तीन लेखक, तीन कहानियां, तीन अंदाज'''''''' विषयक इस सत्र में लेखिका इरा टॉक, लेखक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास व सुनील द्विवेदी ने विचार साझा किए।
लेखक और वरिष्ठ पत्रकार यशवंत व्यास ने हिंदी साहित्य की परंपरा, भूगोल और सामाजिक यथार्थ के आपसी संबंधों पर विस्तार से चर्चा की। कहा कि, साहित्य में कोई भी विधा या विषय निरर्थक नहीं होता। अक्सर जिसे हम हल्का या हाशिये का साहित्य मान लेते हैं, वही कई बार समाज की हकीकत को सामने लाता है। क्राइम थ्रिलर और पल्प फिक्शन के दौर का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, उस समय मनोरंजन के सीमित साधनों के बीच कहानियां लोगों के जीवन का अहम हिस्सा थीं। पल्प साहित्य में जो घटनाएं और चरित्र दिखाई देते हैं, वे कहीं न कहीं हमारे आसपास के जीवन से ही उठाए गए होते हैं। लोकप्रिय लेखन और गंभीर साहित्य के बीच खींची गई रेखा कृत्रिम है। दोनों का उद्देश्य मनुष्य और समाज को समझना है।
लेखिका इरा टॉक ने गोरखपुर से अपने रिश्ते की चर्चा की। उन्होंने अपनी कहानी ''''''''बेगम साहिबा'''''''' का उल्लेख करते हुए कहा कि वायरल की तरह नहीं बल्कि मोहब्बत लाइलाज बीमारी की तरह होनी चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार सुनील द्विवेदी ने कहा कि पत्रकारिता से मिले अनुभव उनकी रचनाओं की पृष्ठभूमि में हमेशा मौजूद रहते हैं। साहित्य का काम सिर्फ मनोरंजन करना नहीं बल्कि पाठक को भीतर तक छूना और उसे अपने समय के सवालों से रूबरू कराना भी है।
