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आईएएस ने किया भंडाफोड़ : टैक्स चोरों को संरक्षण देने के लिए राज्य कर मुख्यालय में अफसरों का ‘गिरोह’
अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ
Published by: पंकज श्रीवास्तव
Updated Thu, 28 Sep 2023 12:17 AM IST
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सार
राज्य कर विभाग में तैनात आईएएस अधिकारी के ‘लेटर बम’ ने पूरे प्रदेश में खलबली मचा दी है। करीब 2700 करोड़ रुपये की कर चोरी से संबंधित सात मामलों की एसआईटी या अन्य किसी भी एजेंसी सेे जांच की सिफारिश के बाद एक और खुलासा हुआ है।

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विस्तार
राज्य कर विभाग में तैनात आईएएस अधिकारी के ‘लेटर बम’ ने पूरे प्रदेश में खलबली मचा दी है। करीब 2700 करोड़ रुपये की कर चोरी से संबंधित सात मामलों की एसआईटी या अन्य किसी भी एजेंसी सेे जांच की सिफारिश के बाद एक और खुलासा हुआ है। आईएएस अधिकारी द्वारा जांच से जुड़े वायरल पत्र में शासन के सामने पहली बार लिखित में कहा गया है कि मुख्यालय में कुछ अफसरों का गिरोह काबिज हैै। ये अधिकारी प्रदेश में संवेदनशील उत्पादों से जुड़े टैक्स चोरी करने वाले कारोबारियों के संरक्षण का ठेेका लेते हैं। इन कारोबारियों की जांच करने वाले अधिकारी के खिलाफ ही जांच बैैठाने का खेल चलाते हैं और अपने व्यापारी को बचा लेते हैं।
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अपर आयुक्त प्रशासन ओपी वर्मा ने ने राज्य कर मुख्यालय में तैनात अफसरों के खेल का ही भंडाफोड़ कर दिया है। शासन को भेजे गए वायरल पत्र में ‘ब्यूरोक्रेसी रैकेट’ का खुलासा करते हुए कहा गया है कि प्रदेश में टैक्स चोर माफियाओं के संरक्षण का ‘ठेका’ मुख्यालय से उठता है। इनमें से अधिकांश व्यापारी संवेदनशील वस्तुओं सुपाड़ी, रेडीमेड, मेंथा, सीमेंट से जुड़े हैं। इन माफियाओं के ट्रकों और गोदामों पर जो भी अधिकारी कार्यवाही करता है, ये रैकेट उसी अधिकारी के पीछे पड़ जाता है।
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जांच को डीरेल कराने की साजिश के सात उदाहरण देते हुए कहा गया है कि शासन को ही गुमराह किया जा रहा है। करीब 2700 करोड़ रुपये टैक्स चोरी के ये मामले मुरादाबाद, हापुड़, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, कानपुर, कानपुर देहात के हैं। शिकायती पत्रों को दबाव बनाने की सबसे कारगर तकनीक बताते हुए साफ तौर पर कहा गया है कि विभाग के जो भी अधिकारी टैक्स चोरी रोकने का प्रयास करते हैं। यही सिंडेंकट शिकायत की ‘मोडस आपरेंडी’ के तहत जांच रोकने के लिए सक्रिय हो जाता है। संवेदनशील वस्तुओं में टैक्स चोरी की जांच रोकने के लिए पहले मौखिक शिकायत की जाती है। फिर गुमनाम व्यक्तियों से लिखित में शिकायत कराई जाती है। दूषित मंशा से तैयार पत्रावली ऊपर तक चलाई जाती है। आरोपी अधिकारी का पक्ष जाना जाता है लेकिन उसे तोड़ मरोड़ कर कर शासन में पेश किया जाता है। पत्रावली ही तथ्यों के विपरीत दी जाती है। जिसे बिना जांच के ही फारवर्ड कर दिया जाता है। अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही हो जाती है। जबतक स्पष्टीकरण देता है और पुन: बहाल होता है, तब तक ‘गिरोह’ अपना काम कर चुका होता है।
सबसे गंभीर प्रमाण देते हुए कहा गया है कि 400 करोड़ की टैक्स चोरी केे एक मामले में एक फर्म के खिलाफ अधिकारी ने जांच की। उसे बचाने के लिए गिरोह में शामिल अफसरों ने उसी पर कार्यवाही करा कर जांच सेे बाहर कर दिया। खास बात ये है कि जिस फर्म को सिंडीकेट संरक्षण दे रहा था, उसी फर्म पर आयकर विभाग ने छापा मारकर 400 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी पकड़ ली।