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Morena: पांच दशक बाद मिले चंबल के पूर्व डकैत, जौरा गांधी आश्रम में सुब्बाराव की याद में आयोजित हुआ मिलन समारोह
न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, मुरैना
Published by: अमर उजाला ब्यूरो
Updated Mon, 14 Apr 2025 08:27 PM IST
सार
मुरैना जिले के जौरा स्थित गांधी आश्रम रविवार को एक ऐतिहासिक और भावनात्मक पल का साक्षी बना। जब चंबल के बीहड़ों से आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटे पूर्व डकैत 53 साल बाद एक बार फिर एकत्र हुए।
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चंबल के पूर्व डकैत
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मुरैना के जौरा स्थित गांधी आश्रम एक ऐतिहासिक और भावनात्मक पल का साक्षी बना, जब चंबल के बीहड़ों से आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटे पूर्व डकैत 53 साल बाद एक बार फिर एकत्र हुए। यह विशेष मिलन समारोह डॉ. एसएन सुब्बाराव की याद में आयोजित किया गया, जिनकी गांधीवादी सोच और अथक प्रयासों ने चंबल में शांति स्थापित करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई थी।
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बता दें कि 1970 के दशक में चंबल घाटी डकैतों का गढ़ मानी जाती थी। यहां माधौ सिंह, मलखान सिंह जैसे कुख्यात डकैतों के नेतृत्व में करीब 654 गिरोह सक्रिय थे। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की पुलिस भी इनसे परेशान थी और बीहड़ों में इनका पीछा करना लगभग असंभव था।आमजन, व्यापारी और ग्रामीण इनसे भयभीत रहते थे।
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ऐसे कठिन समय में डॉ. एसएन सुब्बाराव ने गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाते हुए इन डकैतों को मुख्यधारा में लाने का संकल्प लिया। उन्होंने गांव-गांव जाकर और बीहड़ों में पैदल जाकर डकैतों से संपर्क किया, उन्हें अहिंसा और समाज सेवा का महत्व समझाया। उनके दृढ़ संकल्प और निरंतर संवाद ने डकैतों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया।
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डकैतों ने आत्मसमर्पण से पहले सरकार के सामने कुछ शर्तें रखीं खुली जेल में परिवार के साथ रहने की अनुमति, कृषि भूमि का आवंटन और परिवार के सदस्यों को नौकरी देने की मांग प्रमुख थी।तत्कालीन सरकार ने इन मानवीय शर्तों को स्वीकार करते हुए डकैतों को एक नया जीवन शुरू करने का अवसर दिया।14 अप्रैल 1972 को जौरा के गांधी आश्रम में, हजारों लोगों की उपस्थिति में और मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल की मौजूदगी में इन डकैतों ने गांधी प्रतिमा के सामने अपने हथियार डाल दिए।यह पल इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया, जब हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति की राह चुनी गई।

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