उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्पेशल सीरीज का ये पांचवां भाग है। पहले चार भाग में आपने पढ़ा कि कैसे योगी आदित्यनाथ उत्तराखंड स्थित पैतृक गांव पंचूर से गोरखपुर आए और दीक्षा लेकर संन्यासी बन गए। मां-बाप ने भी बेटे के फैसले के आगे हार मान ली। योगी ने पहली बार गोरखनाथ मंदिर के बाहर निकलकर छात्रों का नेतृत्व किया और पहली बार में ही एसएसपी को फोन कर चेतावनी दे डाली। छोटी उम्र में ही योगी नायक बन गए थे। दूसरी ओर लोगों ने कहना शुरू कर दिया- 'महंत दिग्विजयनाथ ने दोबारा जन्म लिया है। 'अब आगे पढ़ें...
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वाहन चलाया तो बुरी तरह घायल हो गए थे मुख्यमंत्री योगी, भंडारे में सीखे सबक को कभी नहीं भूले
डिजिटल न्यूज डेस्क, गोरखपुर
Published by: विजय जैन
Updated Wed, 12 Feb 2020 09:02 AM IST
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अपने भक्त द्वारा खरीदी हुई गाड़ी का परीक्षण करते हुए सीएम योगी, साथ में नगर विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल।
- फोटो : अमर उजाला।
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योगी आदित्यनाथ।
- फोटो : अमर उजाला।
अवैद्यनाथ के कद पर चलते हुए 22 साल का युवा मंदिर के विशाल सम्राज्य का उत्तराधिकारी बना था। इसके अपने नुकसान और खतरे थे। यह संयोग ही था कि उत्तराधिकारी घोषित होने के महज एक महीने बाद योगी आदित्यनाथ, प्रताप आश्रम के छात्रों के साथ पुलिस कार्रवाई के खिलाफ विरोध करने के लिए परिसर से बाहर निकले थे, उस समय महंत अवैद्यनाथ संसद सत्र में शामिल होने के लिए दिल्ली में थे। वह जब भी बाहर रहते थे उस समय वह अपने शिष्यों पर विशेष नजर रखते थे। वह हमेशा योगी के साथ अपने विश्वासपात्रों को रखते थे। वे उनसे कहते थे कि 'छोटका बाबा तनिक उग्र हैं ध्यान रखिए'।
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जनता दरबार में लोग मुख्यमंत्री से करते हैं फरियाद।
- फोटो : अमर उजाला
योगी आदित्यनाथ की सीखने की शक्ति और संन्यासी जीवन में ढलने की क्षमता उल्लेखनीय थी, लेकिन वाहन सीखने की उनकी कोशिशों को जल्द ही झटका लगा। एक बार वह जोंगा वाहन चला रहे थे जो एक पेड़ से टकरा गई और योगी बुरी तरह से घायल हो गए। योगी को काफी दिन तक अस्पताल में रहना पड़ा था।
इसी बीच गोरखनाथ मंदिर में रोजाना लगने वाले जनता दरबार को भी योगी ने अपने हाथ में ले लिया था। यह गोरखपुर के लोगों के साथ शुरू हुआ था, लेकिन जैसे ही चर्चाएं फैलने लगीं कि कैसे महंत ने जमीनी विवाद हल कर दिया या चुटकियों में वैवाहिक मामलों का निपटारा हो गया। लोग दूर-दूर से अपनी समस्याओं के अंबार लेकर वहां पहुंचने लगे। गोरखनाथ मंदिर में कोई भी अपने प्रार्थनापत्र के साथ पहुंच सकता था।
इसी बीच गोरखनाथ मंदिर में रोजाना लगने वाले जनता दरबार को भी योगी ने अपने हाथ में ले लिया था। यह गोरखपुर के लोगों के साथ शुरू हुआ था, लेकिन जैसे ही चर्चाएं फैलने लगीं कि कैसे महंत ने जमीनी विवाद हल कर दिया या चुटकियों में वैवाहिक मामलों का निपटारा हो गया। लोग दूर-दूर से अपनी समस्याओं के अंबार लेकर वहां पहुंचने लगे। गोरखनाथ मंदिर में कोई भी अपने प्रार्थनापत्र के साथ पहुंच सकता था।
मंदिर में भंडार करवाते सीएम योगी आदित्यनाथ। (File)
- फोटो : अमर उजाला।
गोरक्षपीठ में योगी का जीवन धीरे-धीरे पटरी पर आ रहा था। यद्यपि आदित्यनाथ सुबह साढ़े तीन बजे उठ जाते। अगर कभी उठने में देर हो जाती तो उनके दरवाजे पर बड़े महराज की छड़ी की खटखटाहट सुनाई देने लगती।
अवैद्यनाथ मंदिर के भ्रमण के दौरान योगी को अपने साथ रखते और हर शाखा-विद्यालय, कॉलेज, आयुर्वेद अस्पताल, विश्राम गृह, भंडारा आदि की जानकारी देते। भंडारे में दिन में दो बार 500 ये अधिक लोगों को भोजन कराया जाता। इसमें मंदिर के कर्मचारियों, भक्तों, आंगुतकों सबका स्वागत है। गोरखपुर मंदिर के भंडारे में योगी ने ऐसा सबक सीखा, जिसे वह जीवन में कभी नहीं भूले।
अवैद्यनाथ मंदिर के भ्रमण के दौरान योगी को अपने साथ रखते और हर शाखा-विद्यालय, कॉलेज, आयुर्वेद अस्पताल, विश्राम गृह, भंडारा आदि की जानकारी देते। भंडारे में दिन में दो बार 500 ये अधिक लोगों को भोजन कराया जाता। इसमें मंदिर के कर्मचारियों, भक्तों, आंगुतकों सबका स्वागत है। गोरखपुर मंदिर के भंडारे में योगी ने ऐसा सबक सीखा, जिसे वह जीवन में कभी नहीं भूले।
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योगी आदित्यनाथ को छोटे बच्चों से बहुत लगाव है।
- फोटो : अमर उजाला।
एक बार मंदिर में कई श्रद्धालुओं ने जूता-चप्पल चोरी होने की शिकायतें कीं। मठ के कर्मचारियों ने बताया कि इस चोरी के पीछे आसपास के मुस्लिम इलाकों के बच्चों का हाथ है। एक शाम योगी भंडारे का निरीक्षण कर रहे थे तो मुस्लिम लड़कों का एक समूह पंक्ति में बैठा था। उन्हें बताया गया कि ये भोजन करेंगे और दूसरे का चप्पल पहनकर चल देंगे।
योगी ने देखा और बोले- 'यहां कैसे, चलो भागो यहां से', जैसे ही लड़के निकलने लगे, इतने में महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपने पास बुला लिया। महंत के पूछने पर योगी बोले-शरारती बच्चे यहां जूते-चप्पल चुराते हैं तो महंत बोले- फिर क्या हुआ? वे आपके मेहमान थे। भंडारे से किसी को भूखे नहीं लौटाना चाहिए। जाइए और उन्हें वापस लेकर आइए। योगी उन बच्चों को वापस भंडारे में बुलाकर प्यार से खाना खिलाया।
साभार- यह कहानी योगी आदित्यनाथ की जीवन यात्रा पर लिखी किताब योद्धा योगी से लिया गया है, इसे प्रवीण कुमार ने लिखा है।
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