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दुनिया की वो विशाल नहर, जिसे पार करने में जहाजों को लगता है 10 घंटे का समय
फीचर डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नवनीत राठौर
Updated Mon, 07 Sep 2020 08:30 PM IST
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पनामा नहर
- फोटो : सोशल मीडिया
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नहरों से कृषि क्षेत्र में विकास तो होता ही है, इसके साथ ही ये यातायात में भी सहायत पहुंचाता है। दुनिया में कई ऐसे शहर हैं, जहां नहरों द्वारा ही शहर के अंदर यातायात हो सकता है। वैसे आमतौर पर नहर ज्यादा लंबे तो होते नहीं है, लेकिन आज हम आपको ऐसे नहर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो इतनी लंबी है कि उसे पार करने में ही जहाजों को औसतन 10 घंटे लग जाते हैं। इस नहर के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है, जिसके बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
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पनामा नहर
- फोटो : सोशल मीडिया
इस नहर का नाम है पनामा नहर, जो मध्य अमेरिका के पनामा में स्थित है। यह नहर प्रशांत महासागर और (कैरेबियन सागर होकर) अटलांटिक महासागर को जोड़ती है। 82 किलोमीटर लंबी यह नहर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रमुख जलमार्गों में से एक है, जहां से हर साल 15 हजार से भी अधिक छोटे-बड़े जहाज गुजरते हैं। हालांकि जब यह नहर बनी थी, तब यहां से करीब 1000 जहाज गुजरा करते थे।
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पनामा नहर का लॉक
- फोटो : सोशल मीडिया
आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच की दूरी इस नहर से होकर गुजरने पर करीब 12,875 किलोमीटर घट जाती है, नहीं तो जहाजों को लंबा चक्कर लगाना पड़ता, जिसमें करीब दो हफ्ते लग जाते। लेकिन अब जहाज इस दूरी को 10-12 घंटे में ही पूरी कर लेते हैं।
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पनामा नहर
- फोटो : सोशल मीडिया
पनामा नहर मीठे पानी की झील 'गाटुन' से होकर गुजरती है, जिसका जलस्तर समुद्रतल से 26 मीटर ऊपर है। ऐसे में यहां जहाजों के प्रवेश के लिए तीन लॉक्स बनाए गए हैं, जिनमें जहाजों को पहले प्रवेश कराया जाता है और फिर पानी भरकर उन्हें ऊपर उठाया जाता है, ताकि वो इस झील से होकर गुजर सकें। यह दुनिया का अकेला ऐसा जलमार्ग है, जहां किसी भी जहाज का कप्तान अपने जहाज का नियंत्रण पूरी तरह से पनामा के स्थानीय विशेषज्ञ कप्तान को सौंप देता है।
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पनामा नहर
- फोटो : सोशल मीडिया
वैसे तो पनामा नहर बनाने के बारे में 15वीं सदी में ही सोच लिया गया था, लेकिन शुरुआती दिक्कतों की वजह से यह नहीं बन पाया। फिर फ्रांस ने साल 1881 में इसे बनाने का काम शुरू किया, लेकिन रहने की जगह नहीं होने और साफ-सफाई की कमी के चलते यहां काम कर रहे मजदूरों को बीमारियां होने लगीं और इंजीनियरिंग की परेशानियों (मसलन मशीनें खराब होना) की वजह से भी फ्रांस ने बीच में ही काम बंद कर दिया। कहते हैं कि फ्रांस ने लगभग नौ साल तक इसे बनाने का काम किया, लेकिन इस दौरान यहां करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई।
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