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शेफाली का सफर: 'पापा इस बल्ले से छक्का नहीं लगेगा', बेटी की बात सुन खुद को रोक नहीं पाए थे पिता; भावुक किस्सा

माई सिटी रिपोर्टर, रोहतक Published by: विकास कुमार Updated Mon, 03 Nov 2025 08:26 PM IST
सार

पेशे से ज्वेलर्स संजीव वर्मा बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी लेकिन शेफाली का क्रिकेट के प्रति जुनून अडिग था। बचपन में वह प्लास्टिक के बल्ले से गली में खेलती थी। खेलते-खेलते उसने अपनी तकनीक और टाइमिंग दोनों को बेहतर बनाया। 

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Shafali Verma shines with help of her father teachings and struggle
शेफाली वर्मा और उनके पिता संजीव वर्मा - फोटो : Instagram/shafalisverma17

हरियाणा के रोहतक स्थित घनीपुरा निवासी संजीव वर्मा की बेटी शेफाली वर्मा का सफर गली क्रिकेट से भारतीय महिला क्रिकेट टीम तक प्रेरणादायक रहा है। बचपन में प्लास्टिक के बल्ले से खेलने वाली यह लड़की आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का परचम लहरा रही है। 

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शेफाली वर्मा और उनके पिता संजीव वर्मा - फोटो : Instagram/shafalisverma17

आज भी लेती हैं पिता की सलाह
क्रिकेट के शुरुआती गुर पिता से सीखे और जब भी खेल को लेकर कोई निर्णय लेना होता है, आज भी पिता से सलाह जरूर लेती हैं। अंडर-19 महिला विश्व कप की विजेता कप्तान रह चुकी शेफाली ने अपने संघर्ष और समर्पण से यह साबित किया कि सीमित संसाधन भी सफलता की राह में रुकावट नहीं बनते।

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शेफाली वर्मा - फोटो : ANI

अडिग था शेफाली का क्रिकेट के प्रति जुनून
पेशे से ज्वेलर्स संजीव वर्मा बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी लेकिन शेफाली का क्रिकेट के प्रति जुनून अडिग था। बचपन में वह प्लास्टिक के बल्ले से गली में खेलती थी। खेलते-खेलते उसने अपनी तकनीक और टाइमिंग दोनों को बेहतर बनाया। पिता ने बताया-जब वह छोटी थी, तबसे उसका ध्यान सिर्फ क्रिकेट पर था। हर दिन बैटिंग का अभ्यास करती और खुद को बेहतर बनाती रहती थी।

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शेफाली वर्मा - फोटो : BCCI

रोहतक से स्कूटर पर बैठ चले गए मेरठ
शेफाली ने 15 साल की उम्र में भारतीय महिला टी-20 टीम में जगह बनाई थी। जून 2021 तक वह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे कम उम्र की महिला क्रिकेटर बन गईं। उनके पिता याद करते हैं कि एक बार अभ्यास के दौरान बल्ला टूट गया था। तब शैफाली ने कहा-पापा, इस बल्ले से गेंद बाउंड्री पार नहीं जाएगी। इसके बाद पिता स्कूटर से मेरठ तक गए और वहां से छह ब्रांडेड बल्ले लेकर लौटे। उन्होंने कहा-उसकी आंखों में क्रिकेट था, मैं कैसे रोक लेता उसे।

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शेफाली वर्मा - फोटो : PTI

क्रिकेट के लिए कटवा दिए बाल
शेफाली का आत्मविश्वास उस समय और बढ़ा जब 2013 में सचिन तेंदुलकर लाहली स्टेडियम में रणजी ट्रॉफी खेलने आए। सचिन को देखने के बाद उसने तय कर लिया कि उसे क्रिकेटर बनना ही है। शुरुआती अभ्यास के दौरान वह लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थी ताकि उसकी बल्लेबाजी मजबूत हो। कोचिंग लेने के बाद उसे अकादमी भेजा गया जहां उसने अपने खेल को और निखारा। क्रिकेट के लिए शेफाली ने अपने बाल तक कटवा लिए ताकि खेलते समय ध्यान सिर्फ मैदान पर रहे। बाद में उसके स्कूल ने लड़कियों की क्रिकेट टीम बनाई जिसमें शेफाली ने अहम भूमिका निभाई।

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